सरस्वती विद्या मंदिर के कार्यक्रम में शामिल हुए मोहन भागवत, बताया- कैसी होनी चाहिए भारत की शिक्षा व्यवस्था?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बिहार के सुपौल जिले में पहुंचे। यहां वह सरस्वती विद्या मंदिर के एक कार्यक्रम में शामिल हुए। इसके साथ ही उन्होंने एनक नवनिर्मित भवन का लोकार्पण भी किया।

सरस्वती विद्या मंदिर के कार्यक्रम में शामिल हुए मोहन भागवत, बताया- कैसी होनी चाहिए भारत की शिक्षा व्यवस्था?
AVP Ganga
नई दिल्ली: हाल ही में सरस्वती विद्या मंदिर ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें RSS प्रमुख मोहन भागवत ने शिक्षा व्यवस्था पर अपने विचार साझा किए। यह कार्यक्रम शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम दृष्टिकोणों और सुधारों पर केंद्रित था। भागवत ने कहा कि भारत की शिक्षा व्यवस्था को आत्मनिर्भरता, नैतिकता और संस्कारों के आधार पर तैयार करना चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य
मोहन भागवत ने शिक्षा के उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा केवल विद्या के संचार का माध्यम नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह बच्चों में नैतिक और सामाजिक भावनाओं का विकास भी करे। उन्होंने कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली में रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षकों की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया और कहा कि उन्हें बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रेरित करना चाहिए।
आध्यात्मिकता का महत्व
भागवत ने कार्यक्रम में आगे कहा कि भारत की शिक्षा प्रणाली को आध्यात्मिकता के तत्वों को समाहित करने की जरूरत है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने ज्ञान और योग का महत्व समझा और इसे अपनी शिक्षा प्रणाली में समाहित किया। आज की व्यवस्था में हमें फिर से इसी दृष्टिकोण को स्वीकार करना होगा।
नवीनतम तकनीकों का उपयोग
इसी के साथ, भागवत ने डिजिटल शिक्षा और तकनीकी नवाचारों के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन शिक्षा ने हमें तकनीकी के उपयोग का अनुभव कराया और इसे आगे बढ़ाना आवश्यक है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षा व्यक्तिगत सम्पर्क और संवाद पर निर्भर होती है।
निष्कर्ष
कार्यक्रम के समापन पर मोहन भागवत ने सभी उपस्थित शिक्षकों, माता-पिताओं और छात्रों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहें। उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव लाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। शिक्षा में सुधार केवल नीति निर्धारण से नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की भागीदारी से संभव है।
भारत की शिक्षा प्रणाली को नए दृष्टिकोण और नवाचारों की आवश्यकता है, ताकि यह विश्व में प्रतिस्पर्धी बन सके। इस दिशा में सरस्वती विद्या मंदिर का यह कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण कदम है।
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