जहां चाह वहां राह। गोबर को बनाया स्वरोजगार का माध्यम

दी टॉप टेन न्यूज़ /देहरादून रिपोर्टर -मनोज नौडियाल कोटद्वार 26/6/2025 उत्तराखंड के पौड़ी जिले में कोटद्वार की हल्दूखाता निवासी डा. माधुरी डबराल बीते 20 वर्षों से वर्मी कंपोस्ट (केंचुआ खाद)… The post जहां चाह वहां राह। गोबर को बनाया स्वरोजगार का माध्यम first appeared on .

Jun 30, 2025 - 00:33
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रिपोर्टर: दीトップ टेन न्यूज़ / देहरादून रिपोर्टर - मनोज नौडियाल कोटद्वार 26/6/2025: उत्तराखंड के पौड़ी जिले में कोटद्वार की हल्दूखाता निवासी डा. माधुरी डबराल एक अनूठी प्रेरणा की मिसाल बनी हैं। बीते 20 वर्षों से, वह वर्मी कंपोस्ट (केंचुआ खाद) को स्वरोजगार का माध्यम बना चुकी हैं और स्थानीय किसानों के जीवन में न केवल आर्थिक बदलाव लाने का कार्य कर रही हैं, बल्कि कृषि की स्थिरता को भी सुनिश्चित कर रही हैं।

डा. माधुरी का कदम: बदलाव की ओर

डा. माधुरी डबराल, जिन्होंने 2009 में पीएचडी पूरी की, ने अपने पति शिवप्रसाद डबराल के साथ मिलकर 'सोसाइटी फार हार्मोनाइजिंग, एग्रीकल्चर, प्यूपिल एड इनवायरमेंट (शेप)' की स्थापना की। इस संस्था ने वर्मी कंपोस्ट के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ किसानों को रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों से भी अवगत कराया है। उनके प्रयासों ने पूरे उत्तराखंड में जैविक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा दिया है, जिससे ना केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाया है।

गांव में जागरूकता और प्रशिक्षण

डा. माधुरी किसानों के बीच जाकर उन्हें वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि सिखाती हैं और खाद बनाने का प्रशिक्षण भी देती हैं। वह उन्हें केंचुए के पालन के फायदे बताते हुए खेती को प्राकृतिक तरीके से करने का महत्व समझाती हैं। उनका यह अभियान अब कई ग्रामीणों को रोजगार देने में सफल हो चुका है।

राजनीतिक सहयोग की आवश्यकता

वर्तमान में, डा. माधुरी ने चरेख इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्टार्टअप योजना के तहत सफलता प्राप्त कर चुकी है। उनके अनुसार, अगर सरकारी तंत्र उनका सहयोग करे, तो वह ग्रामीणों को खाद बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही केंचुए भी उपलब्ध करवा सकती हैं।

क्या है वर्मी कंपोस्ट?

वर्मी कंपोस्ट एक जैविक खाद है, जो नेचर के एक स्वाभाविक तंत्र पर आधारित है। यह खेती में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरकों का एक स्वच्छ और सरल विकल्प है। इसकी विशेषता यह है कि यह न केवल मिट्टी की उर्वरकता बढ़ता है, बल्कि पौधों की वृद्धि में भी मदद करता है।डॉ. माधुरी इसके साथ-साथ किसान परिवारों की आमदनी की रेखा भी बढ़ा रही हैं।

सकारात्मक नतीजे और भविष्य का रोडमैप

डा. माधुरी का प्रयास न केवल कोटद्वार बल्कि उत्तराखंड के कई हिस्सों में किसान समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। जब कृषि क्षेत्र में जैविक खाद का उपयोग बढ़ेगा, तो इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

इस तरह की पहलों से प्रेरणा लेते हुए, हर समुदाय में ऐसे कार्यों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। यदि हम सब मिलकर काम करें, तो निश्चित रूप से हर जगह 'जहां चाह वहां राह' का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।

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