नेपाल विद्रोह पर CJI बोले- हमें अपने संविधान पर गर्व:देखिए पड़ोसी देशों में क्या हाल है; गवर्नर डेडलाइन से जुड़ी सुनवाई के दौरान टिप्पणी की

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने बुधवार को नेपाल विद्रोह का जिक्र करते हुए कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए, देखिए पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है। नेपाल में तो हमने देख रहे हैं। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने जोड़ते हुए कहा कि हां, बांग्लादेश भी। जजों ने ये बयान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलील पर दिया। इससे पहले सॉलिसिटर जनरल ने कहा, 1970 से अब तक सिर्फ 20 बिल ही राष्ट्रपति के पास लंबित रहे, जबकि 90% बिल एक महीने में पास हो जाते हैं। सीजेआई ने इस पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि केवल आंकड़ों से निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है। अगर राज्यों के दिए आंकड़े नहीं माने गए तो आपके भी नहीं माने जाएंगे। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5-जजों की संविधान पीठ विधानसभा से पास बिलों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी की डेडलाइन तय करने वाली राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान राज्यों की दलील तेलंगाना के वकील निरंजन रेड्डी- संविधान 75 साल पहले बना था, जब राज्यों में अलगाव की प्रवृत्ति थी। अब ऐसा नहीं है, इसलिए राज्यपाल को विवेकाधिकार देना राज्यों की शक्ति कम करने जैसा होगा। तमिलनाडु के वकील पी. विल्सन- बिल राजनीतिक इच्छा का प्रतीक होता है, राज्यपाल अदालत नहीं हैं कि वे उसकी संवैधानिकता पर फैसला करें। मेघालय के एडवोकेट जनरल अमित कुमार- अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास सिर्फ एक विकल्प है कि बिल पर हस्ताक्षर करना। वहीं, आंध्र प्रदेश सरकार ने केंद्र की दलीलों का समर्थन किया, लेकिन कहा कि राज्य सरकारें अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले पर सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकतीं। पिछली 8 सुनवाई में क्या हुआ... 9 सितंबरः कर्नाटक सरकार बोली- राष्ट्रपति और राज्यपाल सिर्फ नाममात्र के प्रमुख कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने इस पर अपनी दलील दी और कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत, राष्ट्रपति और राज्यपाल सिर्फ नाममात्र के प्रमुख हैं। दोनों, केंद्र और राज्यों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं। कर्नाटक सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5-जजों की बेंच को बताया कि विधानसभा में पारित बिलों पर कार्रवाई के लिए राज्यपाल की संतुष्टि ही मंत्रिपरिषद की संतुष्टि है। पूरी खबर पढ़ें... 3 सितंबर: बंगाल सरकार ने कहा था- राज्यपालों को बिल पर तुरंत फैसला लेना चाहिए इससे पहले, 3 सितंबर को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि बिल के रूप में जनता की इच्छा राज्यपालों और राष्ट्रपति की मनमर्जी के अधीन नहीं हो सकती क्योंकि कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से प्रतिबंधित किया गया है। TMC सरकार ने दलील दी थी कि राज्यपाल को विधानसभा से भेजे गए बिलों पर तुरंत फैसला लेना चाहिए, क्योंकि उनके पास मंजूरी रोकने का कोई अधिकार नहीं है। राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते और विधानसभा में पास बिल की विधायी क्षमता की जांच नहीं कर सकते, जो न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। 2 सितंबर: बिलों पर विचार करना राष्ट्रपति-राज्यपालों का काम नहीं तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सरकार ने विधानसभा में पास बिलों पर फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए डेडलाइन तय करने के पक्ष में तर्क दिया। पश्चिम बंगाल की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि बिलों पर विचार करने के मुद्दे पर राष्ट्रपति और राज्यपालों का कोई व्यक्तिगत काम नहीं है। वे केंद्र और राज्य की मंत्रिपरिषद की मदद के लिए काम करते हैं। पूरी खबर पढ़ें... 28 अगस्त: केंद्र बोला- राज्य सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन नहीं दे सकते केंद्र सरकार ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल की विधानसभा से पास बिलों पर कार्रवाई के खिलाफ राज्य सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दायर नहीं कर सकते। केंद्र ने कहा कि राज्य सरकारें अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। क्योंकि मौलिक अधिकार आम नागरिकों के लिए होते हैं, राज्यों के लिए नहीं। पूरी खबर पढ़ें... 26 अगस्त: भाजपा शासित राज्यों ने कहा- कोर्ट समय-सीमा नहीं तय कर सकतीं 26 अगस्त को भाजपा शासित राज्यों ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था। महाराष्ट्र, गोवा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पुडुचेरी समेत भाजपा शासित राज्यों के वकीलों ने कहा कि बिलों पर मंजूरी देने का अधिकार कोर्ट का नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने पूछा कि अगर कोई व्यक्ति 2020 से 2025 तक बिलों पर रोक लगाकर रखेगा, तो क्या कोर्ट को बेबस होकर बैठ जाना चाहिए? CJI ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट को 'संविधान के संरक्षक' के रूप में अपनी जिम्मेदारी त्याग देनी चाहिए? महाराष्ट्र की ओर से सीनियर वकील हरीश साल्वे ने कहा कि बिलों पर मंजूरी देने का अधिकार सिर्फ राज्यपाल या राष्ट्रपति को है। संविधान में डीम्ड असेंट यानी बिना मंजूरी किए भी मान लिया जाए कि बिल पास हो गया जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। पूरी खबर पढ़ें... 21 अगस्त: केंद्र बोला- राज्यों को बातचीत करके विवाद निपटाने चाहिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों पर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो राज्यों को कोर्ट की बजाय बातचीत से हल निकालना चाहिए। केंद्र ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान अदालतें नहीं हो सकतीं। लोकतंत्र में संवाद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारे यहां दशकों से यही प्रथा रही है। पूरी खबर पढ़ें... 20 अगस्त: SC बोला- सरकार राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं। अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पास होकर दूसरी बार राज्यपाल के पास आता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है कि वे अनिश्चितकाल तक मंजूरी रोककर रखें। 19

