उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वैक्सीन वैज्ञानिक की सजा पर रोक लगाई:कहा- देशहित में इनका बाहर रहना जरूरी; पत्नी की आत्महत्या के मामले में दोषी ठहराए गए थे
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में वैक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव की सजा और दोष पर फिलहाल रोक लगा दी है। अदालत ने सोमवार को कहा कि डॉ. यादव का काम वैक्सीन विकास से जुड़ा है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और देशहित के लिए बेहद जरूरी है। डॉ. यादव की पत्नी ने 2015 में आत्महत्या कर ली थी और सुसाइड नोट में पति को जिम्मेदार बताया था। शादी को उस वक्त 7 महीने ही हुए थे। डॉ. यादव को पहले दहेज उत्पीड़न और फिर पत्नी की आत्महत्या के मामले में आरोपी बनाया गया था। डॉ. यादव को जनवरी में ट्रायल कोर्ट ने दहेज के आरोपों से बरी कर दिया था, लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 5 साल और 20 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। वैज्ञानिक की भूमिका और याचिका डॉ. यादव इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और वैक्सीन को लेकर रिसर्च कर रहे हैं। सजा के बाद उन्हें संस्थान से बाहर कर दिया गया था, जिससे उनके रिसर्च कार्य पर असर पड़ा। इस पर उन्होंने कोर्ट में अपील कर सजा और दोष पर रोक लगाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा- सजा से देशहित को नुकसान जस्टिस रवींद्र मैठानी की बेंच ने कहा कि अगर सजा नहीं रोकी गई, तो यह सिर्फ याचिकाकर्ता का पेशेवर नुकसान नहीं होगा, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और देशहित का भी नुकसान होगा। HC ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया हाईकोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों (राम नारंग बनाम रमेश नारंग 1995 और नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब सरकार 2007) का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि अपवाद वाले मामलों में दोष पर भी रोक लगाई जा सकती है, अगर उससे किसी व्यक्ति के करियर और सार्वजनिक हित को नुकसान हो रहा हो। ---------------------- ये खबर भी पढ़ें... पति को मारने वाली प्रोफेसर पत्नी को जाना होगा जेल:हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा रखी बरकरार, तत्काल ट्रायल कोर्ट में सरेंडर के निर्देश छतरपुर जिले में 4 साल पहले 2021 में हुए बहुचर्चित डॉ. नीरज हत्याकांड मामले में सेशन कोर्ट ने उनकी प्रोफेसर पत्नी ममता पाठक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन पर आरोप था कि अवैध संबंधों के शक के चलते उन्होंने डॉक्टर पति को जहर देने के बाद नींद में करंट लगाकर मार डाला था। पूरी खबर पढ़ें...

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वैक्सीन वैज्ञानिक की सजा पर रोक लगाई: कहा- देशहित में इनका बाहर रहना जरूरी; पत्नी की आत्महत्या के मामले में दोषी ठहराए गए थे
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लेखक: एकता तिवारी, सृष्टि मेहता, टीम avpganga
मुख्य समाचार
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में वैक्सीन वैज्ञानिक डॉ. आकाश यादव की सजा और दोष पर रोक लगाने का फैसला सुनाया है। अदालत ने सोमवार को कहा कि डॉ. यादव का काम देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर जब वह वैक्सीन विकास से जुड़े हैं। यह निर्णय मानवीय दृष्टिकोण और वैज्ञानिक अनुसंधान के संरक्षण की दृष्टि से एक लाभकारी कदम माना जा रहा है।
पृष्ठभूमि
डॉ. आकाश यादव, जो इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, पर उनकी पत्नी की आत्महत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। 2015 में उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी और एक सुसाइड नोट में उन्होंने पति को जिम्मेदार ठहराया था। उनकी शादी को केवल 7 महीने हुए थे। इस मामले में डॉ. यादव पर दहेज उत्पीड़न के आरोप भी लगे थे। जनवरी 2023 में, ट्रायल कोर्ट ने दहेज के मामलों में उन्हें बरी किया, लेकिन पत्नी की आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 5 साल की सजा और 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
कोर्ट का निर्णय
जस्टिस रवींद्र मैठानी की बेंच ने निर्णय में कहा कि यदि डॉ. यादव की सजा को बरकरार रखा गया, तो इस इससे ना केवल उनके कैरियर पर असर पड़ेगा बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और देशहित को भी खतरा होगा। यह टिप्पणी इस दिशा में महत्वपूर्ण मानी गई है, जहां वैक्सीन वैज्ञानिक की भूमिका समाज के लिए न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि उनकी स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ
कोर्ट ने इस मामले में पुराने सुप्रीम कोर्ट के मामलों (राम नारंग बनाम रमेश नारंग 1995 और नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब सरकार 2007) का हवाला दिया। इन मामलों में अदालत ने माना कि विशिष्ट परिस्थितियों में दोष पर भी रोक लगाई जा सकती है यदि इससे किसी व्यक्ति के करियर और सार्वजनिक हित को नुकसान होता है। इस पहलू ने डॉ. यादव की अपील को और मजबूत किया।
अंत में
यह निर्णय वैक्सीन विकास के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। देशहित में काम करने वाले वैज्ञानिकों को उनके व्यक्तिगत मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए। डॉ. यादव की स्थिति ने देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्व को फिर से उजागर किया है, और सरकारी नीतियों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण चर्चा की शुरुआत की है।
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