बेटे-बहू को फंसाने के लिए व्हीलचेयर पर आया पूर्व सरकारी अफसर, झूठे नाटक का ऐसे हुआ पर्दाफाश
देहरादून में एक सेवानिवृत्त अधिकारी के बेटे-बहू के खिलाफ दायर भरण-पोषण का केस खारिज हो गया है। आमतौर पर ऐसे मामलों में माता-पिता के पक्ष में फैसला आता है, लेकिन यहां डीएम कोर्ट ने शिकायतकर्ता के आरोप झूठे पाए।

बेटे-बहू को फंसाने के लिए व्हीलचेयर पर आया पूर्व सरकारी अफसर, झूठे नाटक का ऐसे हुआ पर्दाफाश
देहरादून में हाल ही में एक दिलचस्प मामला सामने आया है, जिसमें एक पूर्व सरकारी अधिकारी ने अपने बेटे और बहू को फंसाने का प्रयास किया। यह मामला तब उजागर हुआ जब डीएम कोर्ट ने शिकायतकर्ता के आरोपों को झूठा पाते हुए भरण-पोषण का केस खारिज कर दिया। यह घटना न केवल न्यायालय की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में पारिवारिक संबंधों की जटिलता को भी उजागर करती है।
जहाँ ज्यादातर मामलों में माता-पिता के पक्ष में आता है फैसला
आमतौर पर ऐसे मामलों में, जब माता-पिता अपने बच्चों के खिलाफ न्यायालय में शिकायत करते हैं, तो फैसले उनके पक्ष में ज्यादा आते हैं। मगर इस मामले में सब कुछ उलटा ही हुआ। सेवानिवृत्त अधिकारी ने न्यायालय में अपने बेटे और बहू के खिलाफ भरण-पोषण का मामला दर्ज किया था। हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया, जो यह दर्शाता है कि न्यायालय ने क्या सही और क्या गलत है, इसकी गहराई से जांच की।
शिकायतकर्ता का झूठा नाटक
पूर्व सरकारी अधिकारी ने आरोप लगाया कि उसे अपने बेटे-बहू से भरण-पोषण की जरूरत है। उसने अपने बयान में यह भी कहा कि उसकी आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है। लेकिन जैसे-जैसे मामले की सुनवाई आगे बढ़ी, यह स्पष्ट हुआ कि वह व्हीलचेयर पर आकर केवल नाटक कर रहा था। कर्ताभ्रम का यह फार्मूला न्यायालय में सफल नहीं हुआ, और जांच में यह साबित हुआ कि शिकायतकर्ता अपने आरोपों में झूठा था।
न्याय की जीत
डीएम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे मामलों में केवल आरोपों पर ध्यान देना उचित नहीं है। कोर्ट ने ठोस सबूतों के आधार पर अपना निर्णय सुनाया, जिसमें यह बताया गया कि शिकायतकर्ता ने अनावश्यक आरोप लगाए थे और इस प्रकार उसके दावे को नकार दिया गया। यह न्याय की जीत है और एक संदेश है कि झूठे आरोप लगाने वाले कभी सफल नहीं होते।
समाज पर इसका प्रभाव
इस केस ने यह सीख दी है कि पारिवारिक संबंधों में ऐंठ और संघर्ष तब तक टिक नहीं सकते जब तक सच्चाई मजबूत है। अदालतों को भी चाहिए कि वे ऐसे मामलों में सजग रहें और किसी भी प्रकार के धोखे को पकड़ने के लिए तैयार रहें।
दिलचस्प बात यह है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति के आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक बड़े संदेश का प्रतिनिधित्व करता है। हमें यह समझना होगा कि पारिवारिक कलह के दौरान सभी को कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और असत्य का सहारा नहीं लेना चाहिए।
इसके अलावा, यह समाज के लिए शिक्षा है कि प्रशासनिक और कानूनी प्रणाली पर भरोसा रखें और किसी भी झूठे आरोप को नकारने के लिए सामर्थ्य दिखाएं।
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