उधम सिंह नगर के आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा के खिलाफ सतर्कता की कार्यवाही पर उठे सवाल

जिला आबकारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप, मामले में उठ रहे हैं कई सवाल

Dec 24, 2024 - 18:32
Dec 24, 2024 - 18:32
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उधम सिंह नगर के आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा के खिलाफ सतर्कता की कार्यवाही पर उठे सवाल
जिला आबकारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप, मामले में उठ रहे हैं कई सवाल

उधम सिंह नगर के जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा के खिलाफ हाल ही में हुई सतर्कता की कार्यवाही पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। मिश्रा का दावा है कि सतर्कता विभाग की ओर से उनके खिलाफ एक सुनियोजित साजिश के तहत ट्रैप ऑपरेशन किया गया है।

जानें क्या है मामला:

अशोक कुमार मिश्रा का कहना है कि वह पिछले मार्च 2023 से उधम सिंह नगर में जिला आबकारी अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनकी जिम्मेदारी है कि जिले में शराब के ठेकों से सरकार का राजस्व सही समय पर वसूला जाए और सभी ठेकेदारों से नियमों के अनुसार बकाया राशि का भुगतान करवाया जाए।

मुख्य मुद्दा:

मामला यह है कि वर्ष 2023-24 में ठेकेदार चौधरी सुदेश पाल सिंह के दो शराब ठेके थे, जिनमें से एक ठेके का नवीनीकरण नहीं हुआ था। आरोप लगाया जा रहा है कि ठेकेदार ने सरकारी राजस्व का बकाया नहीं चुकाया था और इसके बावजूद वह आबकारी विभाग से रीफिलिंग की अनुमति की मांग कर रहे थे। अशोक कुमार मिश्रा ने साफ तौर पर कहा था कि जब तक पिछला बकाया और ब्याज का भुगतान नहीं होगा, तब तक किसी भी नई रीफिलिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी।

कथित ट्रैप और विवाद:

मिश्रा के अनुसार, उन्होंने ठेकेदार के बकाए की वसूली के लिए नियमों का पालन किया था। हालांकि, ठेकेदार द्वारा सतर्कता विभाग में एक शिकायत की गई, जिसके आधार पर मिश्रा के खिलाफ ट्रैप ऑपरेशन चलाया गया। इस ट्रैप ऑपरेशन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

सवालों के घेरे में ट्रैप ऑपरेशन:

  1. वीडियोग्राफी का अभाव: BNSS 2023 की धारा 105 के अनुसार, ट्रैप ऑपरेशन में वीडियोग्राफी अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में केवल फोटो प्रस्तुत किए गए हैं, जो कानून का उल्लंघन है।

  2. स्वतंत्र गवाहों की कमी: ट्रैप ऑपरेशन के दौरान स्वतंत्र गवाहों को शामिल नहीं किया गया। इस तरह की कार्यवाही में स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति न केवल कानूनी जरूरत होती है, बल्कि निष्पक्षता भी सुनिश्चित करती है।

  3. दराज से बरामदगी: ट्रैप के दौरान आरोप लगाया गया कि रिश्वत की रकम मिश्रा के हाथ में नहीं, बल्कि उनकी टेबल की दराज से बरामद की गई। यह संदेह पैदा करता है कि आखिरकार यह रकम दराज में कैसे पहुंची।

  4. आवेदन और काम लंबित नहीं: ट्रैप के दिन मिश्रा के पास ठेकेदार का कोई भी आवेदन लंबित नहीं था। ऐसे में रिश्वत की मांग का कोई तर्क नहीं बनता है।

स्वास्थ्य और अन्य पहलू:

मिश्रा की स्थिति को देखते हुए, यह भी सवाल उठता है कि क्या यह पूरा मामला ठेकेदार के खिलाफ नियमों के तहत कार्यवाही करने के कारण हुआ। मिश्रा का कहना है कि उन्होंने ठेकेदार को बार-बार बकाया राशि का भुगतान करने के लिए कहा, लेकिन ठेकेदार ने इसका पालन नहीं किया। इसके बाद सतर्कता की इस कार्यवाही ने एक नया मोड़ ले लिया है।

निष्पक्ष जांच की मांग:

इस मामले में मिश्रा के समर्थन में कई लोग आगे आए हैं और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। यह जरूरी है कि सतर्कता विभाग और न्यायिक प्रणाली दोनों ही इस मामले में सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर उचित निर्णय लें।

आखिर में, यह देखना बाकी है कि आगे की जांच में क्या सामने आता है, लेकिन फिलहाल इस मामले को लेकर विवादों का दौर जारी है।

(यह समाचार केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए है और इसमें किसी भी पक्ष का पूर्ण समर्थन या विरोध नहीं दर्शाया गया है।)

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