पंजाब के 114 वर्षीय एथलीट फौजा सिंह की मौत:जालंधर में घर के बाहर सैर करते समय गाड़ी ने टक्कर मारी; अस्पताल में दम तोड़ा
दुनिया भर में अपने अद्भुत मैराथन रिकॉर्ड्स के लिए मशहूर एथलीट फौजा सिंह का सोमवार को पंजाब के जालंधर में निधन हो गया। 114 साल के फौजा सिंह को जालंधर में उनके घर के बाहर एक अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। वह सैर के लिए निकले थे। हादसा देर शाम को हुआ। गंभीर रूप से घायल फौजा सिंह को इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उन्होंने रात में अंतिम सांस ली। हादसे की सूचना मिलते ही जालंधर पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचकर जांच में जुट गई हैं। खेल जगत में शोक की लहर फौजा सिंह की मौत ने पूरे खेल जगत और उनके चाहने वालों को गहरे शोक में डुबो दिया है। लोग उन्हें न केवल एक महान एथलीट, बल्कि साहस और प्रेरणा के रूप में याद कर रहे हैं। पुलिस ने हादसे की जांच शुरू कर दी है और अज्ञात वाहन व उसके चालक की तलाश जारी है। जालंधर प्रशासन ने फौजा सिंह की मौत होने की पुष्टि की है और दुख जाहिर गया है। पुलिस बोली- हम मामले की जांच कर रहे इस मामले में आदमपुर थाने के SHO हरदेव सिंह ने बताया है कि फौजा सिंह के बेटे ने पुलिस को जानकारी दी गई थी। इसके बाद जांच के लिए टीमें मौके पर पहुंच गई थीं। फिलहाल, उस कार का पता नहीं चल पाया है, जिसने फौजा सिंह को टक्कर मारी है। हम मामले की जांच कर रहे हैं। मामले में FIR दर्ज कर ली गई है। SHO ने बताया- घटना के वक्त फौजा सिंह मेन रोड पर थे। जल्द मामले को ट्रेस कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। 90 साल की उम्र में पहली मैराथन पूरी की फौजा सिंह का जन्म 1911 में पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड में हुआ था। वह पूरी दुनिया में एक मिसाल बने, जब उन्होंने 90 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन दौड़ना शुरू किया। उनकी कड़ी मेहनत और अदम्य साहस ने उन्हें ‘टर्बन टॉरनेडो’ (पगड़ीधारी तूफान) के नाम से मशहूर कर दिया। फौजा सिंह ने 90 साल की उम्र में अपनी पहली मैराथन दौड़ पूरी की थी। 2004 में उन्होंने 93 साल की उम्र में लंदन मैराथन पूरी की। 2011 में 100 साल की उम्र में उन्होंने टोरंटो मैराथन पूरी की और 100+ की कैटेगरी में रिकॉर्ड बनाया। वह अब तक के सबसे उम्रदराज मैराथन धावक माने जाते हैं, जिन्होंने कई मैराथन दौड़ें पूरी कीं। फौजा सिंह ने अपने करियर के दौरान सेहत, सहनशक्ति और सकारात्मक सोच की मिसाल पेश की। बेटा-बेटी और पत्नी की मौत ने दौड़ने पर मजबूर किया फौजा सिंह ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत दुख झेले, जिन्होंने उन्हें दोबारा दौड़ने के लिए प्रेरित किया। अगस्त 1994 में उनके पांचवें बेटे कुलदीप की एक निर्माण हादसे में मौत और उससे पहले 1992 में उनकी पत्नी तथा सबसे बड़ी बेटी के निधन ने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया। इन्हीं दुखों ने उन्हें 1995 में फिर से दौड़ने का संकल्प लेने के लिए मजबूर किया। 1990 के दशक में वह इंग्लैंड चले गए और अपने बेटे के साथ इलफोर्ड में रहने लगे। 89 साल की उम्र में शुरू की अंतरराष्ट्रीय मैराथन दौड़ 89 साल की उम्र में उन्होंने गंभीरता से दौड़ना शुरू किया और अंतरराष्ट्रीय मैराथन में हिस्सा लेने लगे। जब वह पहली बार ट्रेनिंग के लिए रेडब्रिज, एसेक्स पहुंचे, तो थ्री-पीस सूट पहनकर आए। कोच को उनकी पूरी तैयारी, यहां तक कि कपड़े भी बदलने पड़े। फौजा सिंह ने अपनी पहली दौड़ 2000 में लंदन मैराथन के रूप में पूरी की। विश्व रिकॉर्ड बनाया, 90 की उम्र के बाद विज्ञापन किए 93 साल की उम्र में उन्होंने एक मैराथन 6 घंटे 54 मिनट में पूरी की, जो 90 से ऊपर की उम्र में दर्ज सर्वश्रेष्ठ समय से 58 मिनट बेहतर था। उसी साल 2004 में वह एडिडास के एक विज्ञापन अभियान में डेविड बेकहम और मोहम्मद अली के साथ नजर आए। 94 साल की उम्र में उन्होंने 200 मीटर से 3000 मीटर तक की दौड़ों में ब्रिटेन के रिकॉर्ड तोड़े। 100 की उम्र में बनाए 8 रिकॉर्ड 100 साल की उम्र में फौजा सिंह ने कनाडा के टोरंटो में आयोजित एक स्पेशल इवेंट में एक ही दिन में आठ विश्व रिकॉर्ड बनाए। उन्होंने 100 मीटर से लेकर 5000 मीटर तक की दौड़ों को नए मापदंडों के साथ पूरा किया। 