दिल्ली HC ने कहा- आरोपी बदनाम हो, रेप विक्टिम नहीं:समाज को सोच बदलनी चाहिए; आरोपी बोला था- केस चला तो पीड़ित की बेइज्ज्ती होगी
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक रेप केस की सुनवाई करते हुए कहा कि, ऐसे मामलों में आरोपी की बदनामी होनी चाहिए, रेप विक्टिम की नहीं। समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी शुक्रवार को आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की थी। आरोपी ने दलील दी थी कि, अगर आप मेरे ऊपर चल रेह केस को रद्द कर दिया गया तो इससे पीड़ित को सामजिक कलंक और बदनामी से राहत मिलेगी। हालांकि कोर्ट ने दलील को खारिज करते हुए आरोपी पर 10000 रुपए का जुर्माना लगा दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस गिरीश काठपालिया कर रहे थे। कोर्ट का आदेश, 2 मुख्य बातें क्या है पूरा मामला मामला साल 2024 का है। आरोपी ने नाबालिग का वीडियो बनाया, फिर उसके जरिए ब्लैकमेल कर शारीरिक संबंध बनाए। FIR में आरोपी के खिलाफ POCSO एक्ट के सेक्शन 6 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के सेक्शन 65 (1) और 137 के तहत बलात्कार का मामला दर्ज किया गया। पिछले कुछ समय में बलात्कार के जुड़े मामलों में देश की बड़ी अदालतों के फैसले 30 मई, सुप्रीम कोर्ट बोला- रिलेशनशिप टूटने के बाद रेप केस गलत:इससे आरोपी की छवि खराब होती है सुप्रीम कोर्ट ने को एक अहम फैसले में कहा, 'यदि दो वयस्कों में सहमति से बना रिश्ता बाद में टूट जाता है या दोनों के बीच दूरी आ जाती है, तो इसे शादी का झूठा वादा बताकर रेप का केस नहीं बनाया जा सकता।' जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने यह टिप्पणी की। बेंच ने कहा- ऐसे मामलों से न केवल न्याय व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ पड़ता है, बल्कि आरोपी व्यक्ति की सामाजिक छवि को भी गंभीर नुकसान होता है। 17 जुलाई, प्रेमी शादी से मुकरा: रेप का केस लगाया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने महिला को ही फटकारा प्रेमी के लिए महिला ने पति को छोड़ा फिर प्रेमी ने भी शादी से इनकार किया। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, खुद शादीशुदा होने के बावजूद दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध रखने पर कार्रवाई हो सकती है। 23 अगस्त, नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को आजीवन कारावास:तीन साल पुराने मामले में कोर्ट का फैसला औरैया में एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। विशेष न्यायाधीश पाक्सो अधिनियम की कोर्ट ने दोषी शाहरुख को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोषी पर 35 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। ------------------------------------ ये खबर भी पढ़ें... रेप और सुसाइड केस में हाईकोर्ट से आरोपी बरी: आरोप साबित नहीं, बलात्कार का आरोप सही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने और बलात्कार के गंभीर आरोपों से अनुज वर्मा को बरी कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अपराध से उन्मुक्त करने की सत्र अदालत से अर्जी खारिज करने के आदेश की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। पूरी खबर पढ़ें...

दिल्ली HC ने कहा- आरोपी बदनाम हो, रेप विक्टिम नहीं:समाज को सोच बदलनी चाहिए
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रेप केस की सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में आरोपी की बदनामी होनी चाहिए, ना कि रेप विक्टिम की। यह महत्वपूर्ण टिप्पणी उस समय की गई जब आरोपी ने यह दावा किया कि अगर उसके खिलाफ चल रहे केस को रद्द कर दिया जाएगा, तो इससे पीड़ित को समाज में मिल रहे कलंक से राहत मिलेगी। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी की इस दलील को खारिज करते हुए उसे 10000 रुपए का जुर्माना लगाया। कोर्ट का यह फैसला न्याय प्रक्रिया में खड़ा होने वाले सामाजिक मुद्दों पर भी एक नई रोशनी डालता है।
मामले का संतुलन
यह मामला साल 2024 का है, जिसमें आरोपी ने एक नाबालिग का वीडियो बनाया और फिर उसके माध्यम से उसे ब्लैकमेल कर शारीरिक संबंध बनाए। आरोपी के खिलाफ FIR में POCSO एक्ट के सेक्शन 6 और भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 65(1) और 137 के तहत बलात्कार का मामला दर्ज किया गया। जस्टिस गिरीश काठपालिया की बेंच ने इस गंभीर मामले पर सुनवाई की थी।
सामाजिक मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि समाज को अपने सोचने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है। जब भी कोई बलात्कार का मामला सामने आता है, तो अक्सर पीड़िता को ही न्यायिक और सामाजिक प्रश्नों का सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि ऐसे मामलों में आरोपी की पहचान को सामने रखना और उसे दंडित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि समाज में एक संदेश जाए कि मर्दानगी और शक्ति का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले
हाल ही में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया था जिसमें यह कहा गया था कि यदि दो वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंधों में बाद में कोई समस्या आती है, तो इसे बलात्कार का मामला नहीं कहा जा सकता। ज़ाहिर है, इन फैसलों का उद्देश्य समाज में बलात्कार के मामलों को लेकर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करना है। इसमें बलात्कार की परिभाषा और उसके खिलाफ सामाजिक साक्ष्य को एक नई दिशा देना शामिल है।
निष्कर्ष
आरोपी और पीड़िता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के प्रयासों में, दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल आरोपियों को सजा मिलती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित होता है कि पीड़ित महिला को समाज में नागरिक का दर्जा दिया जाए। एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी इन मामलों में जुड़े सामाजिक कलंक को खत्म करने का प्रयास करें। बदलाव की शुरुआत हम सभी को खुद से करनी होगी।
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