जिला आबकारी अधिकारी अशोक मिश्रा की गिरफ्तारी विवादों में, सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

जिला आबकारी अधिकारी अशोक मिश्रा की गिरफ्तारी विवादों में, सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

Jul 3, 2024 - 23:30
Jul 3, 2024 - 23:30
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जिला आबकारी अधिकारी अशोक मिश्रा की गिरफ्तारी विवादों में, सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल
जिला आबकारी अधिकारी अशोक मिश्रा की गिरफ्तारी विवादों में, सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

हल्द्वानी: ऊधमसिंहनगर के जिला आबकारी अधिकारी अशोक मिश्रा की हाल ही में सतर्कता विभाग द्वारा की गई गिरफ्तारी में कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। मिश्रा को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन मामले की जांच और सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर अब जनता और मिश्रा के समर्थक खुलकर विरोध कर रहे हैं।

अशोक मिश्रा: एक ईमानदार अधिकारी?
स्थानीय व्यापारियों, जनप्रतिनिधियों और मिश्रा के सहयोगियों का कहना है कि अशोक मिश्रा एक ईमानदार और समर्पित अधिकारी हैं जिन्होंने हमेशा सरकारी राजस्व की सुरक्षा और अनुज्ञापियों से बकाया वसूली का प्रयास किया। उनके समर्थन में उतरे कई लोगों का कहना है कि मिश्रा ने हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन किया और सरकारी राजस्व को प्राथमिकता दी।

यह बताया जा रहा है कि शिकायतकर्ता चौधरी सुदेश पाल सिंह का खुद का रिकॉर्ड विवादास्पद है। उसके खिलाफ पहले से ही कई मामलों में आर्थिक विवाद और धोखाधड़ी के आरोप दर्ज हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिकायतकर्ता ने जानबूझकर मिश्रा को फंसाने की साजिश रची?

सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल
मिश्रा के समर्थक और कानूनी विशेषज्ञ सतर्कता विभाग की जांच पर कई गंभीर सवाल उठा रहे हैं। सबसे पहले, यह बात सामने आई है कि विभाग ने इस मामले में स्वतंत्र गवाहों को शामिल नहीं किया, जो कि जांच की निष्पक्षता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। बिना स्वतंत्र गवाहों की भागीदारी के जांच की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी मानी जा सकती है?

दूसरी बात, सतर्कता विभाग ने ट्रैप ऑपरेशन की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत नहीं की है। ऐसा करना न केवल सतर्कता संचालन के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह गिरफ्तारी की सत्यता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। यदि ट्रैप सही था, तो सतर्कता विभाग को इसे रिकॉर्ड करके न्यायालय के सामने रखना चाहिए था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विभाग ने जानबूझकर रिकॉर्डिंग नहीं की, ताकि अधिकारी को फंसाया जा सके?

फर्ज़ी तरीके से गिरफ्तार कर बनाया गया दबाव
मिश्रा के समर्थक दावा कर रहे हैं कि यह गिरफ्तारी एक सोची-समझी साजिश थी। उन्होंने आरोप लगाया है कि सतर्कता विभाग ने फर्ज़ी तरीके से न केवल अशोक मिश्रा को बदनाम किया, बल्कि सरकारी अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव भी बनाया है। सतर्कता विभाग ने जिस तरह से कार्रवाई की, उससे साफ लगता है कि यह एक राजनीतिक दबाव का मामला हो सकता है।

मिश्रा के वकीलों का कहना है कि उनके मुवक्किल के खिलाफ पेश किए गए सबूतों में कई खामियां हैं। फिनाफ्थलीन टेस्ट के नतीजे भी संदिग्ध हैं, क्योंकि आरोपी के हाथों में रंग परिवर्तन का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था। इसके बावजूद सतर्कता विभाग ने अपनी रिपोर्ट में आरोपी के खिलाफ ऐसे तथ्य प्रस्तुत किए हैं जो असत्य प्रतीत होते हैं।

अधिकारी वर्ग में फैला असुरक्षा का माहौल
इस घटना के बाद सरकारी अधिकारियों में असुरक्षा का माहौल पैदा हो गया है। मिश्रा के सहयोगियों का कहना है कि अगर ऐसे समर्पित अधिकारियों को सतर्कता विभाग की मनमानी कार्रवाई के कारण झूठे मामलों में फंसाया जाता है, तो यह सरकारी विभागों के कामकाज में बाधा डालेगा।

सतर्कता विभाग की जांच प्रक्रियाओं पर उठे सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि सतर्कता विभाग को जांच की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। ऐसे मामलों में वीडियो रिकॉर्डिंग और स्वतंत्र गवाहों की भागीदारी अनिवार्य होनी चाहिए। अगर विभाग पारदर्शिता के साथ जांच नहीं करेगा, तो उसका उद्देश्य संदेह के घेरे में आ जाएगा।

क्या यह एक झूठी शिकायत थी?
मिश्रा के समर्थकों का कहना है कि शिकायतकर्ता का उद्देश्य अपने अधिभार की निकासी में विलंब करना था। उन्होंने आरोप लगाया है कि शिकायतकर्ता ने जानबूझकर एक झूठी शिकायत दर्ज कराई ताकि अधिकारी पर दबाव बनाया जा सके। उन्होंने यह भी दावा किया है कि मिश्रा ने शिकायतकर्ता से कभी भी किसी प्रकार की अवैध मांग नहीं की थी।

निष्कर्ष
अशोक मिश्रा की गिरफ्तारी ने सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना स्वतंत्र गवाहों और वीडियो रिकॉर्डिंग के बिना किए गए ट्रैप ऑपरेशन ने विभाग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गहरा सवालिया निशान लगा दिया है। मिश्रा के समर्थन में उठे लोगों का कहना है कि उन्हें एक ईमानदार अधिकारी को बदनाम करने की साजिश का शिकार बनाया गया है।

अब देखना यह है कि न्यायालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या अशोक मिश्रा को न्याय मिल पाएगा। मिश्रा के वकील अपने मुवक्किल की बेगुनाही साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रखने की बात कर रहे हैं।

आगामी सुनवाई में न्याय की उम्मीद है।

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