एस्ट्रोनॉट शुभांशु हड्डियों और रेडिएशन पर स्टडी कर रहे:हड्डियों की बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, लंबे स्पेस मिशनों में एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा बेहतर होगी

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने शनिवार को सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण स्थिति में हड्डियों में होने वाली प्रतिक्रिया पर स्टडी की। इससे जानकारी मिली कि अंतरिक्ष में हड्डियां कैसे खराब होती हैं और पृथ्वी पर लौटने के बाद कैसे ठीक होती हैं। इस प्रयोग से ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी से जुड़ी अन्य बीमारियों के बेहतर इलाज में मदद मिल सकती है। शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर रेडिएशन के खतरे की निगरानी के लिए भी एक प्रयोग में हिस्सा लिया। इससे लंबी समय के स्पेस मिशन पर एस्ट्रोनॉट को बेहतर सुरक्षा देने में मदद मिलेगी। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला चार एस्ट्रोनॉट समेत 14 दिन के स्पेस मिशन पर 26 जून को शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे। इस दौरान वे 7 प्रयोग करेंगे, जो इंडियन एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स​​ ने तैयार किए हैं। इनमें ज्यादातर बायोलॉजिकल स्टडीज हैं। वे NASA के साथ 5 अन्य प्रयोग करेंगे, जिसमें लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए डेटा जुटाएंगे। इस मिशन में किए गए प्रयोग भारत के गगनयान मिशन को मजबूत करेंगे। शुक्ला ने स्पेस में मायोजेनेसिस स्टडी भी की एक्सिओम स्पेस ने बताया कि शुक्ला ने स्पेस माइक्रो एलगी जांच के लिए नमूने तैनात किए। ये छोटे जीव अंतरिक्ष में जीवन बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। ये भोजन, ईंधन और सांस लेने योग्य हवा भी दे सकते हैं, लेकिन सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि वे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में कैसे बढ़ते हैं। शुभांशु शुक्ला और एक्सिओम-4 मिशन के अन्य सदस्य रविवार को एक्सिओम स्पेस की चीफ साइंटिस्ट लूसी लो के साथ ऑर्विटल लैबोरेट्री में 14 दिन रहने के लिए किए गए 60 एक्सपेरिमेंट की प्रोग्रेस पर बातचीत करेंगे। शुक्ला ने स्पेस में मायोजेनेसिस स्टडी भी की। यह इंसानी मांसपेशियों के रीजनरेशन पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव की खोज करता है। वहीं, इसरो ने बताया कि स्पेस में माइक्रो एलगी और साइनोबैक्टीरिया के सेलेक्टेड स्ट्रेन की स्टडी के लिए अन्य इंडियन एक्सपेरिमेंट चल रहे हैं। ये रीजनरेटिव लाइफ सपोर्ट सिस्टम और क्रू के नपोषण पर रिसर्च में योगदान दे रहे हैं। 41 साल बाद कोई भारतीय एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में गया अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय एजेंसी इसरो के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इस मिशन के लिए चुना गया है। शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी। शुभांशु का ये अनुभव भारत के गगनयान मिशन में काम आएगा। ये भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका उद्देश्य भारतीय गगनयात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित रूप से वापस लाना है। इसके 2027 में लॉन्च होने की संभावना है। भारत में एस्ट्रोनॉट को गगनयात्री कहा जाता है। इसी तरह रूस में कॉस्मोनॉट और चीन में ताइकोनॉट कहते हैं। मिशन का उद्देश्य: स्पेस स्टेशन बनाने की प्लानिंग का हिस्सा मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में रिसर्च करना और नई टेक्नोलॉजी को टेस्ट करना है। ये मिशन प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को बढ़ावा देने के लिए भी है और एक्सियम स्पेस प्लानिंग का हिस्सा है, जिसमें भविष्य में एक कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन (एक्सियम स्टेशन) बनाने की योजना है। वैज्ञानिक प्रयोग: माइक्रोग्रेविटी में विभिन्न प्रयोग करना। टेक्नोलॉजी टेस्टिंग: अंतरिक्ष में नई तकनीकों का परीक्षण और विकास। अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को एक मंच प्रदान करना। एजुकेशनल एक्टिविटीज: अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लोगों को प्रेरित करना और जागरूकता फैलाना। ------------------------------------------------------- मामले से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... भारत ने 548 करोड़ में एक सीट खरीदी; शुभांशु शुक्ला ऐसा क्या सीख रहे, जिससे 2 साल में भारतीय अंतरिक्ष जाने लगेंगे धरती से 28 घंटे का सफर कर कैप्टन शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी ISS पहुंच गए हैं। वो एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा हैं, जिसकी एक सीट के लिए भारत ने 548 करोड़ रुपए चुकाए हैं। भारत ने शुभांशु पर इतनी बड़ी रकम क्यों खर्च की, वो अंतरिक्ष में 14 दिन क्या-क्या करेंगे और ये भारत के गगनयान मिशन के लिए कितना जरूरी पूरी खबर पढ़ें...

