अशोक कुमार मिश्रा: एक ईमानदार अधिकारी के खिलाफ झूठे आरोपों की साजिश का पर्दाफाश
अशोक कुमार मिश्रा, उधम सिंह नगर के जिला आबकारी अधिकारी, पर विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा 70 हजार रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया है। मिश्रा के वकील इस मामले को एक साजिश करार देते हुए गंभीर कानूनी खामियों का उल्लेख करते हैं, जिसमें वीडियोग्राफी का अभाव, स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति, और दराज से मिली रिश्वत की संदिग्ध बरामदगी शामिल है। ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह, जिनका आपराधिक इतिहास है, पर मिश्रा को फंसाने का आरोप लगाया जा रहा है। यह मामला एक ईमानदार अधिकारी के खिलाफ झूठे आरोपों का प्रतीत होता है।
विजिलेंस हल्द्वानी की कार्रवाई में गंभीर खामियां, निर्दोषता की ओर इशारा
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के जिला आबकारी अधिकारी, अशोक कुमार मिश्रा, पर विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया है। मामले के अनुसार, अशोक कुमार मिश्रा पर 70 हजार रुपये रिश्वत लेने का दावा किया गया है, जो कि एक ठेकेदार से कथित रूप से मांगे गए थे। हालांकि, इस पूरे मामले में कई सवाल उठते हैं, जो इस आरोप की सत्यता पर संदेह जताते हैं। मिश्रा के वकील और कानूनी विशेषज्ञ इस पूरे प्रकरण को एक सुनियोजित साजिश बता रहे हैं, जिसमें उनके मुवक्किल को फंसाया गया है। इस लेख में हम इस मामले की गहराई से जांच करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे यह आरोप अशोक कुमार मिश्रा के खिलाफ एक झूठी साजिश का हिस्सा है।
मामले की पृष्ठभूमि: ठेके और बकाया विवाद
अशोक कुमार मिश्रा, जो कि उत्तराखंड में जिला आबकारी अधिकारी के पद पर हैं, का काम यह सुनिश्चित करना है कि राज्य के आबकारी विभाग के तहत आने वाले ठेके कानून और नियमों का पालन करें। 2023-24 के लिए, ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह को उधम सिंह नगर में दो शराब के ठेकों का संचालन करने का अधिकार दिया गया था। इनमें से एक ठेके का नवीनीकरण समय पर नहीं हो सका, और इसके परिणामस्वरूप ठेकेदार पर सरकार का बकाया हो गया।
जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा ने ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह को साफ शब्दों में सूचित किया था कि जब तक बकाया राशि और ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता, तब तक रीफिलिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह नियमों के तहत एक मान्य और आवश्यक प्रक्रिया थी। इसमें कोई व्यक्तिगत लाभ का उद्देश्य नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित किया जा रहा था कि सरकारी राजस्व का नुकसान न हो। इस मामले में अशोक कुमार मिश्रा ने सरकारी नियमों का पालन किया और ठेकेदार से बकाया राशि की मांग की, जैसा कि कानून के तहत अपेक्षित है।
ठेकेदार का विवादित इतिहास और झूठे आरोपों की जड़
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह की विश्वसनीयता पर उठता है। चौधरी सुदेश पाल सिंह का इतिहास विवादास्पद रहा है, और उनके खिलाफ पहले से ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 420, रंगदारी, जमीन हड़पने, और ब्लैकमेलिंग जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इसके अलावा, 2009 में चौधरी सुदेश पाल सिंह ने एक अन्य अधिकारी, तहसीलदार ए.के. सिंह, पर भी रिश्वत के झूठे आरोप लगाए थे। हालांकि, बाद में ए.के. सिंह को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया था, और यह साबित हो गया था कि यह आरोप एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थे।
हाल ही में, चौधरी सुदेश पाल सिंह चेक बाउंस के एक मामले में जेल से रिहा हुए हैं। उनके इस विवादास्पद अतीत को देखते हुए यह स्पष्ट है कि वह इस तरह की साजिशों में शामिल रहते हैं। ऐसे में, यह संभव है कि ठेकेदार ने जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा को भी इसी तरह के झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश की है ताकि वह अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी अधिकारियों पर दबाव बना सके।
विजिलेंस हल्द्वानी की कार्रवाई में कानूनी खामियां
