उत्तराखंड: UCC के खिलाफ अदालत जाएगी जमीयत उलमा-ए-हिंद, पूछा- समान नागरिक संहिता के नाम पर भेदभाव क्यों?
जमीयत उलमा-ए-हिंद उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के फैसले को अदालत में चैलेंज करेगी। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि शरीयत और धर्म के खिलाफ कोई भी कानून उन्हें मंजूर नहीं है। उन्होंने पूछा यदि अनुसूचित जनजातियों को संविधान विधेयक से छूट दी जा सकती है तो मुसलमानों को क्यों नहीं?

उत्तराखंड: UCC के खिलाफ अदालत जाएगी जमीयत उलमा-ए-हिंद, पूछा- समान नागरिक संहिता के नाम पर भेदभाव क्यों?
AVP Ganga
लेखक: प्रिया मेहरा, टीम नेटानागरी
परिचय
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अदालत जाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय का कारण समस्त नागरिकों के अधिकारों में भेदभाव के आरोप हैं। जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्पष्ट प्रश्न उठाया है कि समान नागरिक संहिता के नाम पर समाज के कुछ वर्गों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। इस समाचार ने राज्य और देश में नागरिक अधिकारों की बहस को और गरमा दिया है।
UCC क्या है?
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना, जो धार्मिक या व्यक्तिगत परंपराओं को ध्यान में रखे बिना लागू किया जाए। UCC का मुख्य उद्देश्य देश में सामाजिक न्याय और समानता को सुनिश्चित करना है। लेकिन इसके कार्यान्वयन को लेकर हमेशा विवाद उत्पन्न होते रहे हैं। विशेष रूप से विभिन्न धार्मिक समुदायों में इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की जाती रही है कि इससे उनके व्यक्तिगत धर्म और परंपराएं खतरे में पड़ सकती हैं।
जमीयत उलमा-ए-हिंद की चिंताएँ
जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि UCC के लागू होने से मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करते समय सभी समुदायों की राय ली जानी चाहिए। उनका कहना है कि यदि सरकार UCC को लागू करने में जल्दबाजी करती है, तो यह कई धर्मों के बीच भेदभाव का कारण बन सकता है।
अदालत की ओर कदम बढ़ाने की वजह
जमीयत ने अपने निर्णय की पुश्टि करते हुए यह कहा है कि वे इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। उनका तर्क है कि यदि सरकार इसे बिना किसी संवाद और सहमति के लागू करने का प्रयास करती है, तो यह लोकतंत्र और सामाजिक समानता के खिलाफ होगा। उन्होंने अधिकृत रूप से यह मांग की है कि सरकार विभिन्न धार्मिक समुदायों के विचारों को ध्यान में रखकर ही कोई कदम उठाए।
निष्कर्ष
यह स्थिति उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से चल रही राजनीतिक और सामाजिक बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जमीयत उलमा-ए-हिंद का अदालत में जाना यह दर्शाता है कि वे अपने समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए कितना गंभीर हैं। इस मुद्दे पर आने वाले समय में क्या निर्णय लिया जाएगा, यह सबकी नजरें इस पर टिके रहेंगी।
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