सुप्रीम कोर्ट बोला- गंभीर मामलों में अदालतें रोज सुनवाई करें:दुष्कर्म केस में चार्जशीट दायर होने के 2 महीने के अंदर सुनवाई पूरी करें

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में रोज सुनवाई की परंपरा को पूरी तरह से छोड़ दिया गया है। अदालतों को इसे फिर से अपनाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के एक दुष्कर्म के मामले में आरोपी को जमानत देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई को दौरान ये टिप्पणी की। कोर्ट ने ये भी कहा कि दुष्कर्म जैसे मामलों में चार्जशीट दायर होने के 2 महीने के अंदर सुनवाई पूरी करें। संविधान के अनुच्छेद 21 में तुरंत सुनवाई के अधिकार को जरूरी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट और निचली अदालतें इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने के लिए एक समिति गठित करने की जरूरत है। बेंच ने कहा- हम ईमानदारी से मानते हैं कि यह सही समय है कि अदालतें उस प्रथा पर वापस लौटें। महत्वपूर्ण या संवेदनशील मामलों में रोज सुनवाई हो, जो तीस साल पहले की परंपरा थी। पुरानी प्रथा पर वापस जाने के उद्देश्य से, वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक परिस्थिति को समझना आवश्यक है, जिसमें पुलिस के काम करने का तरीका भी शामिल है। आखिर क्यों होती है मामले में देरी? बेंच ने नोट किया कि न्याय मिलने में देरी की एक बड़ी वजह योगदान रोज सुनवाई न होना है। कोर्ट में सबूतों को टुकड़ों में सुना जाता है। इससे मामले कई महीनों या वर्षों तक टलते चले जाते हैं। कोलकाता हाईकोर्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश CBI की उस याचिका पर आया, जिसमें पिछले साल सितंबर में कोलकाता हाईकोर्ट के दुष्कर्म के एक मामले में एक आरोपी को जमानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी। 2021 के पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव बाद हिंसा भड़की थी। इसमें एक दुष्कर्म मामले में मीर उस्मान अली आरोपी था। हाईकोर्ट ने अली को जमानत दे दी थी। CBI ने सुप्रीम कोर्ट में अली की जमानत रद्द करने के लिए अर्जी लगाई थी। CBI की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे और आरोपी की ओर से अंजन दत्त ने पैरवी की। बेंच ने कहा, हम जमानत रद्द करने के लिए राजी नहीं हैं, क्योंकि आरोपी करीब एक साल से हिरासत से बाहर है। सुप्रीम कोर्ट को जब बताया कि पीड़ित कटघरे में आई थी, लेकिन उसकी आगे की जांच 18 दिसंबर 2025 तक स्थगित कर दी गई थी। कोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताई। हाईकोर्ट ने मांगी थी स्टेटस रिपोर्ट 8 सितंबर को कोलकाता हाईकोर्ट ने सुनवाई में देरी के चलते ट्रायल कोर्ट को मामले में स्टेटस रिपोर्ट सौंपने को कहा था। इसके बाद 11 सिंतबर 2025 को एडिशनल सेशन जज, जिला पूर्वी मेदिनीपुर ने हाईकोर्ट में रिपोर्ट सौंपी। अपनी रिपोर्ट में जज ने बताया कि 25 अगस्त, 2025 को पीड़ित के बयानों की रिकॉर्डिंग को स्थगित करना पड़ा क्योंकि गवाह कटघरे में अचानक बीमार पड़ गई थी। बाद में 18 दिसंबर, 2025 तक का स्टे का कारण अन्य मामलों का बोझ बताया गया। कोर्ट ने कहा कि उनके पास 1 अगस्त, 2025 तक 4,731 लंबित मामले शामिल हैं, जिनमें सत्र, NDPS, SC/ST, भ्रष्टाचार निवारण, और विभिन्न दीवानी मामले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बोला- पीड़ित की उपस्थिति सुनिश्चित करें सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि जांच की तारीख अब 24 अक्टूबर, 2025 तक कर दी गई है। बेंच ने सरकारी वकील को निर्देशित किया गया कि वह आगे की बहस के लिए पीड़ित की उपस्थिति सुनिश्चित करे। एक बार पीड़ित के बयान पूरे हो जाने के बाद, ट्रायल कोर्ट को यह देखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि अन्य गवाहों की जल्द से जल्द जांच हो। साथ ही ये भी सुनिश्चित करने को कहा कि 31 दिसंबर, 2025 तक फैसले के साथ सुनवाई पूरी हो सके। ---------------------- सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोले- हिमालयी राज्य गंभीर अस्तित्व संकट में:कहा- यहां इंसानी दखल से आपदाएं, हिमाचल का नाजुक इकोसिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ सुप्रीम कोर्ट ने हिमालयी राज्यों में बिगड़ते पारिस्थितिक संतुलन पर चिंता जताते हुए कहा है कि यह पूरा क्षेत्र एक गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार से इस संबंध में कई सवालों के जवाब मांगे हैं। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि इस मानसून में हिमाचल में भारी बारिश और भूस्खलन से सैकड़ों लोगों की जान गई और हजारों संपत्तियां तबाह हो गईं। पढ़ें पूरी खबर...

Sep 26, 2025 - 00:33
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सुप्रीम कोर्ट बोला- गंभीर मामलों में अदालतें रोज सुनवाई करें:दुष्कर्म केस में चार्जशीट दायर होने के 2 महीने के अंदर सुनवाई पूरी करें
सुप्रीम कोर्ट बोला- गंभीर मामलों में अदालतें रोज सुनवाई करें:दुष्कर्म केस में चार्जशीट दायर होन�

सुप्रीम कोर्ट बोला- गंभीर मामलों में अदालतें रोज सुनवाई करें:दुष्कर्म केस में चार्जशीट दायर होने के 2 महीने के अंदर सुनवाई पूरी करें

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नेशनल डेस्क: भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालतों को विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में रोजाना सुनवाई करने की परंपरा को दोबारा अपनाना चाहिए। इस टिप्पणी के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट में दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी को जमानत देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के दौरान ये बात कहीं। अदालत ने यह भी कहा कि दुष्कर्म जैसे मामलों में चार्जशीट दायर होने के 2 महीने के अंदर सुनवाई को पूरा किया जाना चाहिए।

संवेदनशील मामलों की तेजी से सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत तुरंत सुनवाई का अधिकार आवश्यक है, खासकर संवेदनशील मामलों में। कोर्ट ने उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों को निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने के लिए एक समिति गठित करें। बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि पिछले तीस वर्षों में महत्वपूर्ण मामलों में रोज सुनवाई की परंपरा को पूरी तरह से भुला दिया गया है।

कोलकाता हाईकोर्ट के मामले पर टिप्पणी

इस मामले में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सीबीआई ने हाईकोर्ट के द्वारा आरोपी मीर उस्मान अली को जमानत देने के निर्णय के खिलाफ अपील की थी। आरोपी लगभग एक साल से न्यायिक हिरासत से बाहर थे। सीबीआई की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने मामले में पैरवी की। कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि पीड़ित की सुनवाई 2025 तक के लिए स्थगित कर दी गई थी।

मामलों में देरी का कारण

जांच के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि सुनवाई में देरी की एक मुख्य वजह यह है कि रोजाना सुनवाई का अभ्यास खत्म हो गया है। बेंच ने कहा कि सबूतों को टुकड़ों में पेश करना और लंबित मामलों की संख्या न्याय मिलने में देरी का एक प्रमुख कारण बन गई है। अदालत ने उन लंबित मामलों की संख्या पर भी ध्यान दिया, जो कि काफी अधिक है।

निष्कर्ष

इस बात पर जोर देते हुए कि न्याय सभी को समय पर मिलना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से अपील की कि वे इस दिशा में ठोस कदम उठाएं। अतीत की प्रथाओं को पुनर्जीवित करना आवश्यक है ताकि पीड़ितों और समाज को न्याय मिल सके। अदालत ने पीड़ित की उपस्थिति सुनिश्चित करने और अन्य गवाहों की जल्द सुनवाई करने के निर्देश दिए, ताकि न्याय प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जा सके।

इस फैसले से यह स्पष्ट है कि न्यायालय अब गंभीर मामलों में तेजी से कार्रवाई करने के प्रति गंभीर है, ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके और लंबी प्रक्रिया के कारण उन्हें और अधिक कष्ट सहने से बचाया जा सके।

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