The Filmy Hustle Exclusive: कितने बदल गए थिएटर के हालत, विषेक चौहान ने सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स में बताया फर्क
The Filmy Hustle Exclusive: इंडिया टीवी के 'द फिल्मी हसल' पॉडकास्ट में विषेक चौहान ने फिल्म के बदलते ट्रेंड और थिएटर के हालत कुछ सालों में कितने बदल गए है। इसपर खुलकर बात की। साथ ही बताया कि लोगों का ध्यान किस ओर ज्यादा है।

The Filmy Hustle Exclusive: कितने बदल गए थिएटर के हालत, विषेक चौहान ने सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स में बताया फर्क
AVP Ganga
हाल के दिनों में भारतीय सिनेमा के दर्शकों का व्यवहार काफी बदल गया है। थिएटरों की स्थिति, सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स के बीच का अंतर, बड़े सवाल बन गए हैं। फिल्म समीक्षक विषेक चौहान ने हाल ही में इस विषय पर कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा की हैं। आइए जानते हैं कि किस प्रकार थिएटर के हालात में बदलाव आया है और यह बदलाव किस तरह दर्शकों की पसंद को प्रभावित कर रहा है।
थिएटर का इतिहास और वर्तमान स्थिति
फिल्म देखने का अनुभव भारतीय जनजीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। पहले, सिंगल स्क्रीन थिएटर का बोलबाला था, जहां दर्शक सस्ती टिकटों पर अपनी पसंदीदा फिल्में देखने आते थे। लेकिन अब मल्टीप्लेक्स के आने से इस सिस्टम में बड़ा बदलाव आया है। वर्तमान में, दर्शकों की प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं। विषेक चौहान का कहना है कि “आज के समय में लोग केवल फिल्म देखने नहीं, बल्कि एक अनुभव की तलाश में हैं।”
सिंगल स्क्रीन बनाम मल्टीप्लेक्स
सिंगल स्क्रीन थिएटर आमतौर पर बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करते थे, लेकिन उनकी कमी से आज यह व्यवस्था संकट में है। दूसरी ओर, मल्टीप्लेक्स ने एसी, बेहतर सुविधाएं, और एक शानदार अनुभव पेश किया है। विषेक चौहान ने कहा, “सिंगल स्क्रीन में वह अनौपचारिकता थी, जो दर्शकों को एक अलग ही अनुभव देती थी, लेकिन मल्टीप्लेक्स में आपको हर चीज़ व्यवस्थित और सुसज्जित मिलती है।”
मल्टीप्लेक्स में अनेक फिल्में, बड़ा स्क्रीन, और बेहतर साउंड क्वालिटी दर्शकों को खींचती है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि टिकट की कीमतें भी सिंगल स्क्रीन की तुलना में अधिक होती हैं, लेकिन फिर भी दर्शक इन्हें प्राथमिकता दे रहे हैं।
फिल्मों का चयन और दर्शकों का व्यवहार
विषेक चौहान का मानना है कि आधुनिक युवा पीढ़ी फिल्में देखने के लिए समय और पैसे दोनों को व्यर्थ नहीं करना चाहती। इसलिए, वे हमेशा बड़े बजट की और थ्रिलिंग फिल्मों की तलाश में रहते हैं। आजकल के दर्शक कहानी, प्रदर्शन, और संगीतमयता के साथ-साथ अनुभव को भी महत्व देते हैं। यह भी ध्यान देना जरूरी है कि मल्टीप्लेक्स में एक साथ कई फिल्मों का प्रदर्शन होता है, जिससे दर्शकों का चयन बढ़ा है।
निष्कर्ष
संक्षेप में, थिएटर का चेहरा आज पूरी तरह से बदल चुका है। सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स के बीच का अंतर केवल भौतिक नहीं, बल्कि अनुभव का भी है। विषेक चौहान की बातें हमारे लिए एक अहम संकेत हैं कि फिल्म उद्योग में परिवर्तनशीलता ही इसकी जीवनधारा है। दर्शकों की प्राथमिकता बदल रही है, और यह बदलाव ही फिल्मों के भविष्य का निर्धारण करेगा।
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