हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर: निर्दोष अधिकारियों के लिए खतरनाक तंत्र?
हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। निर्दोष अधिकारियों को फंसाने और ब्लैकमेल के आरोपों के बीच, सरकार से पारदर्शिता और ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा की मांग।
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उत्तराखंड का हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर (Vigilance Sector Haldwani) इन दिनों चर्चा में है, लेकिन गलत कारणों से। सतर्कता विभाग, जिसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, अब खुद अपने विवादास्पद कार्यों और पक्षपातपूर्ण रवैये के लिए आलोचना का शिकार हो रहा है।
हाल ही में सामने आए कई मामलों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है, जिससे न केवल सरकारी तंत्र कमजोर हो रहा है, बल्कि निर्दोष अधिकारियों के मनोबल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
सतर्कता विभाग का काम: भ्रष्टाचार पर अंकुश या निर्दोषों को फंसाना?
हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर ने 2024 में 19 लोगों को ट्रैप करने का दावा किया, जिनमें से 3 अधिकारी और 16 कर्मचारी शामिल थे। लेकिन सवाल यह है:
- क्या ये सभी मामले वाकई सही हैं, या केवल संख्या बढ़ाने के लिए कार्रवाई की गई?
- शिकायतों की जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव क्यों है?
"रंगे हाथ गिरफ्तार" का दिखावा
- सतर्कता विभाग के अधिकारी बार-बार "रंगे हाथ गिरफ्तार" करने की बात करते हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि इन मामलों में कितनों को अदालत से दोषी ठहराया गया।
- ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां ठोस सबूतों के अभाव में आरोपी अधिकारी बरी हो जाते हैं, लेकिन तब तक उनका करियर और छवि पूरी तरह नष्ट हो चुकी होती है।
छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई, बड़े अधिकारियों पर चुप्पी
- ट्रैप किए गए 19 लोगों में से 16 अराजपत्रित कर्मचारी थे।
- उच्च अधिकारियों और बड़े भ्रष्टाचार पर कार्रवाई का अभाव यह संकेत देता है कि सतर्कता विभाग केवल छोटे कर्मचारियों को निशाना बनाकर दिखावा कर रहा है, जबकि बड़े मामलों में कार्रवाई करने से बच रहा है।
निर्दोष अधिकारियों पर सतर्कता का दबाव
नाम न बताने की शर्त पर आबकारी विभाग के अधिकारियों ने खुलासा किया कि हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर अब भ्रष्टाचार रोकने की जगह ब्लैकमेल और दबाव बनाने का माध्यम बन चुका है।
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बार-बार DEO का तबादला
- सतर्कता विभाग के दबाव में 2-2 महीनों में जिला आबकारी अधिकारियों (DEO) का तबादला हो रहा है।
- इससे विभाग में स्थिरता का अभाव हो गया है, और अधिकारी डर के कारण सही तरीके से काम नहीं कर पा रहे।
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भय का माहौल
- सतर्कता विभाग का रवैया ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह सतर्कता अधिकारी नहीं, बल्कि ठेकेदारों के साझेदार बन गए हों।
- अधिकारियों ने बताया कि राजस्व संग्रहण के लिए की गई बातचीत को "रिश्वत मांगने" के रूप में पेश किया जा रहा है, जबकि इनमें से कई मामले पूरी तरह निराधार हैं।
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बिना लंबित आवेदन के रिश्वत के आरोप
- कई मामलों में ठेकेदारों के पास कोई लंबित आवेदन नहीं था, फिर भी सतर्कता विभाग ने अधिकारियों को रिश्वत मांगने के आरोप में फंसा दिया।
- यह कैसे संभव है कि बिना काम लंबित हुए रिश्वत का मुद्दा आए?
सरकार को हस्तक्षेप की जरूरत: ईमानदार अधिकारियों को सुरक्षा
हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर के रवैये ने अब उत्तराखंड सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पैदा कर दी है।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष हो।
- ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
सरकार का हस्तक्षेप क्यों जरूरी है?
- भ्रष्टाचार की जगह डर का माहौल
- सतर्कता विभाग का उद्देश्य भ्रष्टाचार रोकना है, लेकिन वर्तमान में यह डर और ब्लैकमेल का माहौल बना रहा है।
- ईमानदार अधिकारियों का मनोबल गिर रहा है
- यदि सरकार ने जल्द हस्तक्षेप नहीं किया, तो ईमानदार अधिकारी सिस्टम से बाहर हो जाएंगे, और भ्रष्टाचार और बढ़ेगा।
संभावित सुधार
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स्वतंत्र निगरानी तंत्र
- सतर्कता विभाग की कार्यवाही पर निगरानी रखने के लिए एक स्वतंत्र तंत्र बनाया जाए।
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झूठे मामलों पर रोक
- शिकायतों की जांच में पारदर्शिता और सख्त प्रक्रिया सुनिश्चित की जाए, ताकि झूठे मामलों पर अंकुश लगाया जा सके।
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दोष सिद्धि दर को प्राथमिकता दें
- केवल "रंगे हाथ गिरफ्तार" करने के बजाय, मामलों की दोष सिद्धि दर को प्राथमिकता दी जाए।
निष्कर्ष: सरकार से उम्मीदें
हल्द्वानी सतर्कता सेक्टर का वर्तमान रवैया सरकारी तंत्र की साख और ईमानदारी पर गहरे सवाल खड़ा करता है।
यह समय है कि उत्तराखंड सरकार हस्तक्षेप करे और सुनिश्चित करे कि:
- निर्दोष अधिकारियों को न्याय मिले।
- सतर्कता विभाग की भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर लगाम लगे।
- ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए एक नई प्रणाली लागू हो।
यदि सरकार ने सही कदम उठाए, तो न केवल सतर्कता विभाग की साख बहाल होगी, बल्कि सतर्कता और प्रशासनिक तंत्र में जनता का भरोसा भी लौटेगा।
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