गुजरात की सबसे बड़ी इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा:मुंबई के कारीगरों ने सूरत में 350 किलो टिशू पेपर से बनाई, प्लाट में बनाई झील में करेंगे विसर्जन
गणेश उत्सव को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए सूरत की 'सरकार गणेश उत्सव' समिति ने नई पहल की है। समिति ने गुजरात की सबसे बड़ी इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनवाई है। इस प्रतिमा की सबसे खास बात यह है कि इसे 350 किलोग्राम टिशू पेपर से बनाया गया है। 16 फीट ऊंची और 6 फीट चौड़ी इस विशाल प्रतिमा को मुंबई के 15 कुशल कारीगरों ने एक महीने में तैयार किया है। इस प्रतिमा में कारीगरी इतनी सटीकता से की गई है कि पहली नजर में किसी को यकीन ही नहीं होता कि यह कागज से बनी है। इस प्रतिमा के आभूषणों से लेकर मुद्रा तक को बारीकी से उकेरा गया है। यह प्रतिमा न केवल भक्तों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरूकता का भी उदाहरण है। पीओपी की प्रतिमा के विसर्जन पर बैन के बाद आया विचार इस पर्यावरण-अनुकूल पहल का विचार 'सरकार गणेश उत्सव' समूह के सागर राजपूत का है। उन्होंने बताया कि मुंबई में गणेश उत्सव के दौरान पीओपी की मूर्तियों के विसर्जन पर बैन लगा दिया गया था। इसका वीडियो देखने के बाद हमें यह पर्यावरण-अनुकूल गणेश प्रतिमा बनाने का विचार आया। इससे हम परंपरा को जीवित रख पाएंगे और साथ ही पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा। पीओपी से बनी प्रतिमाएं जल प्रदूषण का कारण परंपरागत रूप से गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन नदियों, झीलों या समुद्र में किया जाता है, लेकिन पीओपी और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियां जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण हैं। जिससे जलीय जीवन और पर्यावरण को गंभीर खतरा है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह पर्यावरण-अनुकूल प्रतिमा एक सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करती है। मूर्ति का विसर्जन एक कृत्रिम झील में किया जाएगा इस गणेश प्रतिमा का विसर्जन पारंपरिक तरीके से नदी या समुद्र में नहीं किया जाएगा। मंडल ने पास ही के प्लॉट में एक कृत्रिम झील का निर्माण किया है जिसमें प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। कागज से बनी होने के कारण यह पानी में आसानी से घुल जाएगी और किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होगा। विसर्जन के बाद बचे हुए गूदे का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता है, जिससे एक पूर्णतः स्थायी चक्र पूरा होता है। यह पहल अन्य मंडलों और भक्तों के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण है। ढोल-नगाड़ों और गणेश जी के जयघोष के साथ हुआ आगमन इस भव्य प्रतिमा को शहर में लाने के लिए रविवार शाम को एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। जिनके चेहरों पर भगवान गणेश के आगमन की खुशी और उत्साह साफ दिखाई दे रहा था। ढोल-नगाड़ों और गणेश जी के जयघोष के साथ शुरू हुए इस जुलूस ने पूरे शहर में एक पवित्र और उत्साहपूर्ण माहौल बना दिया। यह जुलूस न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया थी बल्कि एक सामाजिक संदेश भी था कि धर्म और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

गुजरात की सबसे बड़ी इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा: मुंबई के कारीगरों ने सूरत में 350 किलो टिशू पेपर से बनाई, प्लाट में बनाई झील में करेंगे विसर्जन
गणेश उत्सव को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए सूरत की 'सरकार गणेश उत्सव' समिति ने एक अत्याधुनिक पहल की है, जिसमें उन्होंने गुजरात की सबसे बड़ी इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा का निर्माण किया है। यह प्रतिमा खास तौर पर 350 किलोग्राम टिशू पेपर से बनाई गई है, जो न केवल भक्तों का विश्वास जीतती है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
विशाल गणेश प्रतिमा का निर्माण
इस 16 फीट ऊंची और 6 फीट चौड़ी गणेश प्रतिमा का निर्माण मुंबई के 15 कुशल कारीगरों ने एक महीने के भीतर पूरा किया है। कारीगरी की सुक्ष्मता इतनी प्रभावशाली है कि पहली नज़र में कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि यह मूर्ति कागज़ से बनी है। मूर्ति के आभूषणों से लेकर मुद्रा को भी बारीकी से उकेरा गया है, जो इसे अनूठा बनाता है।
पीओपी प्रतिमाओं पर बैन की पृष्ठभूमि
इस पहल का प्रोत्साहन उस समय मिला जब मुंबई में गणेश उत्सव के दौरान प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों के विसर्जन पर बैन लगा दिया गया था। 'सरकार गणेश उत्सव' समिति के सागर राजपूत ने बताया कि पीओपी से बनी मूर्तियों का विसर्जन जल प्रदूषण का कारण बन रहा था। इस बात को ध्यान में रखते हुए, समिति ने इस नई इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा का विचार किया।
जल प्रदूषण का संकट और समाधान
गणेश प्रतिमाओं का पारंपरिक विसर्जन नदियों, झीलों या समुद्र में किया जाता था, जिससे जल प्रदूषण बढ़ता था। यह इको-फ्रेंडली प्रतिमा इस समस्या का एक सकारात्मक समाधान पेश करती है। यह मूर्ति पारंपरिक विसर्जन विधियों से अलग, एक कृत्रिम झील में विसर्जित की जाएगी। कागज़ से निर्मित होने के कारण, यह आसानी से पानी में घुल जाएगी और पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगी।
आगमन जुलूस और समाजिक संदेश
इस भव्य प्रतिमा को शहर में लाने के लिए रविवार शाम को एक विशाल जुलूस निकाला गया। जुलूस में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए, जिनके चेहरे भगवान गणेश के आगमन की खुशी से भरे हुए थे। ढोल-नगाड़ों और गणेश जी के जयघोष के साथ, जुलूस ने पूरे शहर में एक पवित्र माहौल बना दिया। यह जुलूस न केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन था, बल्कि यह एक समाजिक संदेश भी था कि धार्मिक प्रथाएं और पर्यावरण आपस में जुड़े हुए हैं।
निष्कर्ष
इस नई पहल से न केवल भक्तों का विश्वास मजबूत हुआ है, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी एक शक्तिशाली उदाहरण है। 'सरकार गणेश उत्सव' समिति ने इस इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा के माध्यम से न केवल परंपरा को कायम रखा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति एक सकारात्मक संकेत भी दिया है। यह पहल अन्य गणेश मंडलों और भक्तों के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकती है।
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