कर्नाटक में SC आरक्षण में सब कोटा लागू होगा:राज्य सरकार आज विधानसभा में बिल ला सकती; ऐसा करने वाला चौथा राज्य
कर्नाटक में अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण के अंदर सब कोटा बनाने के लिए आज विधानसभा में बिल आ सकता है। राज्य कैबिनेट ने मंगलवार को 17% SC आरक्षण तीन हिस्सों में बांटने वाले इस बिल को मंजूरी दी थी। यह फैसला एचएन नागमोहन दास आयोग के सुझाव पर किया गया। हालांकि, आयोग ने आरक्षण को पांच हिस्सों में बांटने की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने 1 अगस्त, 2024 को SC आरक्षण में सब-कोटा को संविधानिक रूप से सही ठहराया था। बिल पास होने के बाद कर्नाटक ऐसा चौथा राज्य बन जाएगा जहां SC आरक्षण में सब-कोटा लागू होगा। तेलंगाना, हरियाणा और आंध्र प्रदेश SC आरक्षण में सब-कोटा लागू कर चुकी हैं। क्या है दलित राइड और दलित लेफ्ट समूह दलित राइट समूह में शामिल जातियां धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने पर जोर देता है। ये जातियां आर्थिक रूप से मजबूत मानी जाती हैं। अभी राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले SC आरक्षण में इन जातियों का दबदबा रहता है। इनमें मैडिगा जैसी जातियां शामिल हैं। वहीं, दलित लेफ्ट समूह में शामिल जातियां जाति व्यवस्था और भेदभाव को खत्म करने के लिए क्रांतिकारी बदलावों का समर्थन करती हैं। इनमें होलिया जैसी जातियां शामिल हैं। इनके अलावा शेष जातियां अन्य की श्रेणी में आती हैं। कुछ जातियां आयोग की सिफारिशों के खिलाफ दास आयोग ने बीते 4 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसके बाद कुछ जातियों ने आयोग की सिफारिश पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। कर्नाटक राज्य बलगाई संबंधित जातिगाला ओक्कूटा नामक संगठन ने आरोप लगाया कि अरया, आदि कर्नाटक, आदि द्रविड़, आदि आंध्र, होलार जैसी जातियां दलित राइट समूह का हिस्सा हैं लेकिन आयोग ने इन्हें इस समूह से बाहर रखा है। वहीं, बलगाई जाति के लोगों ने आरोप लगाया कि आयोग ने उनकी जनसंख्या के गलत आंकड़े पेश किए हैं। इन्हें 50 लाख से घटाकर 20 लाख दिखाया गया है। हालांकि, रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कर्नाटक सरकार जातीय गणना पर आधारित हैं।

कर्नाटक में SC आरक्षण में सब कोटा लागू होगा: राज्य सरकार आज विधानसभा में बिल ला सकती; ऐसा करने वाला चौथा राज्य
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कर्नाटक में अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण के अंदर सब कोटा बनाने के लिए आज विधानसभा में बिल आ सकता है। राज्य कैबिनेट ने मंगलवार को 17% SC आरक्षण तीन हिस्सों में बांटने वाले इस बिल को मंजूरी दी थी। यह फैसला एचएन नागमोहन दास आयोग के सुझाव पर किया गया। हालांकि, आयोग ने आरक्षण को पांच हिस्सों में बांटने की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने 1 अगस्त, 2024 को SC आरक्षण में सब-कोटा को संविधानिक रूप से सही ठहराया था। यदि यह बिल पास होता है तो कर्नाटक, तेलंगाना, हरियाणा और आंध्र प्रदेश के बाद ऐसा चौथा राज्य बन जाएगा जहां SC आरक्षण में सब-कोटा लागू होगा।
दलित राइट और दलित लेफ्ट समूह की भूमिका
कर्नाटक में SC आरक्षण में सब कोटा के मुद्दे पर दलित राइट और दलित लेफ्ट समूह में विभिन्न दृष्टिकोण देखे जा रहे हैं। दलित राइट समूह में शामिल जातियां धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने पर जोर देती हैं। ये जातियां आर्थिक रूप से मजबूत मानी जाती हैं और राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले SC आरक्षण में इन जातियों का दबदबा रहता है। इनमें मैडिगा जैसी जातियां शामिल हैं।
वहीं, दलित लेफ्ट समूह में शामिल जातियां जाति व्यवस्था और भेदभाव को खत्म करने के लिए क्रांतिकारी बदलावों का समर्थन करती हैं। इनमें होलिया जैसी जातियां शामिल हैं। इन दोनों समूहों में तकरार और मतभेद की स्थिति बनी हुई है।
आयोग की सिफारिश और विवाद
दास आयोग ने बीते 4 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इसके बाद कुछ जातियों ने आयोग की सिफारिश पर आपत्ति जताई थी। रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। कर्नाटक राज्य बलगाई संबंधित जातिगाला ओक्कूटा नामक संगठन ने आरोप लगाया कि अरया, आदि कर्नाटक, आदि द्रविड़, आदि आंध्र, होलार जैसी जातियां दलित राइट समूह का हिस्सा हैं लेकिन आयोग ने इन्हें इस समूह से बाहर रखा है।
इसके अलावा, बलगाई जाति के लोगों ने आरोप लगाया है कि आयोग ने उनकी जनसंख्या के आंकड़े गलत ढंग से पेश किए हैं, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो चुकी है। हालांकि, रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कर्नाटक सरकार के जातीय गणना पर आधारित हैं।
विधानसभा में संभावित बहस
कर्नाटक विधानसभा में आज होने वाली चर्चाओं में यह विधेयक केंद्रीय मुद्दा बनेगा। विधायकों से उम्मीद है कि वे इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय प्रस्तुत करेंगे, जिससे आगे के निर्णय में मदद मिलेगी। इस बार की चर्चा में SC समुदायों के भीतर गहन रही मतभेद और असहमति मुख्य विषय रहेंगे।
निष्कर्ष
कर्नाटक में SC आरक्षण में सब कोटा के बिल का प्रस्ताव केवल एक कानूनी विषय नहीं है; यह सामाजिक सत्य और आर्थिक समानता का मामला भी है। यदि बिल पारित होता है, तो यह विभिन्न जातियों के बीच असमानता को कम कर सकता है, लेकिन दलित समूहों के बीच अंतर्विरोध को भी दूर करने के लिए गंभीर चर्चाएँ जरूरी होंगी। राज्य को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हर समुदाय को न्याय मिले, और इसका सामाजिक साक्ष्य भी दिखे।
इस नई शुरुआत के लिए हम सबको सावधानी से आगे बढ़ना होगा, ताकि सभी के हितों का सम्मान किया जा सके।
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