अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के खिलाफ झूठे आरोप: विजिलेंस हल्द्वानी की कार्यवाही पर गंभीर सवाल
(विजिलेंस हल्द्वानी) Vigillance Haldwani द्वारा उधम सिंह नगर के जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा पर लगाए गए रिश्वत के आरोपों ने विवाद खड़ा कर दिया है। मिश्रा का दावा है कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है। वीडियोग्राफी और स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति ने ट्रैप ऑपरेशन की वैधता पर सवाल उठाए हैं। मामले की निष्पक्ष जांच और न्याय की मांग बढ़ती जा रही है, जिससे सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
उधम सिंह नगर के जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) पर विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा की गई हालिया कार्यवाही ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अशोक कुमार मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने एक शराब ठेकेदार से रिश्वत मांगी थी, लेकिन अशोक कुमार मिश्रा और उनके समर्थकों का दावा है कि यह एक सुनियोजित साजिश है। इस मामले ने पूरे उत्तराखंड प्रशासनिक तंत्र और कानूनी प्रक्रियाओं में हलचल मचा दी है।
मामला: झूठे आरोपों की जड़
विवाद की शुरुआत 2023-24 के शराब ठेकों से होती है, जिसमें ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह शामिल हैं। यह ठेकेदार उधम सिंह नगर में दो शराब ठेकों का संचालन कर रहा था, जिनमें से एक ठेके का नवीनीकरण नहीं हो पाया और इसके चलते ठेकेदार पर सरकार का बकाया था।
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) ने ठेकेदार को साफ तौर पर सूचित किया था कि जब तक बकाया राशि और ब्याज का भुगतान नहीं किया जाएगा, तब तक किसी भी तरह की रीफिलिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी। अशोक कुमार मिश्रा का कहना है कि उन्होंने अपने कार्यों में पूरी तरह से नियमों का पालन किया और ठेकेदार को कई बार बकाया चुकाने की याद दिलाई। इसके बावजूद, ठेकेदार ने विजिलेंस हल्द्वानी में रिश्वत की शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर अशोक कुमार मिश्रा के खिलाफ ट्रैप ऑपरेशन किया गया।
विजिलेंस हल्द्वानी का विवादास्पद ट्रैप ऑपरेशन
विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा किया गया ट्रैप ऑपरेशन विवादों में घिरा हुआ है। इस ऑपरेशन में कई कानूनी खामियां सामने आ रही हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है वीडियोग्राफी का अभाव।
BNSS 2023 की धारा 105 के तहत, किसी भी ट्रैप ऑपरेशन में वीडियोग्राफी अनिवार्य है। यह न केवल जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि ट्रैप ऑपरेशन में किसी प्रकार की हेराफेरी नहीं हुई। हालांकि, अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के मामले में, विजिलेंस हल्द्वानी ने केवल फोटो साक्ष्य पेश किए, जो कानूनी प्रक्रिया के उल्लंघन का संकेत देते हैं। यह सवाल खड़ा करता है कि अगर सचमुच रिश्वत की लेन-देन हुई होती, तो उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों नहीं की गई?
