भागवत बोले- संघ जितना विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ:फिर भी स्वयंसेवकों के मन में समाज के लिए प्रेम, इससे विरोध की धार कम हुई

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा- जितना विरोध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हुआ है, उतना किसी भी संगठन का नहीं हुआ। इसके बावजूद स्वयंसेवकों के मन में समाज के प्रति शुद्ध सात्विक प्रेम ही है। इसी प्रेम के कारण अब हमारे विरोध की धार कम हो गई है। भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित संवाद कार्यक्रम को दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे। भागवत ने स्वयंसेवकों से कहा- नेक लोगों से दोस्ती करें, उन लोगों को नजरअंदाज करें जो नेक काम नहीं करते। अच्छे कामों की सराहना करें, भले ही वे विरोधियों द्वारा किए गए हों। गलत काम करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं, बल्कि करुणा दिखाएं। संघ में कोई प्रोत्साहन नहीं, बल्कि कई हतोत्साहन हैं। स्वयंसेवकों के लिए कोई इंसेंटिव नहीं मिलता। भागवत ने कहा- लोग जब पूछते हैं कि संघ में आकर क्या मिलेगा तो हमारा जवाब होता है कि कुछ नहीं मिलेगा जो तुम्हारे पास है वो भी चला जाएगा। यहां हिम्मत वालों का काम है। इसके बाद भी स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। क्योंकि समाज की निस्वार्थ सेवा करने के बाद उन्हें जो सार्थकता मिलती है उसका आनंद अलग होता है। कार्यक्रम की 2 तस्वीरें... कल कहा था- सभी की श्रद्धा का सम्मान करें मंगलवार को कार्यक्रम के पहले दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदू वही है, जो अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों की श्रद्धा का सम्मान करे। हमारा धर्म सभी के साथ समन्वय का है, टकराव का नहीं। उन्होंने कहा था कि पिछले 40 हजार वर्षों से अखंड भारत में रह रहे लोगों का डीएनए एक है। अखंड भारत की भूमि पर रहने वाले और हमारी संस्कृति, दोनों ही सद्भाव से रहने के पक्षधर हैं। भारत के विश्व गुरु बनने की बात पर कहा कि भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब यह समय आ गया है। मंगलवार को कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुप्रिया पटेल, भाजपा सांसद कंगना रनौत और बाबा रामदेव समेत अन्य हस्तियां शामिल हुईं थीं। पहले दिन की भागवत की स्पीच की प्रमुख बातें... हिंदू राष्ट्र पर- हिंदू राष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है। जब हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं तो उसका मतलब ये नहीं कि हम किसी को छोड़ रहे हैं, किसी का विरोध कर रहे हैं। 2018 में भी ऐसा ही कार्यक्रम हुआ था। संघ के बारे में बहुत सारी चर्चा होती है, लेकिन इनमें ज्यादातर जानकारी या तो अधूरी होती है या प्रामाणिक नहीं होती। इसलिए संघ के बारे में सच्ची और सटीक जानकारी देना जरूरी है। संघ के बारे में चर्चा परसेप्शन नहीं, फैक्ट के आधार पर होनी चाहिए। हेडगेवार पर- संघ के निर्माता केशव बलिराम हेडगेवार जन्म से ही देशभक्त थे। बचपन से ही उनके मन में यह विचार था कि देश के लिए जीना और मरना चाहिए। युवावस्था में अनाथ हो जाने के कारण उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने राष्ट्र के कार्यों में भाग लेना कभी नहीं छोड़ा। एक छात्र के रूप में वे अपनी पढ़ाई के प्रति समर्पित थे, हमेशा अपने स्कूल में प्रथम दस में स्थान पाने का लक्ष्य रखते थे, जिसे उन्होंने कभी नजरअंदाज नहीं किया। