एवीपीगंगा - आंखों में भरकर, छठ पूजा को याद करके भूल भुलैया 3 के बड़े पंडित ने कहा- अब कोई नहीं ले जाएगा घाट

बॉलीवुड के सीनियर एक्टर संजय मिश्रा अचानक ही छठ पर्व का नाम आते ही उदास हो गए। उन्होंने अपने दिल की बात लोगों से साझा कि और नम आंखों के साथ बताया कि अब पहले वाली बात नहीं रह गई है।

Dec 25, 2024 - 00:02
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एवीपीगंगा - आंखों में भरकर, छठ पूजा को याद करके भूल भुलैया 3 के बड़े पंडित ने कहा- अब कोई नहीं ले जाएगा घाट
एवीपीगंगा - आंखों में भरकर, छठ पूजा को याद करके भूल भुलैया 3 के बड़े पंडित ने कहा- अब कोई नहीं ले जाएगा घाट

एवीपीगंगा: आंखों में भरकर छठ पूजा की याद

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। इसमें लोग सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करते हैं। इस बार छठ पूजा के मौके पर, भूल भुलैया 3 के बड़े पंडित ने श्रद्धा और भावनाओं से भरे हुए लहजे में कहा, "अब कोई नहीं ले जाएगा घाट।" ये शब्द उस गहन अनुभव को दर्शाते हैं जो इस पवित्र पर्व के दौरान लोगों के दिलों में गूंजता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का पर्व विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, और झारखंड में मनाया जाता है। यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह परिवार और समाज के बीच एकता और प्रेम को भी बढ़ावा देता है। बड़े पंडित द्वारा किए गए इस वक्तव्य ने इस पर्व की गहराई को दर्शाया। जब लोग अपने परिवार और परिजनों के साथ घाट पर इकट्ठा होते हैं, तो उनका दिल भर आता है।

भूल भुलैया 3 का योगदान

भूल भुलैया 3 ने भी छठ पूजा पर अपने विशेष फोकस के साथ इसे एक नया रंग देने का प्रयास किया है। फिल्म में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ जोड़कर पेश किया गया है, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है। इस प्रकार, सिनेमा के माध्यम से विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर करना आज की जरूरत बन गया है।

भावनाएँ और यादें

जब पंडित ने कहा, "अब कोई नहीं ले जाएगा घाट," तो यह इस बात को रेखांकित करता है कि छठ पूजा का यह पर्व हर साल लोगों की यादों में जीवित रहता है। यह एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके द्वारा छोड़ी गई परंपराओं को जीवित रखते हैं। इस भावनात्मक पृष्ठभूमि ने त्योहार की गरिमा को और बढ़ा दिया है।

छठ पूजा का पर्व इस बात का प्रतीक है कि जीवन में कठिनाइयाँ कितनी भी हों, परिवार और समाज के साथ मिलकर हम हर बाधा को पार कर सकते हैं। इस प्रकार की प्रेरणा हमेशा हमारे साथ रहती है।

अंत में, छठ पूजा की तैयारी और भावनाओं की गहराई को समझना हमें इस सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अवसर देता है। "अब कोई नहीं ले जाएगा घाट," इन शब्दों ने हमें यह याद दिलाया कि ये पर्व केवल एक पूजा नहीं है, बल्कि हमारे जीवन की एक अनिवार्य हिस्सा है।

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