इस मामले में सबसे बड़ी कानूनी खामी यह है कि ट्रैप ऑपरेशन के दौरान BNSS 2023 की धारा 105 के अनुसार वीडियोग्राफी अनिवार्य होती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार की रिश्वत या लेन-देन की प्रक्रिया पूरी तरह से रिकॉर्ड हो, ताकि इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो। हालांकि, जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा के मामले में विजिलेंस हल्द्वानी ने वीडियोग्राफी नहीं की, जो कि कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
अशोक कुमार मिश्रा के वकील का कहना है कि अगर सच में रिश्वत मांगी गई थी, तो इसका पूरा वीडियो प्रमाण होना चाहिए था। लेकिन, वीडियोग्राफी न होने से यह साबित होता है कि यह ट्रैप ऑपरेशन संदिग्ध है और इसका उद्देश्य सिर्फ अशोक कुमार मिश्रा को फंसाना था।
स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति: निष्पक्षता पर सवाल
ट्रैप ऑपरेशन के दौरान स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य होती है, ताकि जांच की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहे। लेकिन, इस मामले में, विजिलेंस हल्द्वानी ने किसी भी स्वतंत्र गवाह को शामिल नहीं किया, जो कि एक गंभीर कानूनी खामी है। स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति इस पूरे ऑपरेशन को संदेहास्पद बनाती है और यह सवाल उठाती है कि आखिर क्यों गवाहों को शामिल नहीं किया गया।
रिश्वत की बरामदगी: दराज से मिली राशि का मामला
विजिलेंस हल्द्वानी का दावा है कि रिश्वत की रकम अशोक कुमार मिश्रा के हाथों में न होकर उनकी टेबल की दराज से बरामद की गई थी। यह दावा खुद ही इस मामले को संदेहास्पद बना देता है। अशोक कुमार मिश्रा के वकील का कहना है कि अगर सच में रिश्वत ली गई होती, तो वह रकम उनके हाथों में होनी चाहिए थी, न कि उनकी टेबल की दराज में।
यह स्थिति यह स्पष्ट करती है कि रिश्वत की रकम को जानबूझकर दराज में रखा गया, ताकि अशोक कुमार मिश्रा को फंसाया जा सके। दराज में मिली रकम का यह दावा इस पूरे मामले की वैधता पर सवाल खड़ा करता है और इस बात की ओर इशारा करता है कि यह ट्रैप ऑपरेशन एक साजिश के तहत किया गया था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का दुरुपयोग
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कई भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है, और राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर कड़ा संदेश दिया है। हालांकि, इस मामले में, अशोक कुमार मिश्रा के वकील का कहना है कि इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का दुरुपयोग किया जा रहा है।
उनके अनुसार, विजिलेंस हल्द्वानी ने इस अभियान का उपयोग एक ईमानदार अधिकारी के खिलाफ साजिश रचने के लिए किया है। उनके मुवक्किल अशोक कुमार मिश्रा एक ईमानदार अधिकारी हैं, जिन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन किया है और सरकारी राजस्व की रक्षा की है। उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से झूठे और बेबुनियाद हैं।
स्वास्थ्य संबंधी कठिनाई: मिश्रा की व्यक्तिगत स्थिति
अशोक कुमार मिश्रा की स्वास्थ्य स्थिति भी इस मामले में एक महत्वपूर्ण पहलू है। उन्हें किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है, और वह नियमित रूप से इंसुलिन लेते हैं। उनके वकील का कहना है कि इस तरह की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति में उन पर इस प्रकार के झूठे आरोप लगाना एक गंभीर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का प्रयास है।
निष्कर्ष: एक झूठे मामले का पर्दाफाश
जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा पर लगाए गए रिश्वत के आरोप एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा प्रतीत होते हैं। विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा की गई कार्रवाई में कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन, वीडियोग्राफी की कमी, स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति, और बरामदगी की संदिग्धता सभी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यह मामला पूरी तरह से फर्जी है।
मिश्रा के वकील का दावा है कि उनका मुवक्किल निर्दोष है और उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया है। यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ की जा रही मुहिम का दुरुपयोग है, जिसमें एक ईमानदार अधिकारी को गलत तरीके से फंसाया गया है।
What's Your Reaction?