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। बर्मा में उन्हें तीन हजार रुपए मासिक वेतन वाली नौकरी मिली थी। प्रिंसिपल ने पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि वे वेतन पाने नहीं आए हैं, देश की सेवा करने आए हैं, इसलिए नागपुर लौट आए। जब उनसे शादी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने चाचा को लिखा कि उनके जीवन का कोई और उद्देश्य नहीं है। स्वतंत्रता आंदोलन पर- स्वतंत्रता के लिए 1857 की क्रांति के बाद, भारतीय असंतोष को उचित अभिव्यक्ति की आवश्यकता थी ताकि इससे लोगों को नुकसान न पहुंचे। इसके लिए कुछ प्रणालियां स्थापित की गईं। हालांकि, इन प्रयासों को कई लोगों ने अपने हाथ में ले लिया और कांग्रेस के नाम से स्वतंत्रता संग्राम के हथियार में बदल दिया। वीर सावरकर पर- हम उनसे कैसे हार गए जो हजारों मील दूर से आए थे और इस देश पर जबरदस्ती कब्जा कर रहे थे? हम क्यों हार गए? वीर सावरकर उस क्रांतिकारी धारा के एक चमकते रत्न थे। आजादी के बाद, उन्होंने पुणे में अपने क्रांतिकारी अभियान का औपचारिक समापन किया। वह धारा अब मौजूद नहीं है, न ही उसकी जरूरत है। भारत की आजादी पर- हमारे इतिहास में हम सभ्यता के शिखर पर थे, स्वतंत्र थे, फिर आक्रमण हुए, हम पराधीन हुए, और दो बार घोर पराधीनता सहने के बाद अंततः हम स्वतंत्र हुए। पराधीनता से मुक्ति पाना पहला कार्य था। राष्ट्र को ऊपर उठाने के लिए स्वतंत्रता आवश्यक थी, क्योंकि जंजीरों में बंधा व्यक्ति स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता और अपने लिए कुछ नहीं कर सकता। हिंदू नाम और संगठन पर- सम्पूर्ण समाज के लिए समग्र हिन्दू समाज का संगठन जरूरी है। 'हिन्दू' शब्द हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि यह एक ऐसा शब्द है जो इस भाव को पूर्णतः व्यक्त करता है। हिन्दू कहने का अर्थ केवल हिन्दू नहीं है, यह किसी का बहिष्कार नहीं करता है। सभी की सम्मान करता है। हिन्दू समावेशी है। समावेशिता की कोई सीमा नहीं है। भारत माता पर- हम भारत के नागरिक हैं, 'भारत माता' हमारी हैं। उनकी आजादी को नकारना तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते। यह हमारी आस्था का स्थान है। 'वंदे मातरम' कहना हमारा अधिकार है, इसलिए हम इसे नकारने की कल्पना भी नहीं कर सकते। कार्यक्रम में 1300 लोगों को निमंत्रण संघ ने विभिन्न क्षेत्रों से 17 कैटेगरी और 138 सब-कैटेगरी के आधार पर 1300 लोगों को निमंत्रण भेजा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी, क्रिकेटर कपिल देव और ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा इसमें भाग लेंगे। कई देशों के राजनयिक भी मौजूद रहेंगे। साथ ही, कार्यक्रम में मुस्लिम, ईसाई, सिख समेत सभी धर्मों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। दरअसल, RSS की स्थापना 1925 में दशहरा के अवसर पर हुई थी। इस साल RSS की स्थापना को 100 साल पूरे हो रहे हैं। इसको लेकर संघ की ओर से शताब्दी समारोह मन

