उत्तराखंड सतर्कता विभाग: भ्रष्टाचार के नए गढ़! निर्दोष परिवारों पर झूठे मुकदमों का कहर, न्याय का देवता भी नहीं करेगा माफ!

उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

May 4, 2025 - 01:15
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उत्तराखंड सतर्कता विभाग: भ्रष्टाचार के नए गढ़! निर्दोष परिवारों पर झूठे मुकदमों का कहर, न्याय का देवता भी नहीं करेगा माफ!
उत्तराखंड के सतर्कता विभाग पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना पर्याप्त प्रशिक्षण, SOP के उल्लंघन के साथ लगातार निर्दोष अधिकारियों को फर्जी ट्रैप में फंसाने के मामले उजागर हुए हैं। निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन पर SOP से जुड़े तथ्यों को लेकर उच्च न्यायालय में गुमराह करने का आरोप है। प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त अभियान के बीच सतर्कता विभाग खुद भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा नज़र आ रहा है।

हल्द्वानी/देहरादून: avpganga को प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance Uttarakhand) ने हाल ही में हल्द्वानी स्थित अपने सेक्टर कार्यालय (Vigilance Haldwani) में निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन के निर्देश पर जांच और विवेचक अधिकारियों के लिए एक हाइब्रिड प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का घोषित उद्देश्य 'भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड' की मुहिम को आगे बढ़ाना और अधिकारियों को त्रुटिरहित विवेचना व प्रभावी पैरवी के लिए तैयार करना था, जिसमें टेप प्रकरणों और आय से अधिक संपत्ति जैसे मामलों पर विशेष ध्यान दिया गया।

सतही तौर पर यह कदम सराहनीय लग सकता है, लेकिन सतर्कता विभाग (Vigilance Department) के हालिया और अतीत के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, यह प्रशिक्षण कई गंभीर और असहज करने वाले सवाल खड़े करता है। क्या यह वाकई व्यवस्था में सुधार का ईमानदार प्रयास है, या फिर उन गंभीर आरोपों और कथित चूकों पर पर्दा डालने की कोशिश है, जिनकी वजह से न जाने कितने सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों की ज़िंदगियाँ कथित तौर पर बर्बाद हुई हैं? सवाल यह भी है कि यह प्रशिक्षण अब क्यों आयोजित किया जा रहा है? उन मामलों का क्या जिनमें पहले ही कथित तौर पर बिना पर्याप्त सबूत, बिना किसी लंबित कार्य (pendency) के आधार पर और सबसे महत्वपूर्ण, बिना किसी स्थापित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) या उचित प्रशिक्षण के अभाव में लोगों को फंसाया गया?

नेतृत्व पर सवाल और SOP का कथित फ्रॉड:

आरोप सीधे तौर पर विभाग के शीर्ष नेतृत्व, खासकर निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन (Dr. V Murgeshan vigilance fraud), की कार्यशैली पर लगते हैं। क्या यह अपने आप में एक गंभीर अनियमितता या संस्थागत भ्रष्टाचार नहीं है कि अप्रशिक्षित या प्रक्रिया से अनभिज्ञ अधिकारी (dishonest vigilance officer) संवेदनशील ट्रैप की कार्रवाइयों को अंजाम देते रहे, जिसके परिणामस्वरूप कई फर्जी रिश्वत मामले (fake bribe case) या उत्तराखंड फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) सामने आए?

इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात माननीय उच्च न्यायालय में सामने आई, जहाँ विभाग पर SOP को लेकर कथित तौर पर गुमराह करने का आरोप है (sop fraud by murgesh vigilance uttarakhand)। यह बात रिकॉर्ड पर है कि कैसे विभाग के अधिकारियों ने शपथ पर SOP होने का दावा किया, जबकि बाद में निदेशक महोदय ने न्यायालय से SOP न होने की बात भरी अदालत में कही है। इस कथित विजिलेंस उत्तराखंड फ्रॉड (vigilance uttarakhand fraud) ने विभाग की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। यह घटनाक्रम विजिलेंस उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand), विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी (Vigilance Sector Haldwani), विजिलेंस सेक्टर देहरादून (Vigilance Dehradun), विजिलेंस हेड क्वार्टर (Vigilance Head Quater) और विजिलेंस एस्टाब्लिशमेंट (Vigilance Establishment) के भीतर चल रही कथित मनमानी और पारदर्शिता की कमी की ओर इशारा करता है।

मानवीय त्रासदी और नैतिक ज़िम्मेदारी:

यह केवल प्रक्रियात्मक चूक का मामला नहीं है, यह उन अनगिनत परिवारों की मानवीय त्रासदी है जो विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा कथित झूठे जाल (false trap by vigilance haldwani) या विजिलेंस उत्तराखंड द्वारा फर्जी ट्रैप (fake trap by vigilance uttarakhand) का शिकार हुए। एक सरकारी कर्मचारी पर लगा भ्रष्टाचार का आरोप न केवल उसके करियर को तबाह करता है, बल्कि उसके पूरे परिवार को सामाजिक कलंक और आर्थिक तंगी की आग में झोंक देता है। बच्चों की पढ़ाई, भविष्य, और परिवार का मान-सम्मान सब दांव पर लग जाता है।

आज जब विभाग प्रशिक्षण की बात कर रहा है, तो उन अधिकारियों को आत्ममंथन करना चाहिए जिन्होंने अतीत में कथित तौर पर अन्यायपूर्ण कार्रवाइयां कीं। समाज में यह धारणा बलवती हो रही है कि निर्दोषों और उनके परिवारों को रुलाने वालों को ईश्वर कभी माफ नहीं करता। क्या उन अधिकारियों को इस बात का भय नहीं सताता कि उनके कृत्यों का श्राप कहीं उनके बच्चों को न लग जाए? यह एक नैतिक सवाल है जो हर उस अधिकारी को खुद से पूछना चाहिए जिसने कभी किसी निर्दोष के साथ अन्याय किया हो।

न्यायिक हस्तक्षेप और मुख्यमंत्री की मंशा का सम्मान:

यह तथ्य है कि माननीय उच्च न्यायालय को कई विजिलेंस के केस में बार बार सामने आ रही थी इसलिए मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ा और भगवान तुल्य न्यायमूर्ति श्री राकेश थपलियाल जी ने प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। यह न्यायिक अवलोकन स्वयं ही विभाग की कार्यप्रणाली में व्याप्त खामियों का एक पुख्ता प्रमाण है।

उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी लगातार एक पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी मंशा नेक है और वे वास्तव में प्रदेश को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सतर्कता विभाग की कार्रवाइयां उनकी इस मंशा के अनुरूप हैं? या फिर कथित तौर पर ईमानदार अधिकारियों को फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) में फंसाकर एक भय का माहौल बनाया जा रहा है, जो मुख्यमंत्री की सोच के विपरीत है?

निष्कर्ष:

AVP GANGA का मानना है कि केवल प्रशिक्षण आयोजित कर देना पर्याप्त नहीं है। सतर्कता विभाग उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) को अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, उन सभी पुराने मामलों की निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिए जिनमें फर्जी ट्रैप (fake trap) या प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। डॉ. वी. मुरुगेशन और विभाग को पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी और यह साबित करना होगा कि भविष्य में किसी भी निर्दोष को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाएगा। जब तक अतीत की गलतियों को स्वीकार कर सुधारा नहीं जाता और पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता, तब तक ऐसे प्रशिक्षण केवल दिखावा ही माने जाएंगे। avpganga इस पूरे मामले पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखेगा और सच को सामने लाने का प्रयास करता रहेगा।

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