1800 करोड़ की जमीन 300 करोड़ में खरीदी:डिप्टी सीएम अजित पवार का बेटा जांच के घेरे में, विपक्ष बोला सौदा सरकारी मंजूरी के बिना हुआ

पुणे में मुंडवा की 40 एकड़ सरकारी जमीन की विवादित बिक्री को लेकर अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार की फर्म अमाडिया एंटरप्राइजेज जांच के घेरे में है। सस्पेंड तहसीलदार ने भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) को जमीन खाली करने का नोटिस दिया। जिला कलेक्टर ने इस नोटिस को अवैध बताया और पूरी प्रक्रिया रोक दी। जांच में कई गंभीर गड़बड़ियां सामने आई हैं, जिसने इस जमीन सौदे को और भी विवादों में घेर दिया है। क्या है मामला महारष्ट्र के पुणे स्थित मुंडवा इलाके की 40 एकड़ जमीन महार वतन की जमीन है, यानी यह पहले अनुसूचित जाति के महार (SC) समुदाय की जमीन हैं। साल 1973 में सरकार ने यह जमीन भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) को 15 साल के लिए लीज पर दे दी। फिर 1988 में लीज बढ़ाकर 50 साल कर दी गई। BSI हर साल सिर्फ 1 रुपए किराया देकर यहां अपना रिसर्च और दफ्तर का काम करता रहा। सरकारी कागजों में इस जमीन का मालिकाना हक आज भी सरकार के नाम ही दर्ज है। लेकिन इस साल 20 मई को 272 मूल जमीन मालिकों की ओर से पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाली शीतल तेजवानी ने यह जमीन अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP को लगभग 300 करोड़ रुपए में बेच दी। अमाडिया में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार बहुसंख्यक साझेदार हैं। विपक्ष का आरोप है कि जमीन का बाजार मूल्य करीब 1800 करोड़ रुपए है और सौदा जरूरी सरकारी मंजूरी के बिना किया गया। सिर्फ छह दिन बाद अमाडिया ने तत्कालीन तहसीलदार सूर्यकांत येओले से जमीन खाली कराने का अनुरोध किया। इसके बाद 9 जून को येओले ने BSI को नोटिस भेजते हुए दावा किया कि ओक्यूपेंसी फीस (अधिभोग शुल्क) जमा कर दी है और इसलिए BSI की लीज खत्म हो चुकी है। कलेक्टर ने बताया नोटिस अवैध, सभी कार्रवाई रोकी बेदखली नोटिस पाकर BSI की टीम पुणे के जिला कलेक्टर जितेंद्र डूडी से मिली। जांच के बाद कलेक्टर ने पाया कि पूरे नोटिस की प्रक्रिया गलत थी। न तो जमीन मालिकों ने ओक्यूपेंसी फीस जमा होने का कोई सबूत था, ना ही सरकारी जमीन वापस देने की तय प्रक्रिया का पालन किया गया था। कलेक्टर ने कहा कि तहसीलदार ने जमीन मालिकों के दावे को बिना जांच सीधे स्वीकार कर लिया, जबकि जमीन सरकारी रिकॉर्ड में अब भी सरकार के नाम दर्ज थी। कलेक्टर ने तुरंत बेदखली प्रक्रिया रुकवाई और पूरा मामला जांच के लिए भेज दिया। बाद में तहसीलदार येओले को एक अन्य जमीन मामले में निलंबित कर दिया गया। जमीन रजिस्ट्री पर 21 करोड़ का स्टाम्प शुल्क हुआ था माफ जिला प्रशासन की जांच में पता चला कि जमीन की रजिस्ट्री पर करीब 21 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी माफ कर दी गई थी। इसके बाद भी अमाडिया को जमीन का असली कब्जा नहीं मिला। प्रशासन का कहना है कि ना तो BSI को हटाने की कोई सही प्रक्रिया अपनाई गई और ना ही जमीन का कब्जा किसी को सौंपा गया। यानी कागजों में सौदा हुआ, लेकिन जमीन पर वहीं की वहीं रही। मामला अब पुलिस जांच के घेरे में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि जमीन सौदा रद्द कर दिया गया है और दावा किया कि पार्थ पवार को यह नहीं पता था कि जमीन सरकारी है। इसी बीच IGR ऑफिस की शिकायत पर पिंपरी चिंचवाड़ पुलिस ने दिग्विजय पाटिल, शीतल तेजवानी और निलंबित उप-पंजीयक आर बी तारू के खिलाफ धोखाधड़ी और गबन की FIR दर्ज की है। ---- ये खबर भी पढ़े... आज का एक्सप्लेनर:1800 करोड़ की जमीन 300 में, बेटा फंसा तो अजित पवार बोले- अनुभव से सीखेगा; हजारों करोड़ हेरफेर के आरोपों से कैसे निपटे दादा कभी 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले का आरोप, कभी 25 हजार करोड़ के कोऑपरेटिव बैंक घपले में नाम। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की फाइलें खुलीं, सुर्खियां बनीं... लेकिन किसी नई कुर्सी के साथ हर बार मामला ठंडा पड़ गया। पूरी खबर पढ़े।