Jul 5, 2025 - 18:33
 148  9.7k
एस्ट्रोनॉट शुभांशु हड्डियों और रेडिएशन पर स्टडी कर रहे:हड्डियों की बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, लंबे स्पेस मिशनों में एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा बेहतर होगी
एस्ट्रोनॉट शुभांशु हड्डियों और रेडिएशन पर स्टडी कर रहे:हड्डियों की बीमारियों के इलाज में मदद मि�

एस्ट्रोनॉट शुभांशु हड्डियों और रेडिएशन पर स्टडी कर रहे: हड्डियों की बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, लंबे स्पेस मिशनों में एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा बेहतर होगी

Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - avpganga

भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है जो बायोलॉजिकल रिसर्च में नई दिशा दे सकता है। उन्होंने शुक्रवार को सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (microgravity) में हड्डियों पर प्रभाव का अध्ययन शुरू किया है। इससे नई जानकारियाँ मिल रही हैं जो हड्डियों से जुड़ी बीमारियों के उपचार में सहायक हो सकती हैं। इस अध्ययन के परिणाम अंतरिक्ष में लंबे मिशनों के दौरान एस्ट्रोनॉट्स की सुरक्षा को भी बेहतर बनाएंगे।

अनुसंधान की पृष्ठभूमि

शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में कंकाल प्रणाली पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की है। ऐसा माना जाता है कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में रहने के कारण हड्डियों की संरचना में बदलाव आता है, जिससे असामान्यताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस अध्ययन द्वारा यह समझा जा सकेगा कि कैसे हड्डियाँ पृथ्वी पर लौटने के बाद भी अपनी पूर्व स्थिति में लौटती हैं या नहीं। इससे ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों के इलाज में सहायता मिलने की उम्मीद है।

रेडिएशन के खतरे का विश्लेषण

इसके साथ ही, शुभांशु ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर रेडिएशन के खतरों की निगरानी के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया है। लंबे अंतरिक्ष मिशनों के दौरान एस्ट्रोनॉट्स को रेडिएशन के खतरे से बचाना आवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि इस अध्ययन का डेटा भविष्य के मानव मिशनों में सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करने में सहायक हो सकता है।

गगनयान मिशन के लिए महत्वपूर्ण कदम

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, चार अन्य एस्ट्रोनॉट्स के साथ 26 जून को ISS पर पहुंचे थे। इस 14 दिवसीय मिशन के दौरान, वे 7 प्रयोग करेंगे, जो भारतीय शिक्षण संस्थानों द्वारा डिजाइन किये गए हैं। इनमें से अधिकतर बायोलॉजिकल अध्ययन होंगे जो भारत के गगनयान मिशन को मजबूती देंगे। इस मिशन का मकसद वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा नई तकनीकों की जांच करना है।

मिशन का महत्व

यह मिशन प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को भी बढ़ावा देता है। एक्सियम स्पेस द्वारा संचालित इस परियोजना का एक लक्ष्य कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन विकसित करना है, जिससे भविष्य में अन्य देशों के एस्ट्रोनॉट्स को भी स्टेशन में सम्मिलित किया जा सके। यह ना केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

शुभांशु शुक्ला का यह अध्ययन अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल हड्डियों एवं मांसपेशियों की देखभाल में मदद मिलेगी, बल्कि सुरक्षित अंतरिक्ष मिशनों के लिए नई दिशा भी मिलेगी। इस प्रकार के अध्ययन से भविष्य के गगनयान मिशन की संभावनाएँ और भी उज्जवल हो जाती हैं।

अंतरिक्ष अनुसंधान के इस नए आयाम से जुड़ी प्रत्येक सूचना के लिए हमारी वेबसाइट avpganga पर आते रहें।

Keywords:

astronaut research, bone health in space, radiation risk monitoring, microgravity studies, Gaganyaan mission, Indian astronaut, long space missions, biological experiments in space, ISS experiments, space technology developments

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow