देश में बाल-विवाह के मामले 6 गुना बढ़े:असम में सबसे ज्यादा केस; शादी के लिए 16 हजार से ज्यादा लड़कियों का अपहरण हुआ
देश में बाल विवाह रोकने के लिए सख्त कानून होने के बावजूद हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में बाल विवाह के मामले 2022 की तुलना में छह गुना बढ़ गए। रिपोर्ट बताती है कि साल 2023 में 6,038 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2022 में केवल 1,002 और 2021 में 1,050 मामले दर्ज हुए थे। इस तरह तीन सालों में बाल विवाह से जुड़े मामलों में अचानक बड़ी बढ़ोतरी देखी गई है। सबसे ज्यादा मामले असम में दर्ज हुए, जहां अकेले 5,267 केस सामने आए। यह पूरे देश में दर्ज कुल मामलों का करीब 90% है। इसके अलावा, तमिलनाडु में 174, कर्नाटक में 145 और पश्चिम बंगाल में 118 मामले दर्ज हुए। वहीं, छत्तीसगढ़, नगालैंड, लद्दाख और लक्षद्वीप में साल 2023 में एक भी केस दर्ज नहीं हुआ। NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, बाल विवाह के लिए 16,737 लड़कियों और 129 लड़कों का अपहरण किया गया। कानून में शादी करवाने वालों पर भी सजा का प्रावधान इस रिपोर्ट के आने के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि ये डेटा बताता है कि बाल विवाह के खिलाफ कानून होने के बावजूद जमीनी स्तर पर अभी भी जागरूकता और सख्त कार्रवाई की जरूरत है। दुनिया के एक तिहाई बाल विवाह भारत में होते हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के का विवाह करना प्रतिबंधित है। इतना ही नहीं, जो लोग शादी करवाते हैं या उसमें मदद करते हैं, उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाती है। UN में रिपोर्ट- भारत में 2 साल में 4 लाख बाल विवाह रोके; असम में 84%, महाराष्ट्र-बिहार में 70% तक गिरावट 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र (Unites Nations) आम सभा के दौरान एक कार्यक्रम में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की रिपोर्ट ‘टिपिंग पॉइंट टू जीरो: एविडेंस टुवर्ड्स अ चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ जारी की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि भारत ने बाल विवाह रोकथाम में बड़ी उपलब्धि दर्ज की है। रिपोर्ट में बताया गया था कि 2023 से अब तक 4 लाख बाल विवाह रोके गए हैं। बाल विवाह निरोधक कानून बनने के बाद यह सबसे बड़ी संख्या है। 3 सालों में बाल विवाह 69% घटे। दरअसल, 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा था कि इस रफ्तार से यह कुरीति खत्म करने में 300 साल लग जाएंगे। पूरी खबर पढ़ें... -------------------------------------------- बाल विवाह से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- कानून में कई खामियां, अवेयरनेस की जरूरत सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2024 को बाल विवाह को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था- बाल विवाह निषेध अधिनियम किसी भी ‘पर्सनल लॉ’ की परंपरा से बाधित नहीं हो सकता। ये बच्चों की स्वतंत्रता, पसंद, आत्मनिर्णय और बचपन का आनंद लेने के अधिकार से वंचित करते हैं। जबरन और कम उम्र में शादी से दोनों पक्षों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमें जरूरत है अवेयरनेस कैंपेनिंग की। पूरी खबर पढ़ें...

देश में बाल-विवाह के मामले 6 गुना बढ़े: असम में सबसे ज्यादा केस; शादी के लिए 16 हजार से ज्यादा लड़कियों का अपहरण हुआ
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लेखक: सुमन शर्मा, प्रिया देसाई, टीम avpganga
देश में बाल विवाह की क्लिक होने वाले मामलों में अचानक वृद्धि ने सभी को चौंका दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, बाल विवाह के खिलाफ लागू सख्त कानून होने के बाद भी, यह समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में बाल विवाह के मामले 2022 की तुलना में 6 गुना बढ़ गए हैं।
रिपोर्ट का अवलोकन
NCRB की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2023 में 6,038 ऐसे मामले दर्ज किए गए, जबकि 2022 में यह संख्या केवल 1,002 थी। जब हम 2021 की बात करें, तो उस वर्ष भी सिर्फ 1,050 मामले थे। यह भी alarming है कि असम राज्य में अकेले 5,267 केस दर्ज हुए, जो कि पूरे देश के मामलों का लगभग 90% है। अन्य राज्यों की स्थिति भी चिंता का विषय है; जैसे कि तमिलनाडु में 174, कर्नाटक में 145 और पश्चिम बंगाल में 118 मामले सामने आए।
बाल विवाह का अपहरण ट्रेंड
रिपोर्ट के अनुसार, बाल विवाह के लिए 16,737 लड़कियों और 129 लड़कों का अपहरण किया गया। यह आंकड़ा दर्शाता है कि जैसे ही बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की बात आती है, हमारे देश में यह कितनी विकराल स्थिति में पहुंच चुकी है। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अंतर्गत, 18 साल से कम उम्र की लड़कियों का विवाह वर्जित है। इसलिए, इसके उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन इसे लागू करने में अधिकारी कितने प्रभावी हैं यह एक बड़ा प्रश्न है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र ने बाल विवाह रोकने के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया है कि भारत में पिछले दो सालों में चार लाख बाल विवाह रोके गए हैं, जिसमें असम, महाराष्ट्र, और बिहार में खासकर कमी आई है। हालांकि, जमीनी स्तर पर काम की कमी के चलते यह सकारात्मक आंकड़े भी निरंतर चिंताजनक हैं।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि बाल विवाह को रोकने के लिए जागरूकता और सख्त कार्रवाई की और आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि बच्चों की स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय से वंचित करने वाले कानूनों की खामियों को दूर करना अनिवार्य है। न्यायालय ने बताया है कि बाल विवाह की प्रथा पर रोक लगाने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है।
निष्कर्ष
सरकार और समाज को मिलकर इस समस्या की गंभीरता को समझना होगा। इतना ही नहीं, सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हमें मानसिकता में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। केवल सख्त कानून ही नहीं, बल्कि इसके साथ-साथ समाज में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में हम बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को पूरी तरह समाप्त कर सकें।
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