सावित्रीबाई फुले की कहानी: 9 साल की उम्र में शादी, इसके बाद शुरू की पढ़ाई और बनीं देश की पहली शिक्षिका
सावित्रीबाई फुले की शादी महज नौ साल की उम्र में हो गई थी। उनके पति की उम्र 13 साल थी। इस समय तक सावित्रीबाई कभी स्कूल नहीं गई थीं। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई की और देश की पहली शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई फुले की कहानी: 9 साल की उम्र में शादी, इसके बाद शुरू की पढ़ाई और बनीं देश की पहली शिक्षिका
AVP Ganga
भारत की शिक्षा प्रणाली में एक महान हस्ताक्षर सावित्रीबाई फुले की कहानी बहुत प्रेरणादायक है। एक समय जब महिलाएं शिक्षा से वंचित थीं, तब उन्होंने न केवल पढ़ाई की, बल्कि अपनी मेहनत और संघर्ष से समाज में एक नई सोच को जन्म दिया। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे सावित्रीबाई फुले ने केवल 9 साल की उम्र में विवाह करने के बाद भी शिक्षा की ओर कदम बढ़ाया और देश की पहली शिक्षिका बनीं।
छोटी उम्र में विवाह की कहानी
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नाशिक जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम लक्ष्मण राव और सावित्रीभूमि था। जब वे केवल 9 साल की थीं, तब उनका विवाह ज्योतिबा फुले से हुआ। इस विवाह ने उनकी जीवन की दिशा को बदलकर रख दिया। ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को शिक्षा के महत्व का अनुभव कराया और उन्हें पढ़ाई के प्रति प्रेरित किया।
शिक्षा की ओर कदम
शादी के बाद भी सावित्रीबाई ने शिक्षा का मार्ग नहीं छोड़ा। उन्होंने खुद को शिक्षा के लिए समर्पित किया और अनेक चुनौतियों का सामना किया। पहली बार, उन्होंने खुद से पढ़ाई करना शुरू किया। इसके बाद, उन्हें एक स्कूल में पढ़ने का मौका मिला जहां उन्होंने अपनी शिक्षा को और आगे बढ़ाया।
पहली शिक्षिका का दर्जा
सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने मिलकर 1848 में पहली महिला स्कूल की स्थापना की। उनके इस साहसी कदम ने भारतीय शिक्षा में एक नई क्रांति लाने का काम किया। सावित्रीबाई ने समाज की धारा को बदलते हुए न केवल महिलाओं को शिक्षा दी, बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर भी जागरूकता फैलाई। उन्होंने बाल विवाह और जातिवाद के खिलाफ भी आवाज उठाई।
सामाजिक सुधारों में योगदान
सावित्रीबाई का योगदान केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। उन्होंने कई पत्रिकाओं और लेखों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाई। उनकी जीवन यात्रा यह दिखाती है कि सच्ची मेहनत और साहस से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
सावित्रीबाई फुले की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि हमारे समाज को एक नई दिशा देने का भी काम करती है। उनकी मेहनत ने साबित कर दिया कि शिक्षा का प्रकाश हर अंधेरे को दूर कर सकता है। आज के संदर्भ में, हमें सावित्रीबाई से सीख लेकर शिक्षा का महत्व समझना चाहिए और समाज में समानता के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
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