आपदा प्रभावित धराली का भूवैज्ञानिकों ने किया अध्ययन, हर्षिल में झील बनने का कारण भी पता चला
उत्तरकाशी: धराली में अभी भी मलबे के नीचे दबे जिंदगियों की तलाश है. इसके अलावा आपदा के पीछे के कारणों को भी जानने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए वैज्ञानिक और विशेषज्ञ धराली पहुंचे हुए हैं. इसी कड़ी में सचिव खनन के निर्देशन पर औद्योगिक विकास विभाग की ओर से गठित भूवैज्ञानिक दल […] The post आपदा प्रभावित धराली का भूवैज्ञानिकों ने किया अध्ययन, हर्षिल में झील बनने का कारण भी पता चला appeared first on Dainik Uttarakhand.

आपदा प्रभावित धराली का भूवैज्ञानिकों ने किया अध्ययन, हर्षिल में झील बनने का कारण भी पता चला
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उत्तरकाशी: धराली में अभी भी मलबे के नीचे दबे जिंदगियों की तलाश चल रही है। यही नहीं, अब आपदा के संभावित कारणों को जानने के लिए वैज्ञानिक और विशेषज्ञ धराली पहुंच गए हैं। सचिव खनन के निर्देशन में औद्योगिक विकास विभाग की ओर से गठित भूवैज्ञानिक दल ने बारीकी से आपदा प्रभावित धराली और हर्षिल का अध्ययन किया है।
भूवैज्ञानिकों का निरीक्षण
गठित भूवैज्ञानिक टीम ने धराली क्षेत्र का भूगर्भीय निरीक्षण किया, जिसमें संभावित खतरे और बचाव के उपायों का अध्ययन भी शामिल था। खासकर हर्षिल के समीप एक स्थानीय धारा, तेलगाड़ का बारिकी से निरीक्षण किया गया। आपको बता दें कि 5 अगस्त को तेज बारिश के कारण यह धारा सक्रिय हो गई, जिसके चलते जल सैलाब आ गया और इससे भागीरथी नदी के संगम पर मलबा जमा हो गया। यह जल सैलाब एक बड़ा जलोढ़ पंख बनाने का कारण बना है।
जलोढ़ पंख का निर्माण
जलोढ़ पंख ने भागीरथी नदी के मूल प्रवाह को बाधित कर दिया, जिससे उसके दाहिने किनारे पर अस्थायी झील का निर्माण हुआ है। इस झील की लंबाई लगभग 1,500 मीटर और गहराई 12 से 15 फीट बताई गई है। इस जलभराव ने न केवल गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग को प्रभावित किया बल्कि हर्षिल नगर को भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया।
जल निकासी की प्रक्रिया
भूवैज्ञानिकों ने झील में रुके हुए पानी को धीरे-धीरे निकालने के लिए एक योजना बनाई। इसके तहत छोटे विचलन चैनल बनाने का कार्य शुरू किया गया। इसका उद्देश्य झील के ओवरफ्लो चैनल को नियंत्रित करना था ताकि अचानक बाढ़ से बचा जा सके। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) एवं सिंचाई विभाग ने तत्काल कार्य प्रारंभ किया और स्थिति में सुधार के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए।
भविष्य की उम्मीदें
विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि जलभराव को समय पर नियंत्रित कर लिया गया, तो हर्षिल क्षेत्र को किसी बड़े नुकसान से बचाया जा सकेगा। भूवैज्ञानिक दल का अगला कदम जलस्तर को निरंतर निगरानी में रखना और एक स्थायी समाधान खोजना होगा।
स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद से इस संकट पर सकारात्मक नियंत्रण पाने की पूरी कोशिश की जा रही है। धराली की आपदा ने हालात को गंभीर बना दिया है, लेकिन वैज्ञानिकों की मेहनत और स्थानीय प्रशासन की तत्परता से धीरे-धीरे स्थिति को संभाला जा रहा है।
आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में वर्तमान शोध और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रीत कर रिचार्जिंग और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है।
इस प्रकार, भूवैज्ञानिक अध्ययन न केवल संभावित खतरों को उजागर करने में सहायक हो रहा है, बल्कि इसे भविष्य में इस क्षेत्र की सुरक्षा और विकास के लिए एक आधार भी प्रदान करने की उम्मीद की जा रही है।
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