आसाराम की जमानत एक महीने और बढ़ाई गई:गुजरात हाईकोर्ट ने कहा– यह आखिरी एक्सटेंशन है, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड पर दी थी बेल
गुजरात हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे धर्मगुरु आसाराम की अस्थायी जमानत एक और महीने के लिए बढ़ा दी है। आसाराम को 2013 के एक दुष्कर्म केस में उम्रकैद की सजा मिली है और वह मेडिकल ग्राउंड पर फिलहाल जमानत पर है। गौरतलब है कि इससे पहले मंगलवार (1 जुलाई) को राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम की अंतरिम जमानत को 9 जुलाई तक बढ़ा दिया है। तीन महीने की जमानत मांगी थी जस्टिस ईलेश वोरा और पीएम रावल की पीठ ने आसाराम की जमानत में एक महीने की और मोहलत दी। इससे पहले कोर्ट ने 28 मार्च को उन्हें अस्थायी जमानत दी थी, जो 30 जून को समाप्त हो रही थी। कोर्ट ने पहले 7 जुलाई तक अंतरिम जमानत दी थी। हालांकि, आसाराम के वकील ने कोर्ट से तीन महीने का और समय मांगा था, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ एक महीने की ही मोहलत दी जा रही है और यह आखिरी एक्सटेंशन है। सुप्रीम कोर्ट से मिली थी अंतरिम राहत सुप्रीम कोर्ट ने 86 वर्षीय आसाराम को 31 मार्च तक मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत दी थी और निर्देश दिया था कि आगे की राहत के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगा सकता है। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान दो जजों की भिन्न राय आने पर मामला तीसरे जज को सौंपा गया था, जिन्होंने उन्हें तीन महीने की अस्थायी जमानत दी थी। क्या है पूरा मामला? गांधीनगर की अदालत ने जनवरी 2013 में आसाराम को एक महिला शिष्या के साथ लगातार दुष्कर्म करने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पीड़िता सूरत की रहने वाली थी और 2001 से 2006 के बीच अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम में रहती थी। उसी दौरान उसने आरोप लगाया कि आसाराम ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया। आसााम से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... 11 साल बाद आसाराम से मिला बेटा नारायण साईं, यात्रा-पुलिस सुरक्षा का खर्च खुद ही उठाया रेप के केस के मामलों में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम से उसका बेटा नारायण साईं 11 साल बाद मिला। नारायण साईं ने गुजरात कोर्ट में याचिका दायर कर मिलने की अनुमति मांगी थी, जिस पर कोर्ट ने 5 दिन की अंतरिम जमानत देते हुए उसके खर्च पर पुलिस गार्ड की व्यवस्था के आदेश दिए थे। पूरी खबर पढ़ें...

आसाराम की जमानत एक महीने और बढ़ाई गई: गुजरात हाईकोर्ट ने कहा– यह आखिरी एक्सटेंशन है, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड पर दी थी बेल
गुजरात हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे धर्मगुरु आसाराम की अस्थायी जमानत एक और महीने के लिए बढ़ा दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब आसाराम मेडिकल कारणों का हवाला देते हुए जमानत पर हैं। अदालत ने साफ किया है कि यह जमानत का आखिरी विस्तार है।
कोर्ट का फैसला और पहले की जमानतें
जस्टिस ईलेश वोरा और पीएम रावल की पीठ ने आसाराम को एक महीने की और मोहलत दी है। इससे पहले, आसाराम की जमानत 28 मार्च को दी गई थी, जो 30 जून को समाप्त होने वाली थी। हालांकि, कोर्ट ने 1 जुलाई को उनकी अंतरिम जमानत को 9 जुलाई तक बढ़ाने का आदेश दिया था। आसाराम के वकील ने तीन महीने का और समय मांगा था, लेकिन कोर्ट ने केवल एक महीने की मोहलत दी है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम राहत
असाराम को 86 वर्ष की आयु में, सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल आधार पर 31 मार्च तक अंतरिम जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसे यह अनुमति दी थी कि वह गुजरात हाईकोर्ट में आगे की राहत के लिए याचिका दायर कर सकता है। मामले की सुनवाई के दौरान, दो जजों की भिन्न राय आने पर मामला तीसरे जज को सौंपा गया, जिसने उसे तीन महीने की अस्थायी जमानत दी थी।
क्या है पूरा मामला?
गांधीनगर की अदालत ने जनवरी 2013 में आसाराम को एक महिला शिष्या के साथ लगातार दुष्कर्म करने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पीड़िता सूरत की निवासी थी और वह 2001 से 2006 के बीच अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम में आश्रम में रहती थी। उसने आरोप लगाया था कि आसाराम ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया था।
नारायण साईं और आसाराम की मुलाकात
आसाराम से जुड़ी खबरों में एक महत्वपूर्ण घटना है जब उनके बेटे नारायण साईं ने 11 साल बाद उनसे मिलने की अनुमति प्राप्त की। नारायण साईं ने गुजरात कोर्ट में याचिका दायर कर मुलाकात की मांग की थी। कोर्ट ने 5 दिन की अंतरिम जमानत दी है, जिसमें उसे यात्रा और सुरक्षा का खर्च खुद उठाने का आदेश दिया गया है।
समापन
आसाराम की जमानत का मामला न केवल उनके लिए बल्कि भारतीय न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण है। इस मामले पर भविष्य में क्या निर्णय आएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। आसाराम की जमानत को लेकर यह स्थिति आगे की कानूनी प्रक्रिया पर निर्भर करेगी।
गुजरात हाईकोर्ट के ताजा आदेश के बाद कई सवाल उठ रहे हैं, खासकर आसाराम के समर्थक और नकारात्मक दर्शक दोनों के बीच। दोनों पक्षों के अपने-अपने दृष्टिकोन हैं और अदालत का अंतिम निर्णय ही सभी के लिए स्पष्टता प्रदान करेगा।
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