उत्तराखंड के इन 125 गांवों को किस बात का डर? डेढ़ सौ साल से नहीं मनाई होली

इस हिंदू सनातनी त्योहार होली को कुमांउ क्षेत्र में 14वीं शताब्दी में चंपावत के चांद वंश के राजा लेकर आए थे। राजाओं ने इसकी शुरूआत ब्राह्मण पुजारियों के माध्यम से की इसलिए जहां-जहां उन पुजारियों का प्रभाव पड़ा, वहां इस त्योहार का प्रसार हो गया।

Mar 12, 2025 - 20:33
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उत्तराखंड के इन 125 गांवों को किस बात का डर? डेढ़ सौ साल से नहीं मनाई होली
उत्तराखंड के इन 125 गांवों को किस बात का डर? डेढ़ सौ साल से नहीं मनाई होली

उत्तराखंड के इन 125 गांवों को किस बात का डर? डेढ़ सौ साल से नहीं मनाई होली

AVP Ganga

लेखिका: सिमरन कौर, टीम नेतनागरी

परिचय

उत्तराखंड की पर्वतीय भूमि, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। लेकिन, इस धरती के कुछ गांवों में एक अजीब सा सन्नाटा है। ये गांव केवल एक ही कारण से बदनाम हैं - वे पिछले 150 सालों से होली का पर्व नहीं मना रहे हैं। आइए जानते हैं आखिर इन 125 गांवों में ऐसा क्या है जो नफरत की दीवारें खड़ी कर रहा है।

इतिहास का पर्दा

खबरों के अनुसार, ये गांव दरअसल एक पुरानी मान्यता के कारण होली नहीं मना रहे हैं। किसी समय में इन गांवों के निवासियों ने एक भयानक घटना का सामना किया था, जिसने उनके हृदय में होली को लेकर एक डर पैदा कर दिया। इस बहिष्कार का कोई ठोस प्रमाण ना होने के बावजूद, यह डर पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।

क्यों नहीं मानी जा रही होली?

इन गांवों में लोग मानते हैं कि होली का जश्न मनाने से उनके परिवारों पर संकट आ सकता है। कुछ का कहना है कि अतीत की परेशानियों की यादें आज भी ताजा हैं और वे किसी खतरे का सामना नहीं करना चाहते। यह भय इतनी गहराई तक उतरा हुआ है कि बच्चों को भी इस पर्व से दूर रखा गया है।

स्थानीय संस्कृति और त्योहार

उत्तराखंड की होली दक्षिण भारत की होली की तरह नहीं है, यहां यह एक पारंपरिक उत्सव है जिसमें रंग, गाने, और नृत्य का आयोजन होता है। लेकिन इन 125 गांवों में सभी प्रकार के उत्सवों का बहिष्कार किया जा रहा है। विभिन्न यात्राओं के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा प्रदर्शित की गई शांति और अकेलापन इस संकट का संकेत है।

समाज में बदलाव की उम्मीद

हालांकि, कुछ लोग इस खामोशी को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। युवाओं का एक समूह अब इस परंपरा को बदलने का प्रयास कर रहा है। वे सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों और महोत्सवों के आयोजन के जरिए जागरूकता बढ़ा रहे हैं। क्या ये प्रयास सफल होंगे? यह तो समय ही बताएगा।

निष्कर्ष

उत्तराखंड के इन 125 गांवों की कहानी केवल एक पर्व की नहीं है, यह मानवीय मनःस्थिति का भी प्रतीक है। क्या हम अतीत की गलतियों की कड़ी को तोड़ पाएंगे? क्या ये गांव आगे बढ़ेंगे? सही जानकारियों के साथ, हमें उम्मीद है कि हर गांव अपने त्योहारों को फिर से जीवित करेगा।

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