Aug 27, 2025 - 18:33
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भागवत बोले- संघ जितना विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ:फिर भी स्वयंसेवकों के मन में समाज के लिए प्रेम, इससे विरोध की धार कम हुई
भागवत बोले- संघ जितना विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ:फिर भी स्वयंसेवकों के मन में समाज के लिए प्रेम, �

भागवत बोले- संघ जितना विरोध किसी संगठन का नहीं हुआ:फिर भी स्वयंसेवकों के मन में समाज के लिए प्रेम, इससे विरोध की धार कम हुई

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RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक संवाद कार्यक्रम में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का जितना विरोध किया गया है, उतना किसी अन्य संगठन का नहीं हुआ है। लेकिन इसके बावजूद संघ के स्वयंसेवकों के दिल में समाज के प्रति प्रेम और सेवा की भावना है, जो उनके विरोध की धार को कमजोर कर रही है। यह बातें भागवत ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में कहीं, जो संघ की 100 सालगिरह के उपलक्ष्य में हुआ था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व

भागवत ने स्वयंसेवकों को यह भी सलाह दी कि उन्हें नेक लोगों से दोस्ती करनी चाहिए और ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए जो नेक काम नहीं करते। उन्होंने कहा कि अच्छे कार्यों की सराहना करनी चाहिए चाहे वह विरोधियों द्वारा किए गए हों। उनके अनुसार, संघ में कोई प्रोत्साहन नहीं है, बल्कि कई हतोत्साहन हैं। इसलिए लोगों से यह सीखने की आवश्यकता है कि समाज की निस्वार्थ सेवा कितनी महत्वपूर्ण है।

सर्वधर्म समन्वय और संवाद का महत्व

पहले दिन के कार्यक्रम में भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू वही है, जो दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करता है। यह धर्म सभी के साथ समन्वय का है, न कि टकराव का। उन्होंने बताया कि 40,000 वर्षों से भारत की भूमि पर रहने वाले लोगों का डीएनए एक है और सभी को सद्भाव से रहना चाहिए।

समाज के प्रति यह प्रेम क्यों महत्वपूर्ण है?

यह प्रेम ही है जो संघ को स्थायित्व और मजबूती प्रदान करता है। भागवत ने बताया कि लोग जब संघ में शामिल होने के बारे में पूछते हैं, तो जवाब होता है कि यहां कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि जो है, वह भी चला जाएगा। यह स्पष्ट करता है कि संघ का उद्देश्य केवल सेवा और समाज के विकास के प्रति समर्पण है।

उदाहरणों के माध्यम से शिक्षा

भागवत ने संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का उदाहरण दिया, जिन्होंने हमेशा देश की सेवा को प्राथमिकता दी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के लिए 1857 की क्रांति के बाद भारतीय असंतोष को उचित अभिव्यक्ति की आवश्यकता थी। संघ का जन्म इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया गया था।

आने वाले कार्यक्रम और संवाद श्रृंखलाएँ

संघ की 100 सालगिरह पर यह आयोजन केवल एक प्रारंभ है। आगे बेंगलुरु, कोलकाता और मुंबई में ऐसी व्याख्यान श्रृंखलाएँ आयोजित की जाएंगी। इसके माध्यम से संघ विभिन्न धर्मों और वर्गों के बीच संवाद और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना चाहता है। इस प्रकार के संवाद ही संघ के विचार और दृष्टिकोण को समझने का सबसे अच्छा तरीका हैं।

इस पूरे कार्यक्रम में 1300 लोगों को निमंत्रण भेजा गया है, जिसमें विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण हस्तियों का भी समावेश है। यह एक ऐसा आयोजन है जो संघ की यात्रा को दर्शाएगा और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देगा।

संघ का मानना है कि समाज से सीधे संवाद करने से ही उनके विचार और दृष्टिकोण को समझा जा सकता है। अगर हम सब मिलकर काम करें, तो एक मजबूत समाज की रचना संभव है।

कार्यक्रम का सीधा प्रसारण मीडिया और सोशल मीडिया पर किया जाएगा, जिससे सभी इसे देख सकें। यह न केवल संघ की शताब्दी यात्रा का एक हिस्सा होगा, बल्कि समाज को एकजुट करने का एक प्रयास भी है।

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