Sep 10, 2025 - 18:33
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नेपाल विद्रोह पर CJI बोले- हमें अपने संविधान पर गर्व:देखिए पड़ोसी देशों में क्या हाल है; गवर्नर डेडलाइन से जुड़ी सुनवाई के दौरान टिप्पणी की
नेपाल विद्रोह पर CJI बोले- हमें अपने संविधान पर गर्व:देखिए पड़ोसी देशों में क्या हाल है; गवर्नर डेडल�

नेपाल विद्रोह पर CJI बोले- हमें अपने संविधान पर गर्व: देखिए पड़ोसी देशों में क्या हाल है; गवर्नर डेडलाइन से जुड़ी सुनवाई के दौरान टिप्पणी की

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चीफ जस्टिस बीआर गवई ने हाल ही में नेपाल विद्रोह पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए। उनका यह बयान सुप्रीम कोर्ट में गवर्नर और राष्ट्रपति की अनुमति से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के दौरान आया। जस्टिस गवई ने कहा, "जब हम अपने संविधान को देखते हैं, तो हमें विभिन्न पड़ोसी देशों की स्थिति का भी अवलोकन करना चाहिए। खासकर नेपाल में जो चल रहा है।" इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने बांग्लादेश का जिक्र करते हुए कहा, "हां, वहां की स्थिति भी देखी जानी चाहिए।"

सुनवाई का संदर्भ

सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की पीठ ने विधायी मामलों में राज्यपाल की भूमिका की महत्वपूर्ण समीक्षा की। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "1970 से अब तक केवल 20 बिल राष्ट्रपति के पास लम्बित रहे हैं, जबकि 90% बिल एक महीने के भीतर पास होते हैं।" इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया कि क्या केवल आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकालना उचित है। उन्होंने कहा, "यदि राज्यों के आंकड़े मानने योग्य नहीं हैं, तो आपके आंकड़े भी नहीं माने जाएंगे।"

राज्य सरकारों की दलीलें

इस सुनवाई के दौरान विभिन्न राज्यों के वकीलों ने अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। तेलंगाना के वकील निरंजन रेड्डी ने कहा कि संविधान 75 साल पहले लिखा गया था, जब राज्यों में विभाजन की प्रवृत्ति थी। वे आज की राजनीतिक वास्तविकता के संदर्भ में इस पर विचार करने पर जोर दे रहे थे। तमिलनाडु के वकील पी. विल्सन ने यह भी कहा कि बिल राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतीक है, और राज्यपाल को इस पर निर्णय लेना उचित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राज्यपालों को अनिश्चितकाल तक विधेयकों पर निर्णय लेने के अधिकार नहीं हैं। कई सुनवाई में यह स्पष्ट हुआ कि संविधान के अनुसार निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं। जस्टिस गवई ने यह भी पूछा कि "क्या सुप्रीम कोर्ट को संविधान के संरक्षक के रूप में अपनी जिम्मेदारी छोड़ देनी चाहिए?"

संविधान की स्थिति

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने बताया कि बिलों पर मंजूरी देने का अधिकार केवल राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास है। उन्होंने यह उल्लेख किया कि संविधान में "डीम्ड असेंट" का कोई प्रावधान नहीं है, जिसका मतलब है कि बिना मंजूरी के भी कोई विधेयक मान्य नहीं हो सकता। यह स्वागत योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की विधान सभाओं में पारित विधेयकों के अधिकार की मात्रा स्पष्ट की है।

निष्कर्ष

इस महत्वपूर्ण सुनवाई से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान अपने मूल स्वरूप में अद्वितीय है और इसे सभी राज्यों के लिए एक समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। इस पर गर्व करना चाहिए। पड़ोसी देशों की स्थिति का चिंतन करते हुए हमें अपने लोकतंत्र की मजबूती पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस सभी घटनाक्रमों का भविष्य के लिए क्या महत्व है, यह देखना दिलचस्प होगा।

यह लेख टीम avpganga द्वारा लिखा गया है।

Keywords:

Nepal uprising, CJI remarks, constitutional pride, neighboring countries, gubernatorial deadlines, legislative processes, India Supreme Court, state governance

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