3 दिन बाद उन्होंने टोरंटो वाटर फ्रंट मैराथन पूरी कर दावा किया कि वह 100 साल की उम्र में मैराथन पूरी करने वाले पहले व्यक्ति हैं। उनकी जीवनी टर्बन्ड टॉरनेडो 2011 में ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में लॉन्च की गई। इसी साल वह PETA के अभियान में सबसे उम्रदराज पुरुष बने। 2012 में मलेशिया में आयोजित 101 एंड रनिंग थीम वाले इवेंट में वह सम्मानित मेहमान बने और द ब्रांड लॉरेट अवॉर्ड से नवाजे गए। प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ से संन्यास 2013 में 102वें जन्मदिन से कुछ सप्ताह पहले उन्होंने हॉन्गकॉन्ग मैराथन में 10 किलोमीटर दौड़ 1 घंटे 32 मिनट में पूरी की और प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ से संन्यास लेने की घोषणा की। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि वह सेहत, आनंद और चैरिटी के लिए दौड़ते रहेंगे।

पंजाब के 114 वर्षीय एथलीट फौजा सिंह की मौत: जालंधर में घर के बाहर सैर करते समय गाड़ी ने टक्कर मारी; अस्पताल में दम तोड़ा
दुनिया भर में अपने अद्भुत मैराथन रिकॉर्ड्स के लिए मशहूर एथलीट फौजा सिंह का सोमवार को पंजाब के जालंधर में निधन हो गया। 114 साल के फौजा सिंह को जालंधर में उनके घर के बाहर एक अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। वह सैर के लिए निकले थे। हादसा देर शाम को हुआ। गंभीर रूप से घायल फौजा सिंह को इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उन्होंने रात में अंतिम सांस ली। हादसे की सूचना मिलते ही जालंधर पुलिस की टीमें मौके पर पहुंचकर जांच में जुट गई हैं।
खेल जगत में शोक की लहर
फौजा सिंह की मौत ने पूरे खेल जगत और उनके चाहने वालों को गहरे शोक में डुबो दिया है। लोग उन्हें न केवल एक महान एथलीट, बल्कि साहस और प्रेरणा के स्रोत के रूप में भी याद कर रहे हैं। उन्होंने अपनी उम्र में भी दिखाया कि कैसे मेहनत और साहस से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
पुलिस की जांच और कॉल
पुलिस ने हादसे की जांच शुरू कर दी है और अज्ञात वाहन व उसके चालक की तलाश जारी है। जालंधर प्रशासन ने फौजा सिंह की मौत की पुष्टि की है और कहा है कि वे घटना की जांच में तेजी ला रहे हैं। आदमपुर थाने के SHO हरदेव सिंह ने जानकारी दी कि फौजा सिंह के बेटे ने पुलिस को हादसे की सूचना दी थी। फिलहाल, उस कार का पता नहीं चल पाया है, जिसने फौजा सिंह को टक्कर मारी।
फौजा सिंह का जीवन और उपलब्धियाँ
फौजा सिंह का जन्म 1911 में पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड में हुआ था। उन्होंने 90 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैराथन दौड़ना शुरू किया और ‘टर्बन टॉरनेडो’ के नाम से मशहूर हुए। फौजा सिंह ने 90 साल की उम्र में अपनी पहली मैराथन दौड़ पूरी की और 2004 में 93 साल की उम्र में लंदन मैराथन में भाग लिया। 2011 में, 100 साल की उम्र में, उन्होंने टोरंटो मैराथन में हिस्सा लिया और रिकॉर्ड बनाया।
उन्होंने बड़े व्यक्तिगत दुख झेले, जैसे कि अपने परिवार के सदस्यों को खोना, जिसने उन्हें फिर से दौड़ने के लिए प्रेरणाएँ दीं। उन्होंने कहा था कि दौड़ना उनके लिए एक प्रकार की चिकित्सा थी और यह उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया।
अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सम्मान
फौजा सिंह ने अपने जीवन में कई सम्मान प्राप्त किए, जिसमें 100 वर्ष की आयु में दर्ज किए गए विश्व रिकॉर्ड शामिल हैं। 2013 में, उन्होंने हॉन्गकॉन्ग मैराथन में प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ से संन्यास लिया, लेकिन कहा कि वह सेहत, आनंद, और चैरिटी के लिए दौड़ते रहेंगे।
अंतिम व्यवहार
फौजा सिंह की मृत्यु ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे देश को दुख में डाल दिया है। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाता है कि कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना संभव है, भले ही उम्र कितनी भी हो। उनकी विरासत हमेशा याद रखी जाएगी और उनकी कहानी नई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
उनकी अदम्य साहस और उत्कृष्टता का यह उदाहरण पूरे खेल जगत में हमेशा जीवित रहेगा। फौजा सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम उनकी यादों को संजोएंगे। उनकी उपलब्धियों को देखना और उन्हें याद करना हम सभी के लिए गर्व की बात है।
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