स्वतंत्र गवाहों की गैरमौजूदगी
ट्रैप ऑपरेशन के दौरान स्वतंत्र गवाहों की गैरमौजूदगी भी इस मामले को संदेहास्पद बनाती है। स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति जरूरी होती है, ताकि जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। अशोक कुमार मिश्रा के वकील और कानूनी विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि गवाहों की अनुपस्थिति के चलते, यह पूरा मामला संदेहास्पद हो जाता है।
दराज से बरामदगी और फर्जी आरोप
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) पर आरोप है कि रिश्वत की रकम उनके हाथ में नहीं, बल्कि उनकी टेबल की दराज से बरामद की गई थी। यह दावा पूरे मामले को और जटिल बना देता है। अशोक कुमार मिश्रा के समर्थन में यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि रकम सचमुच रिश्वत के तौर पर ली गई होती, तो वह मिश्रा के हाथों में होती, न कि दराज में।
यह संदेह जताया जा रहा है कि रिश्वत की रकम को जानबूझकर दराज में रखा गया ताकि अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) को फंसाया जा सके। अशोक कुमार मिश्रा के वकीलों का कहना है कि यह पूरा ट्रैप ऑपरेशन एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसमें ठेकेदार और कुछ अन्य लोगों ने मिलकर अशोक कुमार मिश्रा को फंसाने की योजना बनाई थी।
स्वास्थ्य और पारिवारिक स्थिति
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) की स्वास्थ्य स्थिति को भी इस मामले में ध्यान में रखना जरूरी है। मिश्रा को किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है और वह इंसुलिन पर हैं। ऐसे में उनके खिलाफ की गई यह कार्यवाही स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को भी बढ़ाती है। उनके समर्थक तर्क दे रहे हैं कि अशोक कुमार मिश्रा की स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए, यह पूरी साजिश उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करने के उद्देश्य से की गई है।
चौधरी सुदेश पाल सिंह का विवादित इतिहास
चौधरी सुदेश पाल सिंह का इतिहास पहले से ही विवादित रहा है। उन्होंने 2009 में तहसीलदार A.K. सिंह को भी इसी प्रकार फंसाने का प्रयास किया था, हालांकि बाद में A.K. सिंह को दोषमुक्त कर दिया गया था। वर्तमान में भी, चौधरी सुदेश पाल सिंह ने हाईकोर्ट में यह स्वीकार किया है कि उनके ऊपर बकाया था, जो 2024-25 तक पूरा नहीं चुका था। उन्होंने हाईकोर्ट में एफिडेविट के माध्यम से यह बात लिखित में दी है और समय मांगा है। इससे स्पष्ट होता है कि पैसे की मांग को रिश्वत से जोड़कर, विजिलेंस हल्द्वानी के अधिकारियों की मिलीभगत से ईमानदार अधिकारी को फंसाया गया है।
निष्पक्ष जांच की मांग
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के समर्थन में कई लोग और संगठन सामने आ रहे हैं, जो इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अशोक कुमार मिश्रा एक ईमानदार अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सरकारी राजस्व की रक्षा की है। उन पर लगे झूठे आरोप उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से लगाए गए हैं।
विजिलेंस हल्द्वानी की कार्यवाही पर सवाल
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वीडियोग्राफी का अभाव: ट्रैप ऑपरेशन के दौरान वीडियोग्राफी नहीं की गई, जो कि BNSS 2023 Section 105 के अनुसार अनिवार्य है। यह पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
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स्वतंत्र गवाहों की कमी: ट्रैप ऑपरेशन के दौरान कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि जांच प्रक्रिया कितनी सही थी।
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दराज से बरामदगी: रिश्वत की रकम को अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के हाथों में न पाकर, उनकी टेबल की दराज से बरामद किया गया, जो पूरी प्रक्रिया को संदेहास्पद बनाता है।
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स्वास्थ्य के मुद्दे: अशोक कुमार मिश्रा की स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह कार्यवाही उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करने का प्रयास हो सकता है।
सत्य और न्याय की लड़ाई
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के वकील ने साफ तौर पर कहा है कि वह सत्य की लड़ाई लड़ रहे हैं और उन्हें न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं, और वह जल्द ही अपनी बेगुनाही साबित करेंगे। अशोक कुमार मिश्रा के वकील और उनके समर्थक इस मामले को उच्च अदालत में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
निष्कर्ष
अशोक कुमार मिश्रा (उत्तराखंड आबकारी अधिकारी) के खिलाफ विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा की गई कार्यवाही कई संदेहों को जन्म देती है। वीडियोग्राफी और स्वतंत्र गवाहों के अभाव ने इस मामले को और भी जटिल बना दिया है। सवाल यह है कि क्या अशोक कुमार मिश्रा को एक सुनियोजित साजिश के तहत फंसाया गया है, या फिर सतर्कता विभाग के पास उनके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं?
इस मामले पर सभी की नजरें इस पर टिकी हुई हैं कि अशोक कुमार मिश्रा को न्याय मिल पाता है या नहीं। सत्य की जीत होगी या नहीं, यह समय ही बताएगा।
(यह समाचार रिपोर्ट मात्र सूचनात्मक उद्देश्य के लिए है और किसी भी पक्ष का समर्थन या विरोध नहीं करती है।)
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