Nov 10, 2025 - 18:33
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1800 करोड़ की जमीन 300 करोड़ में खरीदी:डिप्टी सीएम अजित पवार का बेटा जांच के घेरे में, विपक्ष बोला सौदा सरकारी मंजूरी के बिना हुआ
पुणे में मुंडवा की 40 एकड़ सरकारी जमीन की विवादित बिक्री को लेकर अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार की फर्म अमाडिया एंटरप्राइजेज जांच के घेरे में है। सस्पेंड तहसीलदार ने भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) को जमीन खाली करने का नोटिस दिया। जिला कलेक्टर ने इस नोटिस को अवैध बताया और पूरी प्रक्रिया रोक दी। जांच में कई गंभीर गड़बड़ियां सामने आई हैं, जिसने इस जमीन सौदे को और भी विवादों में घेर दिया है। क्या है मामला महारष्ट्र के पुणे स्थित मुंडवा इलाके की 40 एकड़ जमीन महार वतन की जमीन है, यानी यह पहले अनुसूचित जाति के महार (SC) समुदाय की जमीन हैं। साल 1973 में सरकार ने यह जमीन भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) को 15 साल के लिए लीज पर दे दी। फिर 1988 में लीज बढ़ाकर 50 साल कर दी गई। BSI हर साल सिर्फ 1 रुपए किराया देकर यहां अपना रिसर्च और दफ्तर का काम करता रहा। सरकारी कागजों में इस जमीन का मालिकाना हक आज भी सरकार के नाम ही दर्ज है। लेकिन इस साल 20 मई को 272 मूल जमीन मालिकों की ओर से पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाली शीतल तेजवानी ने यह जमीन अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP को लगभग 300 करोड़ रुपए में बेच दी। अमाडिया में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार बहुसंख्यक साझेदार हैं। विपक्ष का आरोप है कि जमीन का बाजार मूल्य करीब 1800 करोड़ रुपए है और सौदा जरूरी सरकारी मंजूरी के बिना किया गया। सिर्फ छह दिन बाद अमाडिया ने तत्कालीन तहसीलदार सूर्यकांत येओले से जमीन खाली कराने का अनुरोध किया। इसके बाद 9 जून को येओले ने BSI को नोटिस भेजते हुए दावा किया कि ओक्यूपेंसी फीस (अधिभोग शुल्क) जमा कर दी है और इसलिए BSI की लीज खत्म हो चुकी है। कलेक्टर ने बताया नोटिस अवैध, सभी कार्रवाई रोकी बेदखली नोटिस पाकर BSI की टीम पुणे के जिला कलेक्टर जितेंद्र डूडी से मिली। जांच के बाद कलेक्टर ने पाया कि पूरे नोटिस की प्रक्रिया गलत थी। न तो जमीन मालिकों ने ओक्यूपेंसी फीस जमा होने का कोई सबूत था, ना ही सरकारी जमीन वापस देने की तय प्रक्रिया का पालन किया गया था। कलेक्टर ने कहा कि तहसीलदार ने जमीन मालिकों के दावे को बिना जांच सीधे स्वीकार कर लिया, जबकि जमीन सरकारी रिकॉर्ड में अब भी सरकार के नाम दर्ज थी। कलेक्टर ने तुरंत बेदखली प्रक्रिया रुकवाई और पूरा मामला जांच के लिए भेज दिया। बाद में तहसीलदार येओले को एक अन्य जमीन मामले में निलंबित कर दिया गया। जमीन रजिस्ट्री पर 21 करोड़ का स्टाम्प शुल्क हुआ था माफ जिला प्रशासन की जांच में पता चला कि जमीन की रजिस्ट्री पर करीब 21 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी माफ कर दी गई थी। इसके बाद भी अमाडिया को जमीन का असली कब्जा नहीं मिला। प्रशासन का कहना है कि ना तो BSI को हटाने की कोई सही प्रक्रिया अपनाई गई और ना ही जमीन का कब्जा किसी को सौंपा गया। यानी कागजों में सौदा हुआ, लेकिन जमीन पर वहीं की वहीं रही। मामला अब पुलिस जांच के घेरे में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि जमीन सौदा रद्द कर दिया गया है और दावा किया कि पार्थ पवार को यह नहीं पता था कि जमीन सरकारी है। इसी बीच IGR ऑफिस की शिकायत पर पिंपरी चिंचवाड़ पुलिस ने दिग्विजय पाटिल, शीतल तेजवानी और निलंबित उप-पंजीयक आर बी तारू के खिलाफ धोखाधड़ी और गबन की FIR दर्ज की है। ---- ये खबर भी पढ़े... आज का एक्सप्लेनर:1800 करोड़ की जमीन 300 में, बेटा फंसा तो अजित पवार बोले- अनुभव से सीखेगा; हजारों करोड़ हेरफेर के आरोपों से कैसे निपटे दादा कभी 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले का आरोप, कभी 25 हजार करोड़ के कोऑपरेटिव बैंक घपले में नाम। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की फाइलें खुलीं, सुर्खियां बनीं... लेकिन किसी नई कुर्सी के साथ हर बार मामला ठंडा पड़ गया। पूरी खबर पढ़े।

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