भागवत बोले-कट्टर हिंदू का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं:बल्कि सबको अपनाना है, हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलने वाला धर्म
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि 'कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है',बल्कि हिंदू होने का असली मतलब सबको अपनाना है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलने वाला धर्म है। भागवत ने कहा- 'अक्सर गलतफहमी हो जाती है कि अगर कोई अपने धर्म के प्रति दृढ़ है तो वह दूसरों का विरोध करता है। हमें यह कहने की ज़रूरत नहीं कि हम हिंदू नहीं हैं। हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदू होने का सार यह है कि हम सभी को अपनाएं।' वे कोच्चि में RSS से जुड़ी संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में देश भर के शिक्षाविद और विचारक पहुंचे हुए थे। भागवत के भाषण की 5 मुख्य बातें: 1.शिक्षा में बदलाव की जरूरत उन्होंने मैकॉले द्वारा थोपे गए औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल को आज के भारत के लिए अनुपयुक्त बताया। उन्होंने कहा कि सत्य और करुणा पर आधारित भारतीय शिक्षा प्रणाली ही भारत की विशाल संभावनाओं को जगाकर विश्व कल्याण में योगदान दे सकती है। 2. विद्या और अविद्या का महत्व उन्होंने कहा कि इस संसार में दो तरह का ज्ञान होता है- विद्या (सत्य ज्ञान) और अविद्या (अज्ञान)। दोनों का जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं में अहम योगदान है, और भारत इन दोनों के संतुलन को महत्व देता है। 3. भारतीय राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता भागवत ने भारत को आध्यात्मिक भूमि बताया और कहा कि देश का राष्ट्रवाद पवित्र और शुद्ध भावना से जुड़ा हुआ है। 4. सच्चे विद्वान की परिभाषा उन्होंने कहा कि सच्चा विद्वान वह नहीं जो केवल चिंतन करता है, बल्कि वह है जो अपने विचारों को कर्म में बदलता है और जीवन में उसका उदाहरण पेश करता है। 5. समाज परिवर्तन में व्यक्तिगत भूमिका भागवत ने कहा कि हर व्यक्ति को समाज के समग्र परिवर्तन के लिए व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के साथ काम करना चाहिए। एक दिन पहले कहा- सोने की चिड़िया नहीं, शेर बनना है एक दिन पहले 27 जुलाई को इसी कार्यक्रम में भागवत ने कहा था कि हमें फिर से सोने की चिड़िया नहीं बनना है, बल्कि हमको शेर बनना है। दुनिया शक्ति की ही बात समझती है और शक्ति संपन्न भारत होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाए और उसे कहीं भी अपने दम पर जीवित रहने की क्षमता प्रदान करे। उन्होंने कहा था कि विकसित भारत और विश्व गुरु भारत कभी युद्ध का कारण नहीं बनेगा, बल्कि यह विश्व में शांति और समृद्धि का संदेशवाहक होगा। भारत की यह पहचान उसकी शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक मूल्यों से और मजबूत होगी। पूरी खबर पढ़ें... पाठ्यक्रमों में बदलाव की बात का समर्थन किया इससे पहले भागवत ने पाठ्यक्रमों में बदलाव की बात का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि भारत को सही रूप में समझने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। आज जो इतिहास पढ़ाया जाता है, वह पश्चिमी दृष्टिकोण से लिखा गया है। उनके विचारों में भारत का कोई अस्तित्व नहीं है। भागवत ने कहा था- विश्व मानचित्र पर भारत दिखता है, लेकिन उनकी सोच में नहीं। उनकी किताबों में चीन और जापान मिलेंगे, भारत नहीं। पूरी खबर पढ़ें... मोहन भावगत से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें.... RSS प्रमुख बोले- देश सशक्तिकरण से बढ़ेगा: महिलाओं को पिछड़ी परंपराओं से मुक्त किया जाना चाहिए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि महिलाओं को पिछड़ी परंपराओं और रूढ़ियों से मुक्त करना बेहद जरूरी है। महाराष्ट्र के सोलापुर में ‘उद्योगवर्धिनी’ संस्था के आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा- महिलाओं का सशक्तिकरण किसी भी राष्ट्र के विकास की नींव है। पूरी खबर पढ़ें...

भागवत बोले-कट्टर हिंदू का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं: बल्कि सबको अपनाना है, हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलने वाला धर्म
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि "कट्टर हिंदू" होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है, बल्कि सच्चे हिंदू होने का मतलब है सबको अपनाना। भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलने वाला धर्म है। यह बयान उन्होंने कोच्चि में RSS से जुड़ी संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' के दौरान दिया।
कार्यक्रम की विशेषताएँ
यह कार्यक्रम भारत के प्रसिद्ध शिक्षाविदों और विचारकों की उपस्थिति में आयोजित किया गया। भागवत के भाषण में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया गया:
- शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता: भागवत ने मैकॉले द्वारा थोपे गए औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल को वर्तमान भारत के लिए अनुपयुक्त बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को सत्य और करुणा के आधार पर पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
- विद्या और अविद्या का महत्व: भागवत ने कहा, "इस संसार में दो तरह का ज्ञान होता है- विद्या (सत्य ज्ञान) और अविद्या (अज्ञान)।" दोनों का जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं में महत्वपूर्ण योगदान है।
- भारतीय राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता: भारत को उन्होंने आध्यात्मिक भूमि बताते हुए कहा कि यह राष्ट्रवाद पवित्रता और शुद्ध भावना से जुड़ा हुआ है।
- सच्चे विद्वान की परिभाषा: भागवत ने कहा कि सच्चा विद्वान वह है जो अपने विचारों को कर्म में बदलता है और जीवन में उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- समाज परिवर्तन में व्यक्तिगत भूमिका: उन्होंने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को समाज के समग्र परिवर्तन के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
शेर बनने की आवश्यकता
एक दिन पहले, भागवत ने एक और महत्वपूर्ण बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा कि हमें "सोने की चिड़िया" नहीं बनना है, बल्कि "शेर" बनना है। उन्होंने कहा कि शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत की आवश्यकता है। यह संदेश उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए दिया कि शिक्षा उस तरह से तैयार हो जो व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करें।
शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक मूल्य
भागवत ने यह भी कहा कि विकसित भारत और विश्व गुरु भारत कभी युद्ध का कारण नहीं बनेगा, बल्कि यह शांति और समृद्धि का संदेशवाहक होगा। उन्होंने पाठ्यक्रमों में बदलाव का समर्थन करते हुए कहा कि भारत को सही रूप में समझने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
संक्षेप में, भागवत का यह बयान समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरे सोचने का मौका देता है और साथ ही हमें यह समझाता है कि हिंदू धर्म एक समावेशी धर्म है। इस तरह के बयानों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की उम्मीद की जा रही है।
देशवासियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि वे इस दिशा में अपने विचार साझा करें और एक साथ आगे बढ़ें।
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