विजिलेंस विभाग का नंगा नाच: क्या सूचना छिपाकर खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है सतर्कता विभाग?

विजिलेंस विभाग का नंगा नाच: क्या सूचना छिपाकर खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है सतर्कता विभाग?

Sep 16, 2024 - 23:16
Sep 20, 2024 - 21:39
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विजिलेंस विभाग का नंगा नाच: क्या सूचना छिपाकर खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है सतर्कता विभाग?
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विजिलेंस विभाग का नंगा नाच: क्या सूचना छिपाकर खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है सतर्कता विभाग?

काशीपुर: उत्तराखंड के सतर्कता विभाग (विजिलेंस) का रवैया आज हर जागरूक नागरिक के सामने गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। यह विभाग, जिसे जनता की सेवा और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया था, अब खुद ही पारदर्शिता की चादर ओढ़कर काले कारनामों को छिपाने में जुटा है। हाल ही में दायर एक आरटीआई आवेदन में विभाग की मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOPs) की जानकारी मांगी गई थी। लेकिन विजिलेंस ने इसे देने के बजाय गलत तरीकों से आवेदन का टालमटोल और कानून का दुरुपयोग कर जानकारी छिपाने की शर्मनाक कोशिश की।

विभाग की साजिश: क्या विजिलेंस खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है?
क्या सतर्कता विभाग अब अपनी ही अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए आरटीआई अधिनियम का गला घोंट रहा है? इस सवाल का जवाब जानना आज बेहद ज़रूरी हो गया है। जब विभाग खुद ही सूचना छुपाने पर उतर आए, तो शक होना लाज़मी है कि कहीं यह विभाग भी भ्रष्टाचार में लिप्त तो नहीं हो गया है? क्या इस विभाग का असली उद्देश्य अब जनता को न्याय देने के बजाय निर्दोष लोगों को फंसाना और उनके अधिकारों का हनन करना है?

मुख्यमंत्री के पारदर्शिता के तोहफे को चूर-चूर कर रहा है विजिलेंस
यह वही विभाग है जिसे मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड की जनता के लिए ऑनलाइन आरटीआई के माध्यम से पारदर्शिता लाने का आदेश दिया था। मुख्यमंत्री ने जनता को यह तोहफा इसलिए दिया ताकि वे बिना किसी डर और बाधा के अपनी जानकारी का अधिकार प्राप्त कर सकें। लेकिन, विजिलेंस विभाग ने अपनी मनमानी से इस तोहफे का खुलेआम अपमान कर दिया। यदि मुख्यमंत्री को यह पता चले कि उनके द्वारा दिया गया यह तोहफा विभागीय भ्रष्टाचार और धांधली की भेंट चढ़ रहा है, तो उन्हें कैसा महसूस होगा?

सवाल: सूचना छुपाने के पीछे आखिर कौन सा खेल चल रहा है?
विजिलेंस विभाग ने आरटीआई आवेदन को जानबूझकर मुख्यालय से स्थानांतरित कर क्षेत्रीय कार्यालयों में भेज दिया, जहां पर इस जानकारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यह सीधा-सीधा सूचना छिपाने और प्रक्रिया को उलझाने का प्रयास है। सवाल यह है कि आखिर यह विभाग किससे और क्यों डर रहा है? क्या उसके पास छुपाने के लिए कोई काले कारनामे हैं? क्या विभाग निर्दोष लोगों को फंसाकर उनके मौलिक अधिकारों को कुचलने का प्रयास कर रहा है?

धारा 24 का ढाल बना कर सच्चाई को दबाने का घिनौना प्रयास
विजिलेंस विभाग धारा 24 का हवाला देकर यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उसके पास सूचना न देने का अधिकार है। लेकिन क्या विभाग यह भूल गया है कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में जानकारी छुपाना स्वयं कानून का उल्लंघन है? विभाग की यह हरकत सिर्फ धारा 24 का दुरुपयोग नहीं, बल्कि उसके द्वारा अपनी शक्ति का नाजायज फायदा उठाने का प्रतीक है। यह इस बात का खुला सबूत है कि विभाग पारदर्शिता और जवाबदेही से कोसों दूर है।

पीआईओ की गैर-जिम्मेदारी और कायरता: क्या यह जनता से सच छुपाने की साजिश है?
आरटीआई अधिनियम के तहत लोक सूचना अधिकारी (PIO) की जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिकों के सवालों का निष्पक्ष जवाब दे। लेकिन यहां तो पीआईओ ने अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए अन्य अधिकारियों पर जिम्मेदारी डाल दी। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह दर्शाता है कि विभाग के अंदर कितना डर और कायरता भरा हुआ है। क्या विभाग इस तरह से अपनी काली करतूतों को छुपाकर खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है?

विजिलेंस विभाग का असली चेहरा: न कोई जवाबदेही, न कोई पारदर्शिता
यह विभाग हमेशा कहता है कि वह "एसओपी का पालन करता है," लेकिन हकीकत में एसओपी के नाम पर सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। यह विभाग एसओपी का ढाल बनाकर अपने घिनौने कामों को छुपाने की कोशिश कर रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि विभाग न तो पारदर्शिता में विश्वास करता है, न ही जवाबदेही में। क्या यह विभाग खुद को कानून और जनता से ऊपर समझने लगा है?

क्या मुख्यमंत्री अब भी चुप रहेंगे?
मुख्यमंत्री को इस पूरे मामले पर तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। उनके द्वारा दी गई ऑनलाइन आरटीआई सुविधा का अपमान करना न केवल जनता के अधिकारों का हनन है, बल्कि सरकार की मंशा पर भी एक सवाल है। क्या मुख्यमंत्री अब भी चुप रहेंगे जबकि उनका विजिलेंस विभाग जनता की जानकारी के अधिकार को कुचल रहा है?

हमारी मांग: पारदर्शिता के दुश्मनों पर कड़ी कार्रवाई हो
हमारी मांग है कि राज्य सूचना आयोग और मुख्यमंत्री इस मामले में सख्त कार्रवाई करें। विजिलेंस विभाग को यह समझना होगा कि वह कानून और जनता से ऊपर नहीं है। विभाग द्वारा की जा रही इस मनमानी और शक्ति के दुरुपयोग पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। यह जनता का हक है कि वह अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाए और इस भ्रष्ट विभाग की मनमानी पर नकेल कसे।

आवाज उठाओ, ताकि किसी निर्दोष का हक न कुचला जाए
आज समाज को एकजुट होकर इस विभाग की मनमानी के खिलाफ खड़ा होना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में कोई भी विभाग नागरिकों के अधिकारों का इस तरह से दमन न कर सके। सतर्कता विभाग को यह याद रखना होगा कि उसकी शक्ति जनता के हित में है, न कि उसके अधिकारों का दमन करने के लिए।

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