नेपाल में 5 साल में एक बार लगता है गढ़ीमाई मेला, लाखों जानवरों की दी जाती है बलि; जानें क्या है ये खूनी परंपरा
गढ़ीमाई मेला गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक सामूहिक बलि प्रथा के रूप में नाम दर्ज करवा चुका है। मेला लगभग 15 दिन चलता है और इसमें नेपाल और भारत के श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। प्रत्येक दिन लगभग पांच लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं।
नेपाल में 5 साल में एक बार लगता है गढ़ीमाई मेला
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गढ़ीमाई मेले का महत्व
गढ़ीमाई मेला नेपाल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसे हर पांच साल में मनाया जाता है। यह मेला विशेषकर देवी गढ़ीमाई की पूजा के लिए जाता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के साथ भाग लेते हैं। इस मेले का आयोजन विशेष रूप से एक बार लोकप्रियता हासिल करता है, क्योंकि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
जानवरों की बलि: परंपरा या क्रूरता?
इस मेले की एक विशेषता यह है कि यहाँ पर लाखों जानवरों जैसे बकरियां, बुरे, और मुर्गियों की बलि दी जाती है। यह प्रक्रिया धार्मिक विश्वासों से संचालित होती है, जिसका मानना है कि इससे देवी गढ़ीमाई की कृपा प्राप्त होती है। हालांकि, यह परंपरा आज के युग में कट्टर आलोचना का सामना कर रही है। अनेक पशु अधिकार संगठन और मानवतावादी संस्थाएं इस परंपरा के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं, इसे एक क्रूरता के रूप में देखते हैं।
क्यों है गढ़ीमाई मेला विवादित?
गढ़ीमाई मेले में जानवरों की बलि भीषण और अपमानजनक मानी जाती है। कई लोग इसे एक संस्कृति के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे अनिवार्य रूप से समाप्त करने का समर्थन करते हैं। बैकग्राउंड में, नेपाल सरकार और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों के बीच इस पर बहस जारी है। क्या यह परंपरा आगे बढ़नी चाहिए या इसे रोक दिया जाना चाहिए? यह प्रश्न वर्तमान में कई लोगों के मन में गूंज रहा है।
कैसे जाया जाए गढ़ीमाई मेले में?
अगर आप गढ़ीमाई मेले का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो पहले से योजना बनाना आवश्यक है। आयोजन स्थल नेपाल के बायरवा में स्थित है, और यह स्थान केवल एक बार हर पांच साल में ही खुलता है। यात्रा के लिए सही समय, परिवहन और आवास की व्यवस्था पर ध्यान दें।
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इस ख़ूनी परंपरा के खिलाफ आवाज उठाना और जानवरों के अधिकारों का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी बनती है।
स्रोत: विभिन्न रिपोर्ट्स और स्थानीय समुदाय की जानकारी
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