क्षमता और वास्तविकता अलग-अलग…HC में एमबीए पत्नी के गुजारा भत्ते से जुड़ी पति की याचिका खारिज
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल कमाई की क्षमता के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि कमाई की क्षमता (earning capacity) और वास्तविक आय (actual income) दो अलग-अलग चीजें हैं। यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने उस मामले की सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा उसकी पत्नी और बेटी के लिए तय किए गए भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी थी।

क्षमता और वास्तविकता अलग-अलग…HC में एमबीए पत्नी के गुजारा भत्ते से जुड़ी पति की याचिका खारिज
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दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिससे परिवारों में आर्थिक सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा फिर से तेज हो गई है। फैसले में स्पष्ट किया गया है कि केवल पत्नी की कमाई की क्षमता के आधार पर उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। यह निर्णय उस मामले में आया था जिसमें एक पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा उसकी पत्नी और बेटी के लिए निर्धारित गुजारा भत्ता आदेश को चुनौती दी थी।
महत्वपूर्ण निर्णय की पृष्ठभूमि
यह मामला तब शुरू हुआ जब पति ने अपनी पत्नी, जो एक एमबीए स्नातक हैं, के लिए दिए गए गुजारा भत्ते को चैलेंज किया। उसका तर्क था कि पत्नी की कमाई की क्षमता के कारण उसे भरण-पोषण नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि कमाई की क्षमता और वास्तविक आय अलग-अलग हैं। इसके अनुसार, यह आवश्यक है कि गुजारा भत्ता सिर्फ आर्थिक स्थिति के आंकलन से निर्धारित न किया जाए।
कोर्ट के विचार
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस प्रसंग में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुजारा भत्ता किसी भी महिला का मौलिक अधिकार है, विशेष रूप से जब वह अपने पति और बच्चे की सुरक्षा और भलाई के लिए उत्तरदायी होती है। अदालत ने यह भी बताया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान के महत्व को ध्यान में रखते हुए, पत्नी को आर्थिक सुरक्षा दिए जाने की आवश्यकता है, खासकर यदि वह अपने जीवनसाथी से आर्थिक सहायता की अपेक्षा करती है।
भावी प्रभाव
इस निर्णय ने न केवल इस विशेष मामले में बल्कि अन्य कई मामलों में भी गुजारा भत्ते की सही व्याख्या और प्रावधान के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि कैसे कानूनी ढांचे में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने के प्रयास जारी हैं। अब जरूरी है कि देश के अन्य अदालतें भी इस दृष्टिकोण को अपनाएं।
निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय एक स्पस्ट संदेश भेजता है कि आर्थिक स्थिति के गलत आकलन से न केवल विवाहिता के अधिकारों का हनन हो सकता है, बल्कि यह बच्चों की भलाई पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि समाज में आर्थिक समावेशिता का विचार स्थापित किया जाए, ताकि हर व्यक्ति को उसके हक का भरण-पोषण मिल सके। गुजारा भत्ता केवल महिला का अधिकार नहीं, बल्कि उसके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की भी स्वीकार्यता है।
इस तरह के निर्णयों से आशा है कि महिलाएं अपने आर्थिक अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक होंगी। सही भरण-पोषण का निर्धारण न्यायिक प्रणाली में एक मील का पत्थर साबित होगा।
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