जेल में दाह संस्कार की मनाही नहीं…हाईकोर्ट ने खारिज कर दी अफजल गुरू और मकबूल भट्ट से जुड़ी याचिका
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल में दफन आतंकवादी मकबूल भट्ट और अफजल गुरू की कब्रों को हटाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में किसी संवैधानिक या वैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, इसलिए जनहित याचिका पर विचार योग्य नहीं है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी जनहित याचिका में तभी राहत दी जा सकती है, जब यह दिखाया जाए कि किसी संवैधानिक प्रावधान, मौलिक अधिकार या कानूनी प्रावधान का उल्लंघन हुआ हो। अदालत ने यह भी कहा कि जेल परिसर के अंदर दाह-संस्कार या दफनाने पर किसी तरह की कानूनी रोक नहीं है।

जेल में दाह संस्कार की मनाही नहीं…हाईकोर्ट ने खारिज कर दी अफजल गुरू और मकबूल भट्ट से जुड़ी याचिका
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दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में तिहाड़ जेल में दफन आतंकवादी मकबूल भट्ट और अफजल गुरू की कब्रों को हटाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। इस मामले में न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि जेल परिसर के भीतर दाह-संस्कार या दफनाने पर किसी प्रकार की कानूनी रोक नहीं है।
कोर्ट का निर्णय और इसका महत्व
याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इसमें किसी संवैधानिक या वैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। यदि कोई जनहित याचिका दायर की जाती है, तो यह आवश्यक है कि याचिकाकर्ता यह सिद्ध करे कि किसी संवैधानिक प्रावधान, मौलिक अधिकार, या कानूनी प्रावधान का उल्लंघन हुआ है। इस मामले में ऐसा कोई तत्व नहीं पाया गया।
जेल में दाह संस्कार पर कानूनी स्थिति
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बात को भी स्पष्ट किया कि जेल परिसर में दाह संस्कार करने की प्रक्रिया पर कोई को रोक नहीं है। इससे यह संकेत मिलता है कि यदि कानूनी प्रावधानों का पालन किया जाए, तो जेल में दाह संस्कार संभव है। यह निर्णय उन मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण है जहां आतंकियों को दफन या दाह संस्कार की अनुमति दी गई है, जोकि संवैधानिक अधिकारों का विषय है।
क्या यह फैसला चुनावी राजनीति को प्रभावित करेगा?
इस निर्णय का राजनीतिक मैदान पर व्यापक असर पड़ सकता है। कई राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने लाभ के लिए भुनाने की कोशिश कर सकते हैं। खासकर, जो दल आतंकवाद और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर जोर देते हैं, वे इसे अपने पक्ष में उपयोग कर सकते हैं।
समाज में चर्चा और प्रतिक्रिया
कोर्ट के इस निर्णय ने समाज में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं। कुछ लोग इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं, यह मानते हुए कि यह संविधान और कानून के अनुपालन को दर्शाता है। वहीं, कुछ इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हैं। इस मुद्दे पर चर्चा सामाजिक मीडिया में भी हो रही है, जहाँ लोग अपने विचार साझा कर रहे हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में विभिन्न धाराओं की प्रतिक्रियाओं को भी जन्म दे रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि किसी भी जनहित याचिका का विचार तभी किया जा सकता है जब संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन सिद्ध किया जा सके। इसके साथ ही, जेल में दाह संस्कार की अनुमति देने की कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना भी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।
अंततः, यह मामला भारतीय न्यायपालिका की सक्षमता और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आगे भी इस विषय पर होने वाली चर्चा और विवादों को देखना दिलचस्प होगा।
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