आपातकाल: सत्ता के लिए संविधान का संहार
प्रेम शुक्ल

आपातकाल: सत्ता के लिए संविधान का संहार
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लेखक: प्रियंका शर्मा, संजीवनी पटेल, टीम avpganga
परिचय
भारत के ऐतिहासिक राजनीतिक परिदृश्य में 1975 से 1977 के बीच लागू आपातकाल ने लोकतंत्र की नींव को हिला दिया था। इस अवधि में संविधान का खुला उल्लंघन हुआ और सत्ता में बैठे लोगों ने उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। आज हम इस अध्याय की पुनरावलोकन करेंगे, यह समझते हुए कि आपातकाल की घटना ने भारतीय राजनीति और समाज पर क्या प्रभाव डाला था।
आपातकाल का इतिहास
आपातकाल की शुरुआत 25 जून 1975 को हुई, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे लागू किया। उन्हें विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए विवादों और खुद को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हुई। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत, राष्ट्रीय सुरक्षा और जनशांति को खतरे के मद्देनज़र यह निर्णय लिया गया। इस समय सरकारी विपक्ष के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए गए, जिसमें राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी और स्वतंत्र प्रेस पर नियंत्रण शामिल थे।
संविधान की अवहेलना
आपातकाल के दौरान संविधान को रौंदा गया। कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना अनेक लोगों को बंदी बनाना और मीडिया पर सेंसरशिप लागू करना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि सत्ता किस प्रकार संवैधानिक अधिकारों का हनन कर सकती है। यह समय एक अंधेरे युग के रूप में देखा जाता है, जब न्यायपालिका और विधायिका का स्तम्भ भी कमजोर पड़ा।
आपातकाल का प्रभाव
आपातकाल ने भारतीय राजनीति के दर्पण में कई छिद्र पैदा कर दिए। 1977 में चुनावों में इंदिरा गांधी को भारी हार का सामना करना पड़ा। इससे एक नई सियासी जागरूकता का जन्म हुआ। आपातकाल के कारण कई युवाओं ने राजनीति में अपनी भागीदारी बढ़ाई और लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेवारी को समझा।
वर्तमान संदर्भ
हाल के वर्षों में भी, आपातकाल से जुड़ी सीखों को हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मौजूदा समय में, जब सत्ता के नशे में डूबी सरकारें अपने प्रतिकूल विचारों को दबाने का प्रयास कर रही हैं, तब इस ऐतिहासिक घटनाक्रम की पुनरावलोकन करना जरुरी है। आज भी, हम देख सकते हैं कि संविधान को लागू करने और उसकी रक्षा करने के लिए नागरिकों की जागरूकता आवश्यक है।
निष्कर्ष
आशा है कि हम इतिहास से सीखेंगे और एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए सतर्क रहेंगे। आपातकाल ने हमें ये सिखाया कि संकट के समय संवैधानिक गरिमाओं का उल्लंघन न हो। संविधान ही हमारे अधिकारों की सुरक्षा का स्तम्भ है।
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