सपा नेता एसटी हसन के एक बयान पर भड़के महंत रविंद्र पुरी, बोले-उचित होगा जांच कराई जाए
साधु-संतों ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एस.टी. हसन के बयान पर गहरा रोष व्यक्त किया है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने उनके बयान को शर्मनाक बताया है। रविंद्र पुरी ने कहा, “जिस तरह की भाषा एस.टी. हसन बोल रहे हैं, मुझे लगता है कि वह खुद उग्रवादी हैं। इसीलिए इसकी जांच होनी चाहिए।“ उन्होंने कहा कि जब लोग खाने में थूक रहे थे, तब सपा नेता ने कुछ नहीं कहा। वह खुद “उग्रवादी” हो सकते हैं, इसलिए उन्होंने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया।

सपा नेता एसटी हसन के एक बयान पर भड़के महंत रविंद्र पुरी, बोले-उचित होगा जांच कराई जाए
साधु-संतों ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एस.टी. हसन के हालिया बयान पर गहरा रोष व्यक्त किया है। इस पर प्रतिक्रियाएँ तेज़ी से सामने आ रही हैं, जिसमें मुख्य रूप से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी का बयान शामिल है। महंत रविंद्र पुरी ने एस.टी. हसन के बयान को शर्मनाक बताते हुए कहा है कि ऐसी भाषा का उपयोग करना बिल्कुल अनुचित है। इस स्थिति ने एक बार फिर से धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों की संवेदनशीलता को उजागर किया है।
महंत रविंद्र पुरी का बयान
महंत रविंद्र पुरी ने कहा, “जिस तरह की भाषा एस.टी. हसन बोल रहे हैं, मुझे लगता है कि वह खुद उग्रवादी हैं। इसलिए, उचित होगा कि इस मामले की जांच कराई जाए।” उन्होंने यह भी कहा कि जब समाज के कुछ लोग खा-पी रहे थे, तब एस.टी. हसन ने किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की। यह बात सुझाव देती है कि वह इस मुद्दे को लेकर कितने संवेदनशील हैं। इस स्थिति ने साधु-संतों में आक्रोश पैदा कर दिया है, जो धर्म और राजनीति के बीच की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
बयान का पीछे का संदर्भ
एस.टी. हसन का बयान उस समय आया था जब देश के कुछ हिस्सों में धार्मिक विवाद गहराते जा रहे थे। कहा जा रहा है कि उनहोंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जो न केवल नकारात्मक रहे हैं, बल्कि समाज में घृणा फैलाने का कार्य भी कर सकते हैं। संतों का आरोप है कि इस प्रकार की भाषा से समाज में विद्वेष पैदा होता है और यह लोकतंत्र के खिलाफ है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस विवाद को लेकर विभिन्न राजनीतिक पार्टीयों और धार्मिक संगठनों से प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई हैं। कई नेताओं ने महंत रविंद्र पुरी के बयान का समर्थन किया है और कहा है कि राजनीति में इस प्रकार की भाषा का स्थान नहीं है। ऐसे समय में जब सभी को एकजुटता की आवश्यकता है, इस प्रकार के बयान केवल समाज में विभाजन का कारण बनते हैं।
निष्कर्ष
इस मामले ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीति में बोलने की स्वतंत्रता कभी कभी सामाजिक साना का अतिक्रमण कर जाती है। महंत रविंद्र पुरी का बयान इसे और भी स्पष्ट करता है कि धार्मिक नेताओं का एक विशेष दायित्व होता है। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है कि इस प्रकार की बयानबाज़ी पर लगाम लगे। ऐसे में, इस मामले की जांच होने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे बयान देने वालों को रोका जा सके।
हम सभी को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी भावनाओं का सम्मान हो। इस विषय में अधिक जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें और visit करें avpganga.com.
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