आंध्र प्रदेश के डिप्टी CM बोले-तेलुगु मातृभाषा, तो हिंदी मौसी:साउथ फिल्मों को हिंदी में डब कराकर पैसा कमा रहे, ये कैसा दोहरा रवैया है
आंध्र प्रदेश के डिप्टी CM और जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने कहा कि अगर तेलुगु भाषा हमारी मां के समान है, तो हिंदी हमारी मौसी जैसी है। हिंदी सीखने से किसी की क्षेत्रीय पहचान को खतरा नहीं है। बल्कि इसे नए अवसरों के रूप में देखना चाहिए। हिंदी भारत को एकजुट करती है। पवन कल्याण ने यह भी कहा कि, साउथ फिल्मों को हिंदी में डब कराकर खूब पैसा कमाया जाता है लेकिन इस भाषा को सीखने से आपत्ति है। यह कैसा दोहरा रवैया है। पवन कल्याण शुक्रवार को हैदराबाद में राजभाषा विभाग के "दक्षिण संवाद" स्वर्ण जयंती समारोह में बोल रहे थे। पवन ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व तो है ही लेकिन हिंदी भारत के विविध हिस्सों को जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी बोले- हिंदी का विरोध राजनीति से प्रेरित इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी भी शामिल हुए। उन्होंने कहा- जो लोग हिंदी के खिलाफ बोलते हैं और हिंदी के खिलाफ आंदोलन करते हैं, वह भाषा से जुड़ा आंदोलन नहीं है। यह राजनीतिक आंदोलन है। यह वोट बैंक की राजनीति है। जब भी चुनाव होते हैं, चुनाव से पहले कुछ लोग हिंदी-विरोधी, हिंदू-विरोधी के नाम पर भाषण देकर लोगों को भड़काने की कोशिश करते हैं। यह गलत है। शाह बोले थे- हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 26 जून को नई दिल्ली में राजभाषा विभाग के कार्यक्रम में कहा था कि किसी भी भाषा का विरोध नहीं है। किसी विदेशी भाषा से भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए। लेकिन आग्रह हमारी भाषा को बोलने, उसे सम्मान देने और हमारी भाषा में सोचने का होना चाहिए। शाह ने आगे कहा- मैं मन से मानता हूं कि हिंदी किसी भी भारतीय भाषा की विरोध नहीं हो सकती। हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी है। हिंदी और सभी भारतीय भाषाएं मिलकर हमारे आत्मगौरव के अभियान को उसकी मंजिल तक पहुंचा सकती हैं। हिंदी के खिलाफ दो राज्यों में विरोध तमिलनाडु: 6 महीने पहले शिक्षा मंत्री और CM स्टालिन के बीच जुबानी जंग हुई केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु CM स्टालिन के बीच फरवरी में जुबानी जंग हुई थी। धर्मेंद्र प्रधान ने स्टालिन को लेटर लिखा। उन्होंने राज्य में हो रहे नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के विरोध की आलोचना की।उन्होंने लिखा, 'नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) इसे ही ठीक करने का प्रयास कर रही है। NEP भाषाई स्वतंत्रता को कायम रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि स्टूडेंट अपनी पसंद की भाषा सीखना जारी रखें।' इस पर तमिलनाडु CM एमके स्टालिन ने कहा- केंद्र हमारे ऊपर हिंदी न थोपे। अगर जरूरत पड़ी तो उनका राज्य एक और लैंग्वेज वॉर के लिए तैयार है। इसके बाद पिछले 6 महीनों से तमिलनाडु के कई नेता हिंदी को लेकर विवादित बयान देते आए हैं। महाराष्ट्र: 4 महीने पहले राज्य सरकार का आदेश, फिर वापसी, बढ़ा विवाद महाराष्ट्र में अप्रैल में 1 से 5वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी अनिवार्य की गई थी। ये फैसला राज्य के सभी मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों पर लागू किया गया था। ये फैसला नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के नए करिकुलम को ध्यान में रखते हुए लिया गया था। विवाद बढ़ने के बाद अपडेटेड गाइडलाइंस जारी की गई। मराठी और अंग्रेजी मीडियम में कक्षा 1 से 5वीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी के अलावा भी दूसरी भारतीय भाषाएं चुन सकते हैं।इसके लिए शर्त बस यह होगी कि एक क्लास के कम से कम 20 स्टूडेंट्स हिंदी से इतर दूसरी भाषा को चुनें। महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर जारी विवाद के बीच उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मराठी एकता' पर 5 जुलाई को ' को मुंबई के वर्ली सभागार में 'मराठी विजय रैली' की थी। दोनों नेताओं ने कहा था- तीन भाषा का फॉर्मूला केंद्र से आया। हिंदी से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे थोपा नहीं जाना चाहिए। अगर मराठी के लिए लड़ना गुंडागर्दी है तो हम गुंडे हैं। ------------------ ये खबर भी पढ़ें... शाह बोले-तमिल न बोल पाने के लिए माफी मांगता हूं:यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषा; राज्य में ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी पर जारी है विवाद तमिलनाडु में ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी पर जारी विवाद के बीच गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान सामने आया है। शाह 27 फरवरी 2025 को कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन में आयोजित महाशिवरात्रि समारोह में शामिल हुए थे। पूरी खबर पढ़ें...

आंध्र प्रदेश के डिप्टी CM बोले-तेलुगु मातृभाषा, तो हिंदी मौसी: साउथ फिल्मों को हिंदी में डब कराकर पैसा कमा रहे, ये कैसा दोहरा रवैया है
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आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम और जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि तेलुगु भाषा हमारी मातृभाषा की तरह है, वहीं हिंदी को उन्होंने मौसी की संज्ञा दी। पवन कल्याण का यह बयान हैदराबाद में राजभाषा विभाग के "दक्षिण संवाद" स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान आया। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदी सीखने से किसी की क्षेत्रीय पहचान को खतरा नहीं है। इसके बजाय, इसे नए अवसरों के रूप में देखना चाहिए।
हिंदी: एकजुटता की भाषा
पवन ने यह भी बताया कि दक्षिण भारतीय फिल्मों को हिंदी में डब कराकर बड़े पैमाने पर पैसा कमाया जाता है, जबकि हिंदी को सीखने के प्रति लोगों की आपत्ति पर सवाल उठाया कि यह कैसा दोहरा रवैया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदी केवल क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करने के लिए नहीं, बल्कि भारत के विविध हिस्सों को जोड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया और कहा कि जिन लोगों ने हिंदी के खिलाफ आंदोलन किए हैं, वे इस भाषा के खिलाफ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक आंदोलन में शामिल हैं। उनके अनुसार, यह केवल वोट बैंक की राजनीति है। जब चुनाव नजदीक आते हैं, तो कुछ लोग इसे एक बड़ा मुद्दा बनाते हैं।
अमित शाह का समर्थन
इस घटना से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारत की बहु-भाषायी संस्कृति में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए और हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी है। उनकी बातों ने भाषा की राष्ट्रीयता को एक नया आयाम दिया।
राज्य स्तर पर विरोध
हालांकि, राज्य स्तर पर हिंदी के खिलाफ बढ़ते विरोध की बात करें तो तमिलनाडु में इस विषय पर बेहतरीन चर्चा हुई है। शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री के बीच हुई जुबानी जंग में यह स्पष्ट हुआ है कि हिंदी को एक विकल्प के तौर पर नहीं, बल्कि थोपे जाने का प्रयास किया जा रहा है।
महाराष्ट्र में भी हिंदी को लेकर विवाद जारी है। हाल ही में शिक्षा विभाग द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य करने का आदेश दिया गया था, जिसे विवादित मुद्दा बना दिया गया। कई नेताओं ने इसे मराठी और हिंदी भाषाओं के बीच प्रतियोगिता का रूप दे दिया है।
निष्कर्ष
पवन कल्याण का यह बयान हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। यह सही है कि भाषा न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी आधार है। हमें चाहिए कि हम सभी भाषाओं का सम्मान करें और इस बहस को राजनीतिक रंग देने के बजाय, इसे एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें।
कोई भी भाषा किसी भी संस्कृती का हिस्सा है और दूसरी भाषाओं का अध्ययन करना हमें और भी समृद्ध बनाता है। अलग-अलग भाषाएं एक नए विचार और दृष्टिकोण के द्वार खोलती हैं।
इस प्रकार, हम कहना चाहेंगे कि भाषा की इस बहस में हमें एकता को बढ़ावा देने वाली बातें करनी चाहिए। राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार को मिल-जुलकर एक ठोस नीति बनानी चाहिए, जिससे सभी भारतीय भाषाओं का विकास और सम्मान हो सके।
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