दिल्ली पुलिस ने बांग्ला को बांग्लादेशी भाषा कहा:TMC सांसद अभिषेक बनर्जी बोले- ये गलती नहीं, भाजपा की साजिश है
दिल्ली पुलिस ने 29 जुलाई को बंगा भवन को लिखे एक सरकारी लेटर में बांग्ला भाषा को बांग्लादेशी भाषा बताया। इसमें लिखा था, 'अवैध रूप से भारत में रह रहे 8 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया है। इनके पास से बरामद डॉक्यूमेंट्स बांग्लादेशी भाषा में हैं। ऐसे में आगे की जांच के लिए बांग्लादेशी राष्ट्रीय भाषा का एक आधिकारिक अनुवादक उपलब्ध कराएं।' इस लेटर पर सवाल उठाते हुए TMC सांसद अभिषेक बनर्जी ने रविवार को 'X' पर कहा- दिल्ली पुलिस की यह कोई छोटी-मोटी गलती नहीं है। यह भाजपा की बंगाल को बदनाम करने, हमारी सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने और बंगाल को बांग्लादेश से जोड़कर राजनीतिक फायदा उठाने की एक सोची-समझी साजिश है। अभिषेक ने लिखा- यह संविधान के आर्टिकल 343 और 8वीं अनुसूची का उल्लंघन है। 'बांग्लादेशी' नाम की कोई भाषा नहीं है। बांग्ला को विदेशी भाषा कहना सिर्फ अपमान नहीं है। बल्कि यह हमारी पहचान, संस्कृति और अपनेपन पर हमला है। बंगाली अपने ही देश में बाहरी नहीं हैं। अभिषेक बनर्जी की 2 बड़ी बातें... भाषा विवाद को ग्राफिक्स में समझिए... --------------------------- मामले से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... ‘कागज दिखाए, फिर भी पूछ रहे, बांग्लादेश से कब आए’:दिल्ली छोड़कर जा रहे बंगाल-असम के लोग, बोले- हम घुसपैठिए नहीं हिंदुस्तानी ‘हमारा परिवार बंगाल से दिल्ली काम करने के लिए आया, लेकिन यहां हमें परेशान किया जा रहा है। हम बंगाली बोलते हैं और मुस्लिम भी हैं। भाषा और धर्म के आधार पर हमें टारगेट किया जा रहा है। हमें बांग्लादेशी बताकर बेदखल क्यों किया जा रहा है। हम तो अपने देश में ही सुरक्षित नहीं हैं।‘ पूरी खबर पढ़ें...

दिल्ली पुलिस ने बांग्ला को बांग्लादेशी भाषा कहा:TMC सांसद अभिषेक बनर्जी बोले- ये गलती नहीं, भाजपा की साजिश है
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दिल्ली पुलिस द्वारा बांग्ला भाषा को 'बांग्लादेशी भाषा' बताना एक बड़ी राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है। 29 जुलाई को बंगा भवन को भेजे गए एक सरकारी पत्र में लिखा गया कि, “भारत में अवैध रूप से रह रहे 8 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है। इनके पास से मिले दस्तावेज बांग्लादेशी भाषा में हैं। ऐसी स्थिति में आगे की जांच के लिए एक अनुवादक की आवश्यकता है।”
भाषा विवाद और इसके राजनीतिक निहितार्थ
इस पत्र को लेकर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने 'एक्स' पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कोई साधारण गलती नहीं है, बल्कि यह भाजपा की एक सोची-समझी साजिश है। उन्होंने कहा, “बंगाल को बदनाम करने, हमारी सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने, और राजनीतिक लाभ के लिए बंगाल को बांग्लादेश से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। यह संविधान के आर्टिकल 343 और 8वीं अनुसूची का उल्लंघन है।”
अभिषेक ने स्पष्ट किया कि 'बांग्लादेशी' नाम की कोई भाषा नहीं होती। उनका कहना है कि बांग्ला को विदेशी भाषा कहना केवल अपमान नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान, संस्कृति, और अपनेपन पर हमला है। उनका मानना है कि बंगाली नागरिक अपने ही देश में बाहरी नहीं हैं और ऐसे मामलों में उलझाना समाज को कमजोर करता है।
स्थानीय प्रतिक्रियाएँ और चिंताएँ
यह विवाद केवल राजनीतिक मुद्दों तक सीमित नहीं है। प्रभावित समुदायों ने भी अपनी आवाज उठाई है। बांग्ला बोलने वाले कई लोग, जो लंबे समय से दिल्ली में रह रहे हैं, ने आरोप लगाया है कि उन्हें अनावश्यक रूप से बांग्लादेशी बताकर परेशान किया जा रहा है। एक स्थानिय निवासी ने बताया, "हम अपना देश छोड़कर नहीं आए हैं। हम सुरक्षा की तलाश में हैं, लेकिन हमें यहां भी अवैध प्रवासी के तौर पर देखा जा रहा है। यह हमारे लिए बहुत निराशाजनक है।"
क्या है आगे का रास्ता?
इस मामले में आगे की कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है, लेकिन क्या दिल्ली पुलिस अपनी गलती को स्वीकार करेगी? इस मुद्दे पर चर्चा देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान को लेकर बहुत महत्त्वपूर्ण है। टीएमसी सांसद ने यह भी कहा कि यह मामला निर्वाचन से संबंधित मुद्दों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
टीएमसी के नेताओं ने इस विषय पर संसद में चर्चा करने का भी आश्वासन दिया है। यदि दिल्ली पुलिस इस मामले को हल नहीं करती, तो इसके गहरे राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
इस पूरे विवाद के पीछे की सच्चाई क्या है, यह तो समय बतायेगा, लेकिन एक बात पक्की है कि यह मामला केवल बांग्ला भाषा और उसकी पहचान तक सीमित नहीं है। यह एक नई समझदारी और सहिष्णुता की आवश्यकता को दर्शाता है, जो समाज में सही और सटीक पहचान स्थापित कर सके।
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