सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत राष्ट्र समिति (BRS) के 10 विधायकों के दल-बदल केस में सुनवाई की। कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) जीपी कुमार को विधायकों की अयोग्यता वाली याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं लेने पर अवमानना नोटिस जारी किया। CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि 31 जुलाई को तेलंगाना स्पीकर को तीन महीने के अंदर इन 10 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने का आदेश दिया गया था। इसी आदेश के पालन न होने पर 10 नवंबर को याचिका दायर की गई थी। CJI ने कहा- यह तो घोर अवमानना है। स्पीकर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में आने से फिलहाल छूट दी गई है, लेकिन उन्हें अब तय करना चाहिए कि नया साल कहां मनाना है। अगर जल्द फैसला लेने का आदेश नहीं माना, तो उन्हें कोर्ट में ही आना होगा। वहीं स्पीकर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 4 याचिकाओं में सुनवाई पूरी हो चुकी है और 3 में साक्ष्य दर्ज हो गए हैं। उन्होंने कोर्ट से 8 हफ्ते का और समय मांगा है। अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद करेगी। 2023 में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को बहुमत मिला और BRS सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद 10 विधायक बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 31 जुलाई- सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने में फैसले लेने का आदेश दिया कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर को आदेश दिया था कि वह संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत इन विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर 3 महीने में फैसला लें। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चौहान की बेंच ने कहा था, 'हम ऐसी स्थिति को अनुमति नहीं दे सकते जहां ऑपरेशन सफल हो, लेकिन मरीज मर जाए।' कोर्ट ने यह टिप्पणी उस संदर्भ में की थी, जिसमें विधायकों पर फैसले लेने में इतनी देरी न हो जाए कि उनका कार्यकाल ही खत्म हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के 22 नवंबर को दिए गए उस आदेश को भी खारिज कर दिया था, जिसमें सिंगल जज के स्पीकर को कार्यवाही का समय निर्धारण करने का निर्देश रद्द कर दिया गया था। पूरी खबर पढ़ें... दल बदल कानून के बारे में जानें... 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली। उसके बाद से राजनीति में आया राम-गया राम की कहावत मशहूर हो गई। पद और पैसे के लालच में होने वाले दल-बदल को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई। इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर लेता है तो वो दल-बदल कानून के तहत सदन से उसकी सदस्यता जा सकती है। अगर कोई सदस्य सदन में किसी मुद्दे पर मतदान के समय अपनी पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है, तब भी उसकी सदस्यता जा सकती है। अगर किसी दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य किसी दूसरे दल में विलय के पक्ष में हों, तो यह दल बदल नहीं माना जाएगा। यह निर्णय लोकसभा अध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष (या राज्यसभा के मामले में उपसभापति) लेते हैं। उनके फैसले को न्यायिक समीक्षा के लिए कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। --------------------------- मामले से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना CM को फटकार लगाई, कहा- अवमानना पर कार्रवाई न करके क्या हमने गलती की तेलंगाना BRS के 10 बागी विधायकों की अयोग्यता वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 3 अप्रैल को सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को उनके एक बयान पर फटकार लगाई। रेवंत रेड्डी ने 26 मार्च को तेलंगाना विधानसभा में 10 विधायकों को संबोधित करते हुए बोला था कि राज्य में कोई भी उपचुनाव नहीं होने वाले हैं। पूरी खबर